कालापानी की सजा पाए दो क्रांतिकारी गढ़वाली स्वतंत्रता सेनानी गुमनामी के अंधेरे में

0
759

बच्चूलाल भट्ट और इंद्र सिंह गढ़वाली तथा  कृतघ्न भारतीय समाज

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

E- mail- himalyilog@gmail.com

क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत की तरह  वीर बच्चूलाल भट्ट और वीर इंद्र सिंह गढ़वाली  (Vir Bachchulal Bhatt &  Vir Indra Singh Garhwali)जैसे स्वतंत्रता आंदोलन के वीरों ने  शहीद चंद्रशेखर आजाद, शंभुनाथ आजाद और रोशन लाल के क्रांतिकारी संगठनों में सक्रिय रूप से भाग लिया था। वीर बच्चूलाल भट्ट और इंद्र सिंह गढ़वाली उत्तराखंड के ऐसे वीर हैं, जिन्होंने काला पानी की सजा भोगी थी।  चर्चित मद्रास बम कांड में शामिल होने के कारण इंद्र सिंह गढ़वाली को 20 साल की कालापानी की सजा सुनाई गई थी। जबकि ऊटी बैंक डकैती कांड में पकड़े जाने पर बच्चूलाल  भट्ट को 18 साल के कारावास की सजा मिली।  यह नियति की अजीब विडंबना है कि देश की आजादी के लिए अपना जीवन न्यौछावर करने वाले इन वीरों का अंत गुमनामी में हुआ। इनके बारे में उत्तराखंड समेत भारत के लोगों के कृतघ्न ही कहा जा सकता है, जो अपने वीरों की यादों को भी सुरक्षित नहीं रख पाए।

देश के स्वतंत्रता आंदोलन में कांग्रेस के अलावा सुभाष चंद्र बोस से लेकर चंद्र शेखर आजाद, सरदार भगत सिंह जैसे महान क्रांतिकारियों की भी धारा रही है, जो कि भारत को सशस्त्र संघर्ष से आजादी दिलाने के लिए प्रायसरत रहे।इनमें भवानी सिंह रावत, वीर बच्चूलाल भट्ट और वीर इंद्र सिंह गढ़वाली (Vir Bachchulal Bhatt &  Vir Indra Singh Garhwali)का नाम पहली पंक्ति में है। सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में भी उत्तराखंड के लोग शामिल रहे और लगभग  600 उत्तराखंडी शहीद हुए थे। आज का उत्तराखंडी समाज कांग्रेस के नेताओं के नाम तो जानता है, परंतु इनके अलावा ऐसे हज़ारों क्रांतिकारी हैं जो आज भी गुमनाम हैं। उत्तराखंड के बड़ी संख्या में ऐसे वीर थे, जिन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया था। परंतु आज भी गुमनाम हैं।  भवानी सिंह रावत, बच्चूलाल भट्ट और इंद्र सिंह गढ़वाली (Vir Bachchulal Bhatt &  Vir Indra Singh Garhwali) ऐसे ही गुमनाम वीरों को हिमालयीलोग ने सामने लाने का छोटा सा प्रयास किया है।

काकोरी कांड को तो लोग जानते हैं परंतु उस दौरान क्रांतिकारियों ने और भी कई कांड किए थे। इनमें  मद्रास बम कांड और ऊटी कांड भी प्रमुख रहे हैं। सबसे पहले मद्रास बम कांड और ऊटी कांड के बारे में जानकारी दे देता हूं। शहीद  चंद्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह के बलिदान के बाद क्रांतिकारी निराश थे। उनके पास पैसे की भी कमी हो गई थी। इस पर 1932 में क्रांतिकारी शंभूनाथ आजाद ने रास्ता निकालने के लिए अमृतसर में एक गुप्त बैठक की। इस बैठक में क्रांतिकारी गोविंदराम वर्मा, रोशनलाल और बंता सिंह भी थे। इसमें तय किया गया कि आंदोलन दक्षिण भारत में भी चलाया जाए। तब चेन्नई को मद्रास कहा जाता था। गुप्त योजना बनाई गई कि मद्रास जाकर वहां के गवर्नर और वहां आए बंगाल के गवर्नर पर बम फेंका जाए। मद्रास पहुंचने पर पैसे खत्म हो चुके थे। धन के लिए क्रांतिकारियों ने ऊटी बैंक को लूटने की योजना बनाई। बैंक लूटने के बाद क्रांतिकारी पकड़ लिए गए। इसके बाद तय किया गया कि जो भी सामग्री उपलब्ध है, उसी से बम बना लिया जाए। बम  तैयार हो जाने पर क्रांतिकारी रोशनलाल  उसे समुद्र किनारे टेस्ट करने ले गए । तभी उनका पैर फिसल गया और बम  वहीं फट गया। रोशनलाल घटना स्थल पर ही शहीद हो गए। अंग्रेजों को बम का भी पता चल गया। जिस मकान में क्रांतिकारी रहते थे उसकी मालकिन ने मुखबरी कर पुलिस को जानकारी दे दी थी। पुलिस ने उस घर पर पहुंचकर  अफवाह फैला दी कि वहां डाकू हैं। इस पर पुलिस के साथ ही आसपास के लोगों ने भी क्रांतिकारियों पर ईंट पत्थर फेंके थे। इस भिड़ंत में गोविंदराम वर्मा शहीद हो गए, जबकि शंभूनाथ आजाद समेत बाकी क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया। क्रांतिकारी इतिहास में यह घटना मद्रास बम केस के नाम से अमर है।

अब बात करते हैं बच्चूलाल भट्ट की। वे पौड़ी गढ़वाल के लैंसडाउन के पास स्थित एक गांव के निवासी थे। उनके पिता राम प्रसाद भट्ट पोस्ट विभाग में नौकरी करते थे। अमृतसर में निवास के दौरान बच्चूलाल भट्ट की मुलाकात क्रांतिकारी शंभुनाथ आजाद से हुई। वे क्रांतिकारियों के साथ काम करने लगे। वे 1931 के अंबाला गोलीकांड में शामिल थे। हालांकि सबूतों के अभाव में बाद में छोड़ दिए गए। इसके बाद बच्चू लाल भट्ट का नाम ऊटी में हुई बैंक डकैती कांड में भी सामने आया। ये ऊटी बैंक को लूटने के लिए रोशन लाल मेहरा के साथ आए थे।  बच्चू लाल भट्ट और उनके साथी हजारासिंह, नित्यानंद 27 अप्रैल 1933 की रात टाइगर हिल की एक गुफा रहे। अगली सुबह हजारासिंह और नित्यानंद एक टैक्सी लेकर  आए। चारों ने मिलकर दोपहर 12 बजे बैंक लूट लिया था। परंतु 30 अप्रैल को वे गिरफ्तार कर लिए गए। तब बच्चू लाल भट्ट मात्र 24साल के थे। उन्हें और उनके साथियों को 18 साल कालापानी की सजा सुनाई गयी थी। कालापानी की सजा के 6 महीने बाद बच्चू लाल भट्ट मानसिक संतुलन खो बैठे। वे दिन में कई बार नहाया करते थे। अपनी नसों को काटकर भगवान सूर्य को अपना खून चढ़ाते थे। इस पर अंग्रेजों ने उन्हें पुणे और बनारस के पागलखानों में भेज दिया। वर्ष 1938 में उनकी मृत्यु हो गई। (Vir Bachchulal Bhatt &  Vir Indra Singh Garhwali)

मद्रास कांड में एक अन्य गढ़वाली इंद्र सिंह गढ़वाली भी शामिल थे। उनका जन्म 1906 को टिहरी गढ़वाल में हुआ था। वे अमृतसर के एक समाचार विक्रेता के यहां काम करते थे। वर्ष 1929 को क्रांतिकारी शम्भुनाथ आजाद ने उन्हें क्रांतिकारी दल का सदस्य बनाया। वे नौजवान भारत सभा के सदस्य भी रहे जो कि बाद में हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दिसंबर 1930 में उन्हें हथियार लेकर वाराणसी जाने का काम सौंपा गया। शंभुनाथ आजाद के साथ  हथियारों का बंडल ले जाते हुए उन्हें दिल्ली में पुलिस ने पकड़ लिया था। अजमेरी गेट थाने में पांच  दिन तक भारी यंत्रणा दी गई। अदालत ने उन्हें सात वर्ष का कठोर कारावास का दंड दिया। बाद में लाहौर हाई कोर्ट में अपील के बाद उनकी सजा घटाकर  तीन वर्ष हो गई। मुल्तान कारागार से मुक्त होकर बाहर आए तो नौजवान भारत सभा ने उन्हें दक्षिण भारत के मिशन पर  भेज दिया। वहां वे मद्रास कांड में शामिल थे। उन्हें 20 वर्ष का दंड मिला और कालापानी भेज दिया गया। बाद में उन्हें सेल्यूलर जेल से लेकर लाहौर सेंट्रल जेल व  बेल्लारी सेन्ट्रल जेल भेजा गया।  कारावास से मुक्त होने के बाद वे मेरठ आ गए । वहां 1952 तक भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय में काम करते रहे। परंतु अचानक एक दिन गायब हो गए। उसके बाद उनका कहीं भी पता नहीं चल पाया। (Vir Bachchulal Bhatt &  Vir Indra Singh Garhwali)

इस तरह ये दोनों वीर गुमनाम ही इस संसार से विदा हो गए। एक बार अवश्य सोचना कि इस देश के सत्ता में बैठे लोगों ने इन क्रांतिकारियों के साथ कैसा व्यवहार किया। उत्तराखंड बने दो दशक से ज्यादा समय हो चुका है, परंतु  वहां के बौने राजनितक नेतृत्व की दृष्टि इन क्रांतिकारियों की ओर कभी नहीं गई। ये क्रांतिकारी भी यदि अपना ही सुख देखते तो क्या यह देश  स्वतंत्र हो सकता था? यह सवाल खुद से करना।

तो यह थी वीर बच्चूलाल भट्ट और वीर इंद्र सिंह गढ़वाली (Vir Bachchulal Bhatt &  Vir Indra Singh Garhwali)की गाथा। जै हिमालय, जै भारत।

==================== 

 

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here