52 गढ़ों का नहीं  291 गढ़ और गढी का मुलुक है गढ़वाल / हिमालय के गढ भाग-एक

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार गढ़वाल के गढ़ों के बारे में जानकारी दे रहा हूं। इसके बाद कुमायुं समेत हिमालयी क्षेत्रों के गढ़ों (Garhwal, Garh, Garhi, Forts of Uttarakhand)की जानकारी देने  का प्रयास दूंगा।

जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  तथा नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिएगा, ताकि आपको नए वीडियों की जानकारी मिलती रहे। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर,सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

आप ने उत्तराखंड के महान लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी जी का प्रसिद्ध गीत – बीरू भडू कु देश, बावन गडू कु देश /  जय जय बद्री केदार, गड़ भूमि गड़ नरेश /बीरू भडू कु देश, बावन गडू कु देश — तो सुना ही होगा। इसका मतलब यह है कि गढ़वाल 52  का गढ़ों के देश है। गढ़वाल के इतिहास की विभिन्न पुस्तकों में 52 ठकुरी गढ़ और कहीं, कहीं 64 गढ़ों यानी किलों (Garhwal, Garh, Garhi, Forts of Uttarakhand)का उल्लेख भी आता है।  यह बहुत बड़ी विडंबना है कि उत्तराखंड राज्य बन जाने के बावजूद इन दो दशकों में भी उत्तराखंड के गढ़ों-किलों के इतिहास को लेकर सरकारी तौर पर कभी भी अध्ययन करने का प्रयास तक नहीं किया गया। यह प्रश्न विचारणीय है कि आखिरकार प्रदेश में पर्यटन को बढ़ावा देने की हर मंच पर बात करने वाले उत्तराखंड के नीतिनिर्धारकों की बुद्धि में यह बात कभी क्यों नहीं आ पाई है की इन गढ़-गढ़ियों (Garhwal, Garh, Garhi, Forts of Uttarakhand)की पहचान करके उन्हें उत्तराखंड के पर्यटन के मानचित्र पर लाया जाए। भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने चांदपुर गढ़ी और चौंदपुर गढ़ आदि गढ़ों का ही कुछ खुदाई करके अध्ययन भी किया, परंतु बाकी गढ़ अपने अध्ययन की प्रतीक्षा है। (Garhwal, Garh, Garhi, Forts of Uttarakhand)

बहरहाल, अब इन गढ़-गढ़ियों (Garhwal, Garh, Garhi, Forts of Uttarakhand)के बारे में बात करता हूं। उत्तराखंड के अधिकतर भू भाग  में १०वीं सदी तक कत्यूरी शासन रहा है।  बाद में कत्यूरी शासन कमजोर पड़ जाने के बाद गढ़वाल में लगभग 52 वा 64 स्वतंत्र छोटे राजाओं-सरदारों ने अपने राज्य स्थापित कर दिए थे। ये राजा आए दिन एक-दूसरे से लड़ते रहते थे। 16 वीं शताब्दी में चांदपुर गढ़ी के पंवार वंश के राजा अजयपाल ने इन सभी गढ़ियों को जीत कर संपूर्ण गढ़वाल को गढ़देश का रूप दे दिया। अजय पाल (Ajay Pal) का शासन काल सन्‌ 1500  से सन्‌ 1559 तक रहा है। वे चांदपुर से राजधानी देवलगढ़ और फिर श्रीनगर गढ़वाल ले आए। अजयपाल ने ही गढ़वाल की सीमाएं निर्धारित की थीं। उसी समय से  अजैपाली ओडो  यानी कांवत प्रचलित है। गढ़वाली में ओडो का अर्थ सीमा  होता है।

 विभिन्न गढ क्षेत्रों (Garhwal, Garh, Garhi, Forts of Uttarakhand)के एक गढ़देश के दायरे में आ जाने के बाद  बाकी गढ़ भी उपेक्षित होने लगे और धीरे-धीरे खंडहर में बदल गए। इन गढ़- गढ़ियों को लेकर अब तक ठोस अध्ययन नहीं होने से यही माना जाता रहा कि  गढ़वाल में 52 गढ़ हैं। मैंने पं हरिकृष्ण रतूड़ी, राहुल सांकृत्यायन समेत विभिन्न लेखकों की पुस्तकों में दर्ज इन गढों (Garhwal, Garh, Garhi, Forts of Uttarakhand)की सूचियों का मैंने मिलान किया तो कई नाम अलग-अलग पाए। मेरे पास इस तरह के 75 गढ़ों की सूची बन गई। परंतु यह भी अंतिम सूची नहीं थी। अब मैं इस वीडियो में गढ़वाल के इन गढ़ व गढ़ियों को  लेकर पहले वैज्ञानिक अध्ययन की जानकारी दे रहा हूं, इसके बाद अगली वीडियो में इतिहास के पन्नों से  मिली जानकारी का उल्लेख करूंगा।

केंद्रीय एचएनबी गढ़वाल विश्विवद्यालय श्रीनगर  ( Hemvati Nandan Bahuguna Garhwal University ) के  इतिहास एवं पुरातत्व विभाग ने गढ़वाल के गढ़ों को लेकर प्रमाणिक व वैज्ञानिक अध्ययन किया है। यह शोध वर्ष 2011 से  शुरू यह अध्ययन लगभग दस साल में पूरा हुआ। पुरातत्व शास्त्र यानी आर्कोलॉजी  (archeology) वह विज्ञान है जो प्राचीन वस्तुओं का अध्ययन व विश्लेषण करके मानव-संस्कृति के विकासक्रम को समझने एवं उसकी व्याख्या करने का कार्य करता है। यह विज्ञान प्राचीन काल के अवशेषों और सामग्री के उत्खनन के विश्लेषण के आधार पर अतीत के मानव-समाज का सांस्कृतिक-वैज्ञानिक अध्ययन करता है। गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष डा.  विनोद नौटियाल के मार्गनिर्देशन में इस विभाग के मौजूदा सहायक प्रोफेसर डा. नागेंद्र सिंह रावत ने यह शोध कार्य किया गया। अपने शोध कार्य के तहत उन्होंने पौड़ी जिले के चौंदकोट किले को विस्तृत अध्ययन के लिए चुना। इस को लेकर देश-विदेश में कई शोधपत्र भी प्रकाशित हुए हैं। डा. नागेंद्र सिंह रावत ने हिमालयीलोग से कहा कि पुरातत्व विभाग के मौजूदा मानदंडों के अनुसार गढ़वाल में मात्र 32 गढ़ यानी किले हैं। जबकि कुल गढ-गढ़ियों की संख्या  291 पाई गई। यानी बाकी 259 गढ़ियां थीं। जिन्हें हम छोटे सुरक्षा पोस्ट भी कह सकते हैं। एक गढ़ के आसपास के क्षेत्रों में कई गढ़ियां मिली हैं। डा.  रावत कहते हैं कि यह संख्या अंतिम नहीं है, यदि विस्तार से और खोज की जाए तो गढ़- गढ़ियों की संख्या और बढ़ सकती है। इस शोध के लिए वैज्ञानिक अध्ययन किया गया। इसके लिए सैटेलाइट का इस्तेमाल किया गया। शोध केतहत चौंदकोट गढ़ का विशेष अध्ययन किया गया। इसके तहत एक बाद यह सामने आई कि बड़े गढ़ इतने ऊंचे पहाड़ों पर थे कि एक गढ़ से कम से कम दो या तीन बड़े गढ़ दिख जाते थे। दूसरी बात यह कि एक गढ़ के इर्द-गिर्द  कई छोटी छोटी गाढ़ियां थीं। यह बात भी सामने आई कि अब अधिकतर गढ़ या गढ़ियों का नामोनिशान भी नहीं बचा है। कुछ के खंडहर या दीवारें अवश्य दिख जाती हैं। कई स्थानों में इन गढ़- गढ़ियों के स्थानों पर मंदिर बने हैं। पुरातत्व विभाग के मानदंडों के तहत किला या गढ़ कहलाने के लिए कुछ शर्तें होती हैं। यह उनके आकार, क्षेत्रफल आदि पर निर्भर करता है। गढ़ यानी बड़े किलों को कहा जाता है, जबकि गढ़ियां के तहत उप गढ़ यानी बहुत छोटे किले या सुरक्षा चौकियां आती हैं।  

इस मामले में केंद्रीय एचएनबी गढ़वाल विश्विवद्यालय श्रीनगर के  इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के पूर्व अध्यक्ष और इस शोध में डा. नागेंद्र सिंह रावत के गाइड रहे डा. विनोद नौटियाल से मिली जानकारी का भी उल्लेख कर देता हूं। डा. नौटियाल ने कहा कि इस शोध में गढ़वाल के मध्य इतिहास का अध्ययन नए परिप्रेक्ष्य में करने का प्रयास किया गया।  इसमें इन गढ़ों का कालखंड और लैंडस्केप यानी भू दृश्य को देखने व समझने का प्रयास किया गया। यह कोशिश की गई की ये गढ़ दिखते कैसे हैं। अभी तक सभी ने सुना ही है कि 52 गढ़ हैं लेकिन यह सब जानकारी सुनी बातों पर आधारित थी। कोई ठोस अध्ययन नहीं किया गया था। हमने नए वैज्ञानिक तरीकों का प्रयोग किया। सैटेलाइट का सदूपयोग किया। गूगल मैप का भी सहारा लिया। इस शोध को पूरा होने में १० साल लगे।ये गढ़ कब बने या कहां हैं, इस बारे में थोड़ा बहुत पुस्तकों व थोड़ा कुछ लोगों की स्मृतियों में है।  बाकी कुछ भी उपलब्ध नहीं हैं। अधिकतर की कार्बन डेटिंग भी नहीं हुई है।

इस शोध में सेटेलाइट से 52 ही नहीं, बल्कि बहुत अधिक गढ़ –गढ़ियां दिखाई दी।  इन सभी को गढ़ या किला कहना उचित नहीं होगा, क्योंकि इनमें से कुछ ही गढ़ हैं। यानी किले, जिनको फोर्ट कहा जाता है। जबकि गढ़ियां यानी छोटे किले अधिक दिखे। वास्तव में गढ़ियां किलों के आसपास के सुरक्षा पोस्ट थे।

अब अगली कुछ वीडियोज में जानकारी दूंगा कि ये किले कहां हैं, किसने बनाए और इनके स्वामी कौन थे। वे गढ़ व गढ़ियां किस तरह से सुरक्षा के नेटवर्किंग से जुड़े थे। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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