ऐसा था महाभारत काल से पाणिनी कालीन हिमाचल प्रदेश

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हिमाचल प्रदेश का इतिहास-एक

जै हिमालय, जै भारत।

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

E- mail- himalayilog@gmail.com

जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार महाभारत कालीन हिमाचल प्रदेश के बारे में जानकारी लेकर जानकारी लेकर आया हूं।

जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  तथा नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिएगा।आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

हिमाचल प्रदेश (Hostory of Himachal) की इतिहास गाथा उत्तराखंड की तरह लगभग समान ही है। हिमाचल को लेकर अब आपको बहुत सी जानकारी इस चैनल में मिलेंगी। पहले चरण में उत्तराखंड और नेपाल पर ध्यान दे रहा था। अब हिमाचल प्रदेश(Hostory of Himachal), जम्मू-कश्मीर, लद्दाख आदि राज्यों से लेकर हिंदुकुश पर्वत जानकारी दूंगा। आप जानते हि हैं कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड का पड़ोसी राज्य है। हिमाचल प्रदेश का इतिहास उतना ही पुरातन है जितना कि मानव सभ्यता का इतिहास। यह अलग बात है कि इतिहासकारों ने हिमाचल प्रदेश समेत हिमालयी क्षेत्रों के इतिहास की उपेक्षा की। हिमाचल में मानव की उपस्थित के दो  करोड़ साल पहले के प्रमाण मिले हैं। बिलासपुर जिला के हरि तल्यंगार क्षेत्र और नालागढ़ की शिवालिक घाटी से प्राप्त मानव फॉसिल्ज के अनुसार यहां लगभग दो  करोड़ साल पहले मानव जीवन आरंभ हो चुका था।  कांगड़ा की बाणगंगा और व्यास घाटी, बिलासपुर-नालागढ़ की सतलुज घाटी, सिरमौर की मार्कण्डेय घाटी और कुल्लू की व्यास नदी घाटी क्षेत्र में पत्थर के औजारों मिलने से माना जाता है कि यहां पांच हजार साल पहले मानव बस्तियां थीं। प्रागैतिहासिक काल में यहां कोल, किरात और नाग जातियां रहती थीं। कालान्तर में यहां कुनिंदों और औदुंबरों ने बहु-जनजातीय राज्य स्थापित किए। वैदिक और पौराणिक साहित्य में हिमाचलवासियों का उल्लेख मिलता है। ऋग्वेद के अनुसार हिमाचल अर्थात हिमालय की ढलानों में यहां गंधर्व, गंधार, आर्जिक, दास, दस्यु, यक्ष, असुर, दानव, पिशाच आदि जातियां रहती थीं। इन सभी के अपने-अपने जनपद थे । इनका राजा शंबर सबसे शक्तिशाली शासक था। शंबर को कोई दास, कोई किरात और कोई नाग बताता रहा है। कहा जाता है कि शंबर के 99 दुर्ग यानी किले थे। वैदिक आर्यों के राजा इंद्र ने शंबर को युद्ध में हराकर उसके सभी किलों को अपने कब्जे में ले लिया था। ऋग्वेद में शम्बर के शासन को दास, कोलितर, शंबर राज कहा गया। यह भी कहा जाता है कि आर्यों ने भरत जनपद के अधिपति दिवोदास के नेतृत्व में पर्वतीय क्षेत्रों के जनपदों और शंबर के विरुद्ध युद्ध किया। दिवोदास और शंभर के बीच युद्ध 40 सालों तक होते रहे। पहाड़ों के अन्य जनपदों के सरदारों अहि, पिप्रु, वची, नमुचि, वृषशिप, शुण्ण, वृत्र एवं कुथव भी इस युद्ध में शंबर के साथ थे, परंतु वे सभी वैदिक आर्यराजा दिवोदास से हार गए। इसके बाद हिमाचल प्रदेश में भी वैदिक आर्य सभ्यता व संस्कृति का प्रचार शुरू हो गया।  

पौराणिक ग्रंथों में भी हिमाचलवासियों का उल्लेख मिलता है। महाभारत काल में हिमाचल (Hostory of Himachal) में कोल, कुलिंद, खस, नाग, किरात आदि जातियों का उल्लेख मिलता है। कुलिंद या  कुणिन्द, त्रिगर्त, औदुम्बर, और शतद्रुज के गणपति और वीर महाभारत युद्ध में कौरवों की तरफ से शामिल हुए थे। पांडवों से युद्ध हारने के बाद संभवत: पहली बार हिमाचल में वैदिक संस्कृति आई। उस कालखंड में हिमाचल में त्रिगर्त-गण राज्य सबसे शक्तिशाली  था। जो विपाशा, शतद्रू और परूषणी नदी की घाटियों में फैला हुआ था। आज के शिमला और सिरमौर क्षेत्र में कुणिन्द गण भी एक शक्तिशाली राज्य था । यह राज्य सतलुज से यमुना घाटी तक फैला था। कुणिंद का पड़ोसी यौधेय था। यह राज्य हिमाचल के मैदानी भागों में फैला था। आज के किन्नोर क्षेत्र में गंधर्व-गण राज्य था। कुल्लू में कुलूत गण था। माना जाता है कि महाभारत काल में ही त्रिगर्त के शासक सुशर्मन अपनी राजधानी  युगन्धर यानी आज के जलांधर से कांगड़ा के नगरकोट लाए थे। बाद में यहां बौद्ध धर्म भी फला-फूला, परंतु हिमाचल (Hostory of Himachal) की निचली ढलानों में शीघ्र ही फिर से सनातन धर्म लौट आया।

हिमाचल (Hostory of Himachal)का उल्लेख महर्षि पाणनि के ग्रंथ अष्टाध्यायी और आचार्य चाणक्य यानी कौटिल्य के ग्रंथ अर्थशास्त्र में भी मिलता है। पाणनि  काल यानी ईसा से  चौथी से छटी शताब्दी पूर्व भारत में 16 महाजनपद अस्तित्व में थे। इनमें से चार जनपद आज के हिमाचल में थे। इनका उल्लेख हिमाचल के संदर्भ में महर्षि पाणिनी के अष्टाध्यायी में मिलता है।  ये जनपद त्रिगर्त आज का कांगड़ा, कुल्लुट या कुलूत आज का कुल्लू, कुलिंद या कुनित आज का सिरमौर (Trigart, Kulind,Audumber, kullut)तथा औदुंबर यानी आज का शिमला क्षेत्र थे। त्रिगर्त- यह राज्य तीन नदियों – रावी, व्यास और सतलुज की तलहटी में  था। इसी कारण से इसका त्रिगर्त नाम पड़ा I इसे एक स्वतंत्र गणराज्य माना जाता है I कुल्लुट या कुलूत- कीलित का यह राज्य व्यास घाटी के उपरी भाग में था। कुलिंद, राज्य व्यास, सतलुज और यमुना नदियों के क्षेत्र में बसा था, जो कि आज के शिमला और सिरमौर के पहाड़ी क्षेत्र थे। ये (Trigart, Kulind,Audumber, sirmaur,kullut) गणराज्य समान थे, जिनमें एक केन्द्रीय सभा  जनपद के के साथ उसकी शक्तियों को बांटती थी । औदुंबर जनपद की अदुम्बरा जनजाति थी, जो कि हिमाचल प्रदेश की सबसे प्राचीन जनजातियों में से एक थी। यह जनपद हिमाचल की तलहटी में पठानकोट और ज्वालामुखी के बीच में था। कहा जाता है कि अदुम्बरा जनजाति ने दो सदी ईसा पूर्व एक अलग राज्य की स्थापना कर दी थी । औदुंबर हिमाचल का एक गणतंत्र राज्य था। इसके सिक्के पठानकोट नूरपुर, होशियापुर और ज्वालामुखी  क्षेत्रों में मिलते हैं। इसके अलावा महर्षि पाणिनी ने चंबा के लिए गिब्त शब्द का प्रयोग किया है। बिलासपुर और नालागढ़ के आसपास के क्षेत्र के लिए युगांधर शब्द का प्रयोग किया है।  महर्षि पाणिनी ने यहां के जाति समूहों को आयुद्धजीवी या शस्त्रोपजीवी की संज्ञा दी है।(Trigart, sirmaur, Kulind,Audumber, kullut) इन संघों के सभी सदस्य हथियार उठा कर चलते थे । वे पैसा लेकर दूसरे राज्यों के लिए भी युद्ध करते थे। इसलिए इनको आयुद्धजीवी जातियां कहा गया है। महर्षि पाणनी के अनुसार त्रिगर्त-संघ और अन्य पर्वतीय क्षेत्र के सभी लोग आयुद्धजीवी संघों में संगठित थे। इनमें से अधिकतर क्षत्रिय थे। ये जानीय समूह यमुना, ब्यास, सतलुज और रावी नदी के तटों पर बसे थे।

त्रिगर्त यानी कांगड़ा का वर्णन वेदों, पुराणों, उपनिषदों समेत कई पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। महर्षि पाणिनि ने पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व में त्रिगर्त का आयुधजीवी संघ के रूप में  उल्लेख किया है।  यूनानी वैज्ञानिक टॉलेमी ने अपने लेखों में त्रिगर्त को कलींदारिने कहा है। चीनी यात्री ह्वेनसांग ने अपने यात्रा लेखों में इसे एक अत्यंत खुशहाल और उत्तम जनपद बताया है। कश्मीर  के महान लेखक कल्हण ने भी राजतरंगिणी में  त्रिगर्त का उल्लेख किया है। उतबी, फरिश्ता आदि लेखकों ने त्रिगर्त को अत्यंत धनिक लोगों का नगर बताया है। इन सभी ऐतिहासिक प्रमाणों से ज्ञात होता है कि प्राचीन समय में त्रिगर्त समृद्ध, शक्तिशाली, आर्थिक और भौतिक रूप से अति समृद्ध  जनपद था। परंतु, बाद में क्या हुआ? यह अगली कड़ियों यानी विडियो में बताऊंगा। (Trigart, Kulind,Audumber, kullut)

 यह था  हिमाचल प्रदेश (Hostory of Himachal)का पौराणिक व महाभारत कालीन व पाणिनिकालीन कालखंड का इतिहास। हिमाचल प्रदेश की पौराणिक गाथा के बाद अब  ऐतिहासिक दास्तां अगली कड़ियों में दूंगा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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