भगवान शिव जैसा वर अपनी बेटी के लिए क्यों चाहते हैं हर माता-पिता

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आज शिवजी को ब्वो च हे……..पहाड़ में विवाह में क्यों गाया जाता है ये मांगल गीत

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा 

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार हिमालयी क्षेत्र में विशेष तौर पर उत्तराखंड में सदियों से विवाह के शुभ अवसर पर गाए जाने वाले मांगल गीत ……. आज शिवजी को ब्वो च हे…….. को लेकर बात करने जा रहा हूं।

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उत्तराखंड विशेष तौर पर गढ़वाल में विवाह के शुभ अवसर पर गाए जाने वाले मांगल गीतों में  –आज शिवजी को ब्यो च हे— अवश्य गाया जाता है। वैसे तो उत्तराखंड व हिमालयी क्षेत्रों के साथ ही संपूर्ण भारत व  नेपाल में भी हर माता-पिता चाहते हैं कि उनकी बेटी के लिए भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva, Bholenath, shivji) जैसा भोला, निश्चल, पत्नी को अपार प्यार करने वाला पति मिले। ऐसा पति जो अपनी पत्नी सती को इतना प्यार करते थे कि उनके शव को कंधे पर लेकर घूमते रहे। पत्नी के अपमान का बदला लेने के लिए ससुर तक का सिर काटवाने से भी नहीं हिचके। पत्नी भी ऐसी कि पति का अपमान होने पर अग्नि कुंड में कूद पड़ी। इसलिए हर परिवार की कामना रहती है कि उनका परिवार भगवान शिव का परिवार जैसा हो। आज्ञाकारी पुत्र गणेश।

इन पौराणिक कहानियों का भाव देखें को यह पति-पत्नी के एक-दूसरे के सह अस्तित्व की कहानी है। पहाड़ में भगवान श्री रामचंद्र जी जैसा पति की कामना नहीं की जाती है, जिन्होंने निर्दोष पत्नी सीता को वनवास भेज दिया था। हिंदू धर्म की वैष्णव धारा में प्रेम रचाने वाले  भगवान श्री कृष्ण भी हैं, मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम भी है। श्रीकृष्ण का  आकर्षण कई नारियों के बीच बंटा हुआ है। राधा उनको पा न सकी। इसी तरह भगवान श्री राम अपनी पत्नी  सीता को प्यार तो बहुत करते हैं, पत्नी के लिए रावण जैसे महाबली से लड़ जाते हैं। परंतु  राजा बनने पर वे अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देते हैं।राजधर्म निभाने के लिए पत्नीको त्याग भी सकते हैं। परंतु शैव धारा में  भगवान शिव ही हैं जिनकी गृहस्थी में कोई  कोई रुचि ना होने के बावजूद सती से बिछड़ने पर वे विह्वल हो जाते हैं। तांडव कर लेते हैं। धर्म ग्रंथों में भी कहा गया है कि भगवान भोलेनाथ (Lord Shiva, Bholenath, shivji) तभी शिव (Lord Shiva, Bholenath, shivji) हैं, जब उनमें ईवा यानी देवी मिलजती हैं, अन्यथा वे शव हो जाते हैं। शिव तभी हैं जब उनके साथ ईवा है। ऐसा सती की मृत्य के समय देखा भी गया था।

भगवान शिव हिमालयी लोगों के सबसे प्रिय देवता हैं। हिमालय के लोगों को शिव में अपनापन लगता है। उन्हें जीवन में कठिनता लाने वाले वैष्णव देवता उतने प्रिय नहीं लगे। भगवान शिव (Lord Shiva, Bholenath, shivji) ने मां पार्वती के साथ प्रेम, सम्मान और समानता का व्यवहार किया। भोलेनाथ ने मां पार्वती को हमेशा अपने पास बैठाया नकि अपने पैरो के पास। कभी भी पत्नी का अनादर नहीं किया। वे हर विषय पर पार्वती से संवाद करते हैं। वे पत्नी के प्यार में कुछ भी कर सकते हैं। सती के निधन पर उनका यह प्रेम सिद्ध हुआ था पत्नी भी ऐसी कि जब उनके पिता ने भगवान शिव का अपमान किया था, तो सती ने स्वयं को अग्नि कुंड में समर्पित कर दिया। शिव जी ने भी मां पार्वती के साथ संबंध का बखूबी निर्वहन किया। मां पार्वती को जो सही लगता हैं, वे  वही करती हैं। वह कई बार पति शिव का विरोध भी करती हैं लेकिन भगवान शिव उनकी राय का सम्मान करते हैं। इसलिए हर लड़की अपने सपने में भगवान शिव जैसे पति की कल्पना करती हैं।

वैसे तो भगवान  शिव (Lord Shiva, Bholenath, shivji) का बाहरी रूप-रंग देखकर कोई भी पिता अपनी बेटी का विवाह उनसे नहीं करना चाहेगा। वे शरीर पर भस्म लगाते हैं। गले में सांप रखते हैं। परंतु भगवान शिव की यही विशेषता है कि वे जैसे दिखते हैं, अंदर से बिल्कुल अलग हैं। वे बुद्धिमान, निश्छल और शांत देव हैं। दैंत्यों, दानवों, राक्षसों को ऐसा वरदान दे देते हैं कि कई बार खुद भी संकट में फंस जाते हैं। भगवान शंकर और देवी पार्वती उन लोगो के लिए सबसे अच्छा उदाहरण है। जो विवाह के लिए सुंदरता और धन को अधिक महत्व देते हैं। देवी पार्वती ने भस्मधारी भगवान शिव को पसंद किया है। भगवान शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं जिन्हें अर्धनारीश्वर कहा जाता है। अर्धनारीश्वर शब्द का अर्थ है कि शंकर का आधा स्वरूप पुरुष और आधा स्त्री का है।इस रूप से भगवान शिव यह संदेश देते हैं कि पति और पत्नी एक आत्मा के साथ दो शरीर हैं।

ये सब कारण है कि उत्तराखंड में विवाह के सुभ अवसर पर स्थानीय भाषा में जो मांगल गीत गाए जाते हैं उनमें वर पक्ष में गाया जाता है कि आज ‘शिवजी को ब्यो च हे’। यानी आज भगवान शिव की शादी है। जबकि वधू पक्ष में गाया जाता है कि आज देवी पार्वती की शादी है। वर को भगवान शिव (Lord Shiva, Bholenath, shivji)  और वधू को देवी पार्वती का रूप मान कर हल्दी स्नान कराया जाता है। हमारे उत्तराखंड में अधिकतर पहाड़ों पर देवी के मंदिर हैं तो घाटियों में भगवान भोलेनाथ के। बाबा केदारनाथ जी और मां नंदा का घर है पहाड़। भगवान बदरीनाथ जी वहां बाद में आए। हालांकि यह भी है कि पूजा के कई अवसरों पर वर को भगवान विष्णु का रूप भी माना जाता है।

 आप लोग शिवरात्रि और महाशिवरात्रि (Maha Shivratri)के बारे में जानते ही होंगे।  महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.। भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) पर हुआ था। इसलिए इस दिन को पर्व के रूप में बनाते हैं। यह पर्व फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। जबकि शिवरात्रि (Maha Shivratri)हर महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि पर आती है। इस प्रकार से साल भर में 12 शिवरात्रि (Maha Shivratri)के पर्व पड़ते हैं। इनमें श्रावण की शिवरात्रि (Maha Shivratri)का विशेष महत्व है।

धर्म ग्रंथों में यह  भी कहा गया है कि फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को ही भगवान भोलेनाथ ने शिवलिंग के रूप में प्रथम बार प्रकट हुए थे। पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ होने पर  भगवान ब्रम्हा और भगवान विष्णु में अपनी श्रेष्ठता को लेकर बहस हो गई। दोनों का विवाद बढ़ने पर वहां एक विशाल अग्नि स्तंभ प्रकट हुआ। उसमें करोड़ों सूर्य समान चमक थी। उसे देखकर दोनों स्तब्ध और चकित रह गए। इस अग्निस्तंभ से भोलेनाथ ने पहली बार शिवलिंग के रूप में दर्शन दिए। वह दिन फाल्गुन माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी का था।

भगवान शिव (Lord Shiva) को कई नामों से जाना जाता है। पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव के 108 नामों का उल्लेख (Maha Shivratri)  किया गया है।

यह था  भगवान शिव जैसा पति पाने की इच्छा के पीछे की कहानी। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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