न्याय भी देते रहे हैं उत्तराखंड के लोक देवता

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उत्तराखंड के लोक देवताओं की गाथा-2

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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उत्तराखंड के  लोगों का अपने लोक देवताओं पर इनता अगाध विश्वास रहा है कि वे मनौती मांगने के साथ ही न्याय की आस में  उनकी चौखट पर जाते थे। ये लोक देवता जनमानस के कृषि, पशुधन की अभिवृद्धि एवं सुरक्षा में योगदान करते रहे हैं। लोगों के समाजिक कार्य में शामिल रहते हैं। ये लोक देवता समाज में अन्याय व  अत्याचार करने वालों को दंडित भी करते रहे हैं। वे पीड़ितों एवं दीन दुखियों को न्याय दिलाते थे। परंतु आज के उत्तराखंडी मैदानों के फर्जी बाबाओं के चंगुल में तो फंस रहे हैं, परंतु अपने लोक देवतों को भूलते जा रहे  हैं। ये लोक देवता लोगों को न्याय भी देते थे। उत्तराखंड के लोगों को ईमानदार, कर्मठ, विश्वासपात्र, सच्चा, सहृदय बनाने में इन लोक देवताओं की अप्त्यक्ष तौर पर बड़ी भुमिका रही है।  प्रो. डीडी शर्मा  अपनी पुस्तक – उत्तराखंड के लोक देवता—(Lok devta)में लिखते हैं कि आधुनिक तंत्रात्म्क  शब्दावली में इसे देवतंत्र कहा जा सकता है।        यह एक ऐसा तंत्र है जिसमें देवता विशेष के प्रभाव क्षेत्र के अंतर्गत संपादित किया जाने वाला कोई भी ऐसा धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक कार्य नहीं है जो कि उस अधिष्ठातृ देवता की इच्छा  या अनुज्ञा के बिना संपन्न किया जा सकता है। कहा जा सकता है कि यह  एक ऐसी एकल शासन प्रणाली होती है जिसमें धार्मिक, सामाजिक एवं न्यायिक के सभी प्रकार की व्यवस्था एवं निर्णय का अधिकार एक अपार प्रभुतासंपन्न कार्यकारी देव शक्ति के अधीन रहता है।

वास्तव में अपने लोक देवता (Lok devta) के प्रति यह अगाध आस्था व विश्वास के कारण ही उत्तराखंड के लोग ईमानदार हैं। निष्चल हैं। वहां अपराध भी इसीलिए कम हैं। कोई भी गलत कार्य करने से पहले सौ बार सोचते रहे हैं। क्योंकि गलत कार्य करने पर उनके सामने लोक देवता स्मरण हो आते हैं। इसलिए वे हमेशा ही सच्चाई के  पथ पर चलने का प्रयास करते रहे। गांवों के घरों में ताले नहीं लगाने का यही बड़ा कारण रहा है। ये लोक देवता समाज विशेष में  शांति और व्यवस्था बनाए रखने, अत्याचार, चोरी, डकैती, मारपीट करने वालों तथा सामाजिक मर्यादाओं का उल्लंघन करने वालों को दंडित करते रहे।  जनमानस में यह विश्वास रहा है कि लोक देवताओं की इच्छा या निर्देश के विरुद्ध आचरण करने वाले व्यक्ति विभिन्न प्रकार के कष्ट व व्याधियों के रूप में देव दोष यानी देव कोप का भाजन हो जाते हैं।(Lok devta)

उत्तराखंड समेत लगभग पूरे हिमालयी क्षेत्र में यही भावना रही है। (Lok devta) देवी शक्ति में अगाध आस्था के कारण लोग न्याय पाने की आस के साथ ही सभी प्रकार के अपने धन जन धन की सुरक्षा, सुख-समृद्धि रोग- व्याधियों के निराकरण,  धार्मिक व  सांस्कृतिक एवं सामाजिक कार्यों की  निर्विघन्नता पूर्वक संपन्नता के लिए भी देवता की शरण में आते थे।  पर्वतीय क्षेत्रों में हमेशा  से समुचित प्रशासनिक व्यवस्था का भवा रहा है। गरीबी भी रही है। यात्रा की सुविधाएं नहीं रही हैं। राजा का काम भी बस टैक्स वसूलना रहा है। बाद में गोरखा शासन व अंग्रेजों के राज में भी यही हालात रहे। ऐस में लोगों के पास यही विकल्प था कि  वे न्याय के लिए देवालयों में पास जाए। इसलिए देवतंत्र एक बहुत प्रभावशाली एवं उपयोगी व्यवस्था तंत्र के रूप में अपनी सक्रिय भूमिका निभाता रहा है। अन्याय एवं अत्याचार से पीड़ित असहाय एवं असमर्थ व्यक्ति विशेषतौर पर महिलाएं न्याय पाने से वंचित रह जाते थे। इसलिए ईश्वरीय न्याय ही उनका एकमात्र सहारा रह जाता था। इसलिए न्याय पाने की आस में वे आस्था के साथ अपने ईष्ट देवता के देवालय (Lok devta) में जा कर अपनी व्यथा कथा सुनाते थे। अपराधी को दंडित करने के लिए न्याय दिलाने की गुहार लगाते थे। निर्धन एवं असहाय व्यक्ति के लिए यह देवीयतंत्र (Lok devta)ही सबसे अधिक सरल सुगम एवं व्यय रहित मार्ग बचता था। इसमें राज दरबार में जाकर किसी के आगे झुकने की आवश्यकता भी नहीं थी।

हर शुभकार्य में  ईष्ट, ग्राम व लोक देवता (Lok devta)को स्मरण व शामिल किया जाता था।  नया घर बनाने, खेतों की जुताई करने समेत हर शुभ मुहूर्त  के लिए विभिन्न तरह के लोक देवता हैं। गाय का बछड़ा होने के बाद बध्वाण देवता की पूजा अनिवार्य  रही है। लोक देवताओं में जौनसार भावर के महासू देवता भी न्याय के देवता माने जाते हैं। महासू देवता मंदिर जौनसार बावर के हनोल क्षेत्र में टोंस नदी के तट बसा एक प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है।  महासू चार भाई हैं। महासू देवता को न्याय के देवता और मन्दिर को न्यायालय के रूप में माना जाता है। इसी तरह रवांई क्षेत्र का पोखू देवता को उस क्षेत्र का क्षेत्रपाल या राजा माना जाता है। इस क्षेत्र में पोखूवीर न्याय के देवता माने जाते हैं। माना जाता है कि जो कोई भी उनसे न्याय की याचना करता है, वे उसका बिल्कुल सही और निष्पक्ष इंसाफ करते हैं। गढ़वाल में योगी सत्यनाथ को न्याय के देवता (Lok devta)माना जाता है। उनके नाम पर 14वीं सदी में देवलगढ़ के गौरा मंदिर परिसर में एक मंदिर का निर्माण हुआ था। नाथ संप्रदायों का गढ़ माने जाने वाले देवलगढ़ के मंदिर समूहों में सत्यनाथ का मंदिर भी अति विशिष्ट स्थान रखता है। इस मंदिर को न्याय का मंदिर भी कहा जाता है। गढ़वाल में कलुवावीर को  भी न्याय के देवता माना जाता है। उन्हें नागपंथी वीरों में एक भी मानाजाता है। कंडोलिया देवता भी न्याय के देवता हैं।  इसी तरह कुमायुं के गोलू देवता को भी न्याय के देवता माना जाता है। गोलू देवता, जिन्हें न्याय का देवता भी कहा जाता है। अल्मोड़ा के चितई और नैनीताल जिले के घोड़ाखाल में स्थित गोलू देवता के मंदिर में केवल चिट्ठी भेजने से ही मुराद पूरी हो जाती है। कुमायुं के साथ ही गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में ‘ग्वेल देवता’, ‘गोलज्यू’ ,‘गोरिल’ आदि विभिन्न नामों से इस न्याय देवता की लोकगाथा के विविध संस्करण प्रचलित हैं और उनमें इतनी भिन्नता है। नंदा देवी को भी न्याय की देवी माना जाता है। नंदा देवी समूचे उत्तराखंड और हिमालय के अन्य भागों में जन सामान्य की लोकप्रिय देवी हैं । चंद्रबनी सिद्ध पीठ का सदानंद भैरव तथा धारी देवी समेत विभिन्न क्षेत्रों में कई लोक देवता न्याय दिलाते रहे हैं। पौड़ी गढ़वाल के लैंसडौन क्षेत्र के ताड़केश्वर महादेव भी बोलांदा देवता थे व न्याय देते थे। उनकी भी अपनी एक कीर यानी सीमा रेखा है। इसके भीतर के जितने भी गांव हैं उनके जो भी शुभ कार्य होते हैं उनमें पहले भगवान को याद किया जाता है। अपने फसल के अनाज को पहले भगवान को भोग के लिए रखा जाता है। शादी विवाह में भगवान का आशीर्वाद लेना आवश्यक है। शादी के बाद दूल्या, दुल्हन को एक बार मंदिर में जाना जरूरी होता है। यही प्रथा अन्य क्षेत्रों के लोक देवतों क साथ है। पिथौरागढ़ जनपद में काली नदी के तटवर्ती क्षेत्र में स्थित द्योगड़िया नामक देवता के बारे में कहा जाता है कि वे अपने गणतुआ यानी पूछेर के माध्यम से पीड़ित व्यक्तियों को न्याय दिलाते हैं । रिखणीखाल कस्बे के पास बयेला गांव की कॉलिंग देवी को लेकर  मान्यता है कि वह भी बोलांदा देवी थी। बीरोखाल की दीवा देवी को लेकर भी यही मान्यता है। वे गोरखा शासन में अंतर्धान हो गई थी। इसी तरह ताड़केश्वर महादेव भी बोलांदा लोक देवता माने जाते हैं। इस तरह की कई बोलांदा देवता उत्तराखंड में हैं। ये तो कुछ उदाहरण मात्र हैं। उत्तराखंड के अधिकतर लोक देवता इसी तरह के न्याय के देवता माने जाते हैं।

 

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