कौन हैं क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत?  भूल गए न!

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 रावत के साथ दुगड्ड्डा आए थे क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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इस बारे में कुछ कहने से पहले आप सभी से  पूछना चाहता हूं कि क्या आप जानते हैं कि क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत (Bhawani Singh Rawat) कौन थे? नहीं जानते न। दोष आपका नहीं है, उन लोगों का है जिनका यह दायित्व था कि वे अपने समाज के इस क्रांतिकारियों के बारे में लोगों को बताते। सिर्फ दुगड्डा, कोटद्वार के आसपास के लोग तो क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत के बारे में जानते होंगे, परंतु अधिकतर लोग शायद ही जानते होंगे। उत्तराखंड का यह दुर्भाग्य है कि उसे राजनीतिक नेतृत्व के तौर पर बहुत संकीर्ण और बौने लोग मिले।जो अपनों की कदर करना नहीं जानते, परंतु बाहरी दलालों को अपना मान लेते हैं।

बहरहाल, बात क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत (Bhawani Singh Rawat) की करते हैं। आप लोग कभी पौड़ी जिले के कोटद्वार शहर के निकट के कस्बा दुगड्डा जाएं तो वहां आपको शहीद पार्क व स्मारक मिलेगा। यह वह स्थान है जहां क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद ने अपने साथियों के समक्ष अचूक निशानेबाजी का प्रमाण दिया था। पार्क में शहीद चंद्रशेखर आजाद की आदमकद प्रतिमा लगी है। उसके पास ही आजाद की दुगड्डा यात्रा का वृत्तांत भी लिखा गया है। वन विभाग की ओर से आजाद के जीवन से जुड़ी घटनाओं को चित्रों के माध्यम से पार्क की दीवारों पर उकेरा गया है। भवानी सिंह रावत (Bhawani Singh Rawat), शहीद चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और यशपाल के घनिष्ट मित्रों में शामिल थे। उत्तराखंड से चंद्रशेखर आजाद के सहयोगियों में भवानी सिंह रावत के साथ ही इंद्र सिंह गढ़वाली और बच्चू लाल  भी थे। इनके बारे में भी इतिहास के पन्ने खामोश हैं।

क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत  (Bhawani Singh Rawat) ने 6 जुलाई 1930 को  चंद्रशेखर आजाद, काशीराम, धनवंतरी, विद्याभूषण और विशंभर दयाल के साथ गाड़ोदिया स्टोर चांदनी चौक दिल्ली में डकैती  कांड में भाग लिया था। पुलिस से बचने के लिए चंद्र शेखर आजाद सुरक्षित स्थान की तलाश में थे। वहां वे अपने साथियों को अचूक निशानेबाज भी बनाना चाहते थे। इस पर भवानी सिंह रावत ने दुगड्डा  के निकट अपने गांव नाथूपुर  चलने का प्रस्ताव रखा। भवानी सिंह रावत का निमंत्रण स्वीकार कर आजाद अपने साथियों रामचंद्र, हजारीलाल, छैल बिहारी, विशंभर दयाल आदि के साथ दुगड्डा आए। आजाद अपने इन चार साथियों के साथ दुगड्डा के नाथुपुर गांव में भवानी सिंह के घर पर रहे। लगभग एक सप्ताह तक भवानी सिंह रावत का घर ही चंद्रशेखर आजाद का ठिकाना हुआ करता था। भवानी सिंह ने अपने घर में आजाद का परिचय एक वन विभाग के कर्मचारी के रूप में दिया था। यह भी कहा था कि वे यहां घूमने और जंगल में शिकार करने आए हैं।  यहां आजाद से अपने साथियों को निशानेबाजी का अभ्यास कराया था।

यहां से जुड़ी एक घटना का उल्लेख करना आवश्यक है। दुगड्डा के पास साझासैंण के जंगल में शस्त्र प्रशिक्षण के दौरान आजाद ने साथियों के आग्रह पर एक वृक्ष के एक छोटे से पत्ते पर निशाना साध कर अपनी पिस्टल से गोलियां दागी। इस दौरान पत्ता हिला तक नहीं। उनके साथी समझते रहे कि निशाना चूक गया है। परंतु जब वे पेड़ के पास पहुंचे तो वहां देखकर आश्चर्यचकित रह गए कि गोलियां पत्ते को भेदती हुई पेड़ के तने में धंस गई थी। उस पेड़ के अब अवशेष ही बचे हैं। चंद्रशेखर आजाद की स्मृतियों को चिरस्थायी रखने के लिए अब वहां आजाद पार्क बनाया गया है।

क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत (Bhawani Singh Rawat)का जन्म 8 अक्टूबर 1910 को हुआ था। उनके पिता नाथू सिंह ब्रिटिश सेना में कैप्टन थे। इसलिए उनका बचपन सेना की छावनियों में बीता। प्रथम विश्व युद्ध में गढ़वाल राइफल्स में सराहनीय कार्य के लिए अंग्रेज सरकार कैप्टन नाथुसिंह को दुगड्डा के पास 20 एकड़ भूमि पुरस्कार के तौर पर दी थी। वे पौड़ी गढ़वाल के चौंदकोट स्थित  अपने पुश्तैनी गांव पंचूर को छोड़कर 1927 में  दुगड्डा के पास बस गए थे। उन्ही के नाम से यहां का नाम नाथूपुर पड़ गया था। भवानी सिंह की शिक्षा चंदौसी व दिल्ली के हिंदू कॉलेज में हुई।  वे क्रांतिकारी आजाद से प्रभावित थे। हिन्दू कॉलेज में पढ़ाई करते हुए 1927 में भवानी सिंह रावत क्रांतिकारियों के संपर्क में आए। उन्होंने क्रांतिकारी विचारधारा को अपनाकर देश की आजादी को ही अपना लक्ष्य बना लिया था। इससे पहले वे पंजाब केसरी लाला लाजपत राय से भी मुलाकात कर चुके थे। वे क्रांतिकारियों की गुप्त गतिविधियों में सक्रिय तौर पर भाग लेने लगे थे। वे हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा के सक्रिय सदस्य रहे। चंद्रशेखर आजाद ने सरदार भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव जैसे महान क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातंत्र सभा का गठन किया। इसका प्रमुख उद्देश्य भारत को स्वतंत्रता दिलाना था। भवानी सिंह रावत (Bhawani Singh Rawat) जुलाई 1930 को गाडोलिया स्टोर डकैती कांड के साथ ही लॉर्ड इरविन की ट्रेन पर बम फेंकने वालों में शामिल थे।  क्रांतिकारियों के साथ नाम जुड़ जाने पर अंग्रेज सरकार ने उनके फौजी  पिता की पेंशन कर दी थी ।

इन क्रांतिकारियों में से एक कैलाश पति ने पुलिस के दबाव में कई राज उगल दिए थे। इधर, 19 फरवरी 1931 को चंद्र शेखर आजाद इलाहाबाद में शहीद हो गए थे। 23 मार्च 1931 को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी पर चढ़ा दिया गया था। निराशा के इस दौर में भवानी सिंह रावत (Bhawani Singh Rawat) मुंबई चले गए। वहां वे मुसलमान के भेष में रह कर एक उर्दू पत्रिका का संपादन करते रहे। परंतु पुलिस ने उन्हें  25 दिसंबर 1932 को गिरफ्तार कर दिया। हालांकि ठोस सबूत नहीं मिलने के कारण  अदालत ने उन्हें छोड़ दिया। लेकिन अंग्रेज सरकार ने उनके पिता की पेंशन बंद कर दी थी। भवानी सिंह रावत अपने गांव नाथूपुरा लौट आए। दुगड्डा में वे चंद्रशेखर आजाद स्मारक के निर्माण कार्य में लग गए। 6 मई 1986 को उनका निधन हो गया   वे चंद्रशेखर आजाद को अपना आदर्श मानते थे। भवानी सिंह रावत की समाधि आजाद के प्रशिक्षण स्थल के पास ही बनाई गई है।

यह थी क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत (Bhawani Singh Rawat)की गाथा।  जै हिमालय, जै भारत।

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