सुना कभी ‘छण-मण की बांद-बान’ !

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विवाहित नारी को अपार अधिकार देने वाला हिमालयी खस समाज

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार — छण-मण की बांद –या ‘छन मण की बान (Chhan man ki band baan)- को लेकर जानकारी दे रहा हूं।

जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिएगा।आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

उत्तराखंड (Uttarakhand) में प्रत्येक युवती को बांद या बान कहा जाता है। गढ्रवाली में बांद और कुमायुंनी में बान कहा जाता है।  बिगरैली बांद   (Chhan man ki band baan)उस महिला को कहा जाता है, जो कि अद्भुत सौंदर्य की मल्लिका हो। अद्वितीय सुन्दरी हो। ऐसा सौंदर्य जिसे देख कर मन मोहित हो जाए और आंखें बार-बार उसी को देखना चाहे। अर्थात अति सुंदर हो। इसी तरह एक शब्द और है। वह है छण-मण की बांद या छण-मन की बान।  छण-मण की बांद-बान  (Chhan man ki band baan)उस विवाहित महिला के लिए प्रयोग होता था, जो अद्भुत सौंदर्य की मल्लिका होती थी । तब का हिमालयी समाज कई जगह तो विवाहिता स्त्री को भी  अन्य पुरुष से वरण की छूट समाज दे देता था। इसके बदले उस पुरुष के लिए जरूरी था कि वह पूर्व पति को उसका कन्या शुल्क चुकाए। ऐसी स्त्री को -छन मण की बान या बांद – कहा जाता था- अर्थात ऐसी सुंदरी, जिसका पति जीवित है। उस स्त्री को प्राप्त करना गर्व की बात समझी जाती थी। इस प्रथा में यह भी था कि यदि किसी प्रभावशाली या कीसी भी व्यक्ति को कोई विवाहित नारी पसंद आ जाती थी,  तो वह व्यक्ति उस महिला को ब्याह कर ले भी जा सकता था। अर्थात इस  प्रथा के तहत विवाहित नारी को बाद में भी अन्य पुरुष  के वरण करने की अनुमति समाज देता था। इसके लिए भी उचित रास्ता तलाशा गया था।  यही जानकारी इस वीडियो में दे रहा हूं। परंतु इससे पहले देश-दुनिया में नारी के अपहरण  को लेकर बता देता हूं।

 मानव सभ्यता के इस विकास क्रम में सबसे अधिक दुख-दर्द, कष्ट, पीड़ा, सभी कुछ महिलाओं को सहने पड्रे हैं। इतिहास में बहुत की कथाएं हैं, जिनसे मालूम होता है कि कई निरंकुश राजा थे जो महिलाओं का अपहरण करके उन्हें अपने हरम में डाल देते थे। भारत में धर्मांध व कट्टर मुसलमानों का शासन काल इसके लिए सबसे अधिक  बदनाम है।उनसे पहले भी ऐसा होता था, परंतु इतना नहीं थी।  प्राचीन काल में यदि किसी स्त्री के पति की किसी कारणवश मृत्यु हो जाती थी तो उस स्त्री को अपने देवर या उस क्षेत्र के शक्तिशाली व्यक्ति के अधीन होकर रहना पड़ता था। परंतु हिमालयी समाज विशेष तौर खसिया समाज में ऐसा बिलकुल नहीं था।

पौराणिक गाथाओं में भी बहुत से ऐसे मामले मिलते हैं, जिनमें विवाहित महिलाओं का दूसरे पुरषों ने अपहरण किया। रामायणकाल में रावण का उदाहरण सामने है। उसने पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की पत्नी माता सीता का अपहरण किया था। इसी तरह बानर राज बाली ने अपने छोटे भाई सग्रीव की पत्नी रुमा को जबरदस्ती अपनी पत्नी बना दिया था। सबसे प्रमुख पौराणिक कथा भौमासुर यानी नरकासुर की है। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार भौमासुर ने देवराज इंद्र को हराकर पृथ्वी की हजारों कन्याओं और नारियों का अपहरण कर उनको बंदी बना दिया था। नरकासुर उनका शोषण करता था। बाद में भगवान श्री कृष्ण ने उस राक्षस को मार दिया था। भगवान श्रीकृष्ण ने भौमासुर की अपहृत की 16,100 कन्याओं को मुक्त कर दिया। ये सभी अपहृत नारियां भौमासुर से पीड़ित थीं, दुखी थीं, अपमानित, लांछित और कलंकित थीं। अपने इन कर्मों के कारण ही उसे नरकासुर कहा गया। सामाजिक मान्यताओं के चलते भौमासुर की बंधक बनाकर रखी गई इन नारियों को समाज में कोई भी अपनाने को तैयार नहीं था। ऐसे में श्रीकृष्ण ने सभी को आश्रय दिया। उन सभी कन्याओं ने श्रीकृष्ण को ही अपना सब कुछ मानते हुए उन्हें पति रूप में स्वीकार किया, परंतु यह मात्र मन का संबंध था, शारीरिक नहीं।  श्रीकृष्ण ने उन्हें पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि भक्त के रुप में स्वीकार किया। श्रीकृष्ण उन सभी को अपने साथ द्वारिकापुरी ले आए। वहां वे सभी कन्याएं श्रीकृष्ण के महल में नहीं, बल्कि सामान्य जन की तरह भजन, कीर्तन, ईश्वर भक्ति आदि करके सुखपूर्वक रहती थीं।

इसी तरह ऐतिहासिक तौर पर महान रानी पद्मिनी का नाम सबसे आगे है, जिसने किसी दूसरे के साथ जाने की बजाए मृत्यु को अंगीकार कर लिया था।।   दूसरे की पत्नी को पाने के लिए पागल हुआ लुटेरा व आक्रांता अलाउद्दीन खिलजी था। वैसे भारत में इन लुटेरों के शासन काल में हजारों नारियों का अपहरण होता रहा है। महारानी पद्मिनी या पद्मावती चित्तौड़ के राजा रत्नसिंह की पत्नी थी। रानी पद्मिनी की सुंदरता पर खिलजी मोहित हो गया। रानी पद्मिनी को हासिल करने के लिए उसने चित्तौड़ पर हमला कर दिया। उसने राजा रत्नसिंह को धोखे से मार दिया। खिलजी के हाथ आने से पहले ही रानी पद्मिनी किले की अन्य सभी महिलाओं के साथ आग में कूद गई थी।  यह घटना (Rani Padmavati) 26 अगस्त सन 1303 की है। खिलजी से अपने सम्मान को बचाने के लिए उन्होंने यह जौहर किया था।

ऐसा नहीं है कि इस तरह की घटनाएं सिर्फ भारत में हुई। संसार का इतिहास इसी तरह की घटनाओं से भरा पड़ा।  18वीं सदी में आयरलैंड में महिलाओं का शादी के मंडप से अपहरण कर लिया जाता था। उन्हें मजबूरन उस व्यक्ति के साथ जीवन बिताना पड़ता था। इस तरह के महिला अपराधों में रोम भी अछूता नहीं था। रोम में भी शादी के दौरान दुल्हनों का अपहरण कर लिया जाता था। प्राचीन रोमन पुरुषों का भी मानना था कि महिलाओं को अपने अपहरण पर गर्व होना चाहिए। वह इसलिए कि उन्हें बाकी की जिंदगी एक बलशाली व्यक्ति के साथ बिताने का मौका मिलता था। चीन के कुछ इलाकों में 1940 तक दुल्हनों का अपहरण कर लिया जाता था।  जापान में भी नई नवेली दुल्हनों को अपहरण कर लिया जाता था। पश्चिमी देशों के ग्रंथों में भी कुंवारी महिलाओं को पाने के लिए पूरे गांवों में कत्लेआम से संबंधित कहानियों का उल्लेख  मिलता है।

अब मुख्य मामले पर आते हैं। हिमालयी समाज जानता था कि यदि किसी व्यक्ति को विवाहित नारी पसंद आ जाए या विवाहित नारी को अन्य पुरुष भा जाए। या विवाहित पुरुष व विवाहित नारी, एक-दूसरे को पसंद करने लगे, तो उस समस्या का समाधान निकालना चाहिए। अन्यथा समाज में कलह पैदा होगा। रक्तपात बढ़ेगा।  (Chhan man ki band baan)यह भी हो सकता था कि वह व्यक्ति महिला को जोर जबस्ती करके यानी अपहरण करके ले जा सकता है अथवा उसके पति की हत्या करवा सकता था। विवाहिता नारी भी घर से भाग कर उसके साथ जा सकती थी। संभवत: इसीलिए यह—छन-मण की बांद या बान –  (Chhan man ki band baan) का रास्ता निकाला गया होगा।    हिमालयी समाज विशेष तार पर खस समाज ने यह बहुत बेहतरीन समाधान निकाला था। आप जानते ही है कि हिमालयी ढलानों में महाभारत काल से लेकर 1000 ईस्वी के आसपास तक पूरे हिमालय क्षेत्र में  खसों का राज रहा है।  वरिष्ठ पत्रकार व प्रोफेसर (डा.)  गोविंद सिंह वेब पोर्टल हिमालयीलोग डॉटकॉम में अपने लेख –जीवट के धनी हैं उत्तराखंड के खसिया—में लिखते हैं कि खस समाज वैदिक आर्यों के जकड़न व बंधनों वाला समाज नहीं था। मसलन, खस समाज कर्मकांड से दूर ही था। विधवा विवाह तक खसों में खूब होते थे। उत्तराखंड में स्त्रियों की स्थिति अन्य समाजों ने कहीं बेहतर रही है। उन्हें मैदानी समाज की तरह  घर की चारदीवारी के भीतर बंद नहीं रखा गया। वहां देहज प्रथा भी मैदानों से गई। यौन संबंध भी इतने रूढ़ नहीं थे, जितने शहरी समाजों में होते हैं। बड़े भाई की मृत्यु होने पर  छोटा भाई अपनी भाभी से शादी कर लेता था।  कई जगह तो विवाहिता स्त्री को भी  अन्य पुरुष से वरण की छूट समाज दे देता था। इसके बदले उस पुरुष के लिए जरूरी था कि वह पूर्व पति को उसका मूल्य चुकाए। ऐसी स्त्री को– छन मण की बान – (Chhan man ki band baan)-कहा जाता था- अर्थात ऐसी सुंदरी, जिसका पति मौजूद है। उस स्त्री को प्राप्त करना गर्व की बात समझी जाती थी।

 यह कह सकते हैं कि इस व्यवस्था  (Chhan man ki band baan)में विवाहित नारी और अन्य पुरुष को भी आपस में विवाह करने की अनुमति समाज देता था। यदि किसी पुरुष को कोई विवाहिता नारी पसंद आ जाए या उस नारी को भी वह पुरुष पसंद आ जाए तो उसके लिए यह व्यवस्था थी कि वह व्यक्ति उसके पति को कन्या शुल्क देकर उस महिला को पत्नी के तौर पर अपने साथ ले जा सकता था। प्रोफेसर (डॉ)  गोविंद सिंह आगे लिखते हैं कि –उत्तराखंड में भी स्त्रियों की स्थिति प्रारंभ से ही  बेहतर रही है। उन्हें शहरी समाजों की तरह केवल घर की शोभा बनाकर नहीं रखा गया है। घर की अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका पुरुषों से किसी भी मायने में कम नहीं है। शादी-ब्याह की व्यवस्था भी अपेक्षाकृत ज्यादा लचीली रही है। दहेज प्रथा अब जाकर शहरी प्रभाव से शुरू हो गई है, वरना एक जमाना था जब कन्या के पिता को बारात के स्वागत के लिए कुछ रकम यानी कन्या शुल्क दिया जाता था। खसों में आज भी लड़की खोजने के लिए लड़के का पिता लड़की वालों के घर जाता है। कई बार बारात में वर का जाना भी जरूरी नहीं होता। वर पक्ष के चार-छह लोग जाकर बधू को डोली में बिठा कर ले आते हैं। बाद में सुविधा से फेरे ले लिए जाते हैं। यौन रिश्ते भी इतने रूढ़ नहीं थे, जितने शहरी समाजों में होते हैं। उन्हें संगीन जुर्म नहीं समझा जाता था।

यह थी छण-मण की बान या बांद प्रथा की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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