दानव और राक्षसों में अंतर जानिए, उत्तराखंड में हैं दानवों के वंशज

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  दानपुर के दाणों

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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उत्तराखंड में एक परगना है- दानपुर। यहां के निवासी अपने को दानवों के वंशज मानते हैं। यह क्षेत्र कुमायुं मंडल के बागेश्वर जिले के कपकोट तहसील में  हैं। कभी यह गढ़वाल मंडल का  हिस्सा होता था, परंतु कमिश्नर ट्रेल ने इसे कुमायुं मंडल में शामिल कर दिया था।  इस बारे में बताने से पहले दानवों के बारे में जान लेते हैं।

पुराणों में सुर और असुर की बात कही गई है। असुर वह  थे, जो कि सुर नहीं थे। पौराणिक कथाओं के अनुसार देव, दानव, राक्षस ये सभी वैदिक ऋषि कश्यप के वंशज हैं। इन सभी के पिता मरीचि पुत्र महर्षि कश्यप ने ब्रह्मपुत्र प्रजापति दक्ष की 17 कन्याओं से विवाह किया जिससे समस्त जातियां उत्पन्न हुई। देव, दानव, राक्षस, (Dev,Davan, Daintya, Rakshas) ये तीनों भी उन्ही में शामिल हैं। ऋषि कश्यप की (Rishi Kashyap)पत्नी अदिति से देवता, दिति से दैत्य, दनु से दानव और सुरसा राक्षसों पैदा हुए।  ऋषि कश्यप की गणना सप्तऋषियों में की जाती है। उनका गोत्र इतना विशाल है कि माना जाता है कि सृष्टि के प्रसार में उनके वंशजों का योगदान ही सर्वोपरि है।( Dev,Davan, Daintya, Rakshas) एक पिता की विभिन्न माताओं से जन्मी संताने, जो आपस में भाई-बहन ही थे, कभी भी एक मत नहीं हुए और अपने-अपने हित, स्वार्थ के लिए जिंदगी भर लड़ते-मरते रहे। ( Dev,Davan, Daintya, Rakshas)

इनके बारे में विस्तार से बताता हूं। महर्षि कश्यप  और अदिति के पत्र देव या आदित्य कहलाए। महर्षि कश्यप और दिति के पुत्र दैत्य कहलाए। इनके दो पुत्रों,  हिरण्यकश्यप एवं हिरण्याक्ष से दैत्य जाति की शुरूआत हुई। महर्षि कश्यप और दनु से दानव पैदा हए।  दानवों के 114 मुख्य कुल चले। इनमें 64 सबसे प्रमुख माने जाते हैं। ये आकर में बहुत बड़े होते थे दानव, असुरों के शिल्पी थे।  राक्षसों  की उत्पति को लेकर कई कथाएं प्रचलन में है। एक कथा के अनुसार राक्षस, ऋषि कश्यप और दक्षपुत्री सुरसा के पुत्र थे। ( Dev,Davan, Daintya, Rakshas)एक अन्य कथा के अनार,राक्षस दो ऋषियों  वैश्रव और पुलत्स्य ऋषि के वंशज हैं । एक था यह भी है कि ब्रह्मा जी के क्रोध से हेति और प्रहेति नामक दो असुरों का जन्म हुआ और वही से राक्षस वंश की शुरुआत हुई।यह भी कहा जाता है कि राक्षस प्राचीन काल की एक प्रजाति का नाम था, जो रक्ष संस्कृति या रक्ष धर्म की अनुयायी थी। इसकी स्थापना रावण ने की थी। रक्ष धर्म को मानने वाले राक्षस कहलाते थे। एक अन्य कथा के अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा ने समुद्रगत जल और प्राणियों की रक्षा के लिए अनेक प्रकार के प्राणियों को उत्पन्न किया। राक्षस, असुरों में सबसे सुसंस्कृत और विद्वान माने जाते हैं।  राक्षस प्राचीन काल के प्रजाति का नाम है। रामायण और महाभारत काल में राक्षस थे। राक्षस वह है जो विधान और मैत्री में विश्वास नहीं रखता और वस्तुओं को हडप करना चाहता है।  यह प्रवृति आज भी है। ( Dev,Davan, Daintya, Rakshas)कई लोग राक्षस और असुरों यानी दानव व दैंत्यों को  ही मानते हैं।  परंतु ऐसा नहीं है। राक्षस और असुरों में बड़ा अंतर है। राक्षसों और असुरों के पिता अलग हैं। यह पहला अंतर है। असुर भूमि के नीचे, पाताल लोक में रहते हैं और उनके नगर का नाम हिरण्यपुरा है। राक्षस, जैसे रामायण में हम देखते हैं, जंगलों में, भू-लोक में रहते हैं। यह दूसरा अंतर है।राक्षस, यक्ष और ऋषियों के साथ युद्ध लड़ते हैं। दूसरी ओर असुरों का युद्ध स्वर्ग में रहने वाले देवताओं के साथ होते हैं।

बहरहाल,  अब उत्तराखंड के दानव वंशियों की बात करते हैं। ( Dev,Davan, Daintya, Rakshas)दानपुर परगना, बागेश्वर जिले में हैं। कुमायुं केसरी बद्रीदत्त पांडे  अपनी पुस्तक  — कुमाऊं का इतिहास – में—दानपुर के दानव- शीर्षक के तहत लिखते हैं कि यहां के दाणों –अपने मूल पुरुष दानव या दैंत्य बताते हैं। टाकुली आदि भी मूल पुरुष दानव बताते हैं। इसलिए परगना दानपुर कहलाया। यह क्षेत्र पिंडर, सरयू और पूर्वी रामगंगा से घिरा है। दानपुर की सीमाएं जोहार, गढ़वाल, पाली, बारामंडल और गंगोली से मिलती हैं। दानपुर के मूल निवासी दाणौ या दाणू कहे जाते हैं। यहां के एक गांव शुभगढ़ के बारे में मान्यता है कि यह मूलतः शुम्भगढ़ है।  पौराणिक कथाओं में मां देवी भगवती चंडी का शुम्भ-निशुम्भ  दानवों  से  युद्ध यही हुआ था। इसमें ये दानव मारे गए थे।इन लोगों के पूज्य देवता भी दाणौ यानी दानव ही हैं। जैसे—लालदाणौ, धामदाणौ, वीरदाणौ आदि।  यहां दानपुर में दानपुर कोट नाम का किला भी हुआ करता था ।  इस किले के अवशेष अभी भी दिखते हैं।( Dev,Davan, Daintya, Rakshas)

 

 

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