हम भारतीय लोग बहुत पाखंडी हैं। गंगा- यमुना को कहते तो मां हैं लेकिन उनको गंदा नाले में बदल दिया है। अब उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले के बाद सभी की नजर है कि अब केंद्र से लेकर राज्यों की विभिन्न सरकारें इस मामले में क्या करती हैं।
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने बीते 21 मार्च को गंगा और यमुना को जीवित माना और कहा कि इन नदियों को इंसानों की तरह हक मिलेंगे। वैसे केंद्र में आठ साल पहले तत्कालीन यूपीए सरकार ने गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित किया था लेकिन तब से गंगा की हालत बिलकुल भी नहीं बदली है।
बहरहाल, उत्तराखंड हाईकोर्ट का यह ऐतिहासिक फैसला है। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 21 मार्च को देश की प्रमुख नदियों गंगा और यमुना पर ऐतिहासिक फैसला दिया। कोर्ट ने गंगा को भारत की पहली ‘लिविंग एन्टिटि’ यानी जिंदा इकाई घोषित कर दिया। यमुना को भी जिंदा माना गया है। इस फैसले के आधार पर गंगा और यमुना को जीवित व्यक्तियों की तरह सभी कानूनी और संवैधानिक अधिकार मिल जाएंगे। इन्हें प्रदूषित करना जीवित इंसान को नुकसान पहुंचाने जैसा अपराध माना जाएगा। जस्टिस संजीव शर्मा और जस्टिस आलोक सिंह की बेंच ने हरिद्वार के मो. सलीम की याचिका पर यह फैसला दिया। पिछली सुनवाई पर भी कोर्ट ने उत्तराखंड और केंद्र सरकार को जमकर फटकार लगाई थी। कोर्ट ने कहा था कि गंगा की सफाई के लिए ठोस कदम नहीं उठाए जा रहे। लुप्त सरस्वती नदी को ढूंढने पर तो बहुत जोर लगा रहे हैं, लेकिन गंगा को बचाने के लिए कुछ नहीं कर रहे।
उत्तराखंड-उप्र के बीच गंगा की नहरों से जुड़ी परिसंपत्तियों का बंटवारा करने को कहा गया। गंगा की सफाई पर सरकार के ढुलमुल रवैये पर कोर्ट की नाराजगी इस कदर थी कि गंभीरता नहीं दिखाने की सूरत में सरकार बर्खास्त करने तक की चेतावनी दे दी। बेंच ने कहा कि अगर सरकार गंगा को स्वच्छ और अविरल बनाने में नाकाम रही तो कोर्ट की असाधारण शक्तियां इस्तेमाल कर अनुच्छेद 365 के तहत इसे भंग किया जा सकता है। कोर्ट ने केंद्र सरकार को आठ हफ्ते का अल्टीमेटम देते हुए गंगा प्रबंधन बोर्ड गठित करने के निर्देश दिए हैं। इसी अवधि में उत्तराखंड और उत्तरप्रदेश के बीच गंगा की नहरों से जुड़ी परिसंपत्तियों का बंटवारा भी करने को कहा है।
उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले से पांच दिन पहले ही न्यूजीलैंड ने दुनिया में पहली बार वाननुई नदी को जीवित व्यक्ति का दर्जा दिया था। नदी अपने प्रतिनिधियों के जरिये अपना पक्ष रख सकती है।
कोर्ट ने देहरादून के जिलाधिकारी को ढकरानी की शक्ति नहर से 72 घंटे में अतिक्रमण हटाने को कहा। साथ ही चेतावनी दी कि फैसले पर अमल नहीं कर पाए तो बर्खास्त कर दिया जाएगा। हरिद्वार के सलीम ने शक्ति नहर से अतिक्रमण हटवाने के लिए ही 2013 में याचिका लगाई थी। इसमें कहा था कि उप्र उत्तराखंड गंगा से जुड़ी नहरों का बंटवारा नहीं कर रहे हैं।
हाईकोर्ट ने गंगा-युमना को जीवित मानते हुए इनके प्रतिनिधि के तौर पर तीन सदस्यीय कमेटी बनाई है। इसमें राज्य के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और एडवोकेट जनरल शामिल हैं। इन्हें कोई भी वाद स्वतंत्र रूप से कोर्ट में लाने को अधिकृत किया गया है। यह कमेटी गंगा-यमुना की तरफ से केस कर सकेगी।
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