किसने कहा, मुसलिम आक्रांताओं के भय से पहाड़ गए मैदानी लोग

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जानिए- हिमालय की शरण में क्यों गए लोग मैदानों से लोग

 परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

आम तौर पर आप लोगों ने भी सुना होगा कि हिमालय (Himalaya) की ढलानों में मैदानों से लोग इसलिए गए कि वे मैदानों में मुस्लिम आक्रांताओं से बचने के लिए गए। यह बात अर्ध सत्य है ।यानी यह पूरा सत्य नहीं है। यह सत्य है कि मैदानों से बहुत बड़ी संख्या में लोग मुस्लिम आक्रांताओं के कारण हिमालय की शरण में गए। परंतु इतिहास साक्षी है कि मुस्लिम आक्रांताओं का आतंक 12 वीं शताब्दी से शुरू हुआ, जबकि हिमालय शरण में लोग बहुत पहले से जाते रहे। हिमालय  (Himalaya) हमेशा से ही लोगों को आकर्षित करता रहा है । इस मामले को मैं पहले पौराणिक तौर  और फिर ऐतिहासिक तौर पर बताऊंगा।

ऐतरेय ब्राह्मण उपनिषद् में ‘चरैवेति-चरैवेति’ का उल्लेख है।  यह श्लोक राजा हरिश्चंद्र  और उनके पुत्र रोहित की कथा से जुड्रा है। चरैवेति चरैवेति का आशय है निरंतर चलते रहो, चलते रहोगे-बढ़ते रहोगे तो एक दिन तुम्हें सफलता मिलेगी। परिश्रम से थकने वाले व्यक्ति को भांति-भांति की श्री यानी वैभव व संपदा प्राप्त होती हैं। यही भारतीय दर्शन है, हिंदू दर्शन है। इसी को ध्यान में रखते हुए लोग हमेशा चलते रहे। वैसे भी मानव सभ्यता का इतिहास साक्षी है कि मानव हमेशा एक स्थान से दूसरे स्थान में प्रवास करता रहा है।  इस कारण भी लोग हिमालय क्षेत्र में आते रहे।  हिमालय  (Himalaya)की ढलानों में मैदानी लोगों का जाने के पांच-छह मुख्य कारण है।

 पौराणिक तौर पर कहें तो तो प्रथम पुरुष मनु और प्रथम नारी शतरूपा का मिलन यहीं केदारखंड में  केदारधाम के निकट हुआ था। यहीं से मानव सम्यता फली-फूली।  रामायण काल में जब भगवान श्रीराम वनवास चले गए थे तो उनके कुलगुरु वशिष्ठ जी  केदारखंड आ गए थे। यह क्षेत्र आज के टिहरी  क्षेत्र में है। जिन  सम्राट भरत के नाम पर  हमारे देश का नाम भारतवर्ष पड़ा। उनका लालन-पालन भी गढ़वाल के कोटद्वार के निकट कण्व आश्रम में हुआ था। हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत और उनकी पत्नी शकुंतला यहीं मिले। शकुंतला कुलिंद-खस कन्या थी। अब महाभारत काल में आते हैं। हस्तिनापुर नरेश पांडु ने लंबा समय  केदारखंड यानी गढ़वाल में बिताया। पांडवों ने भी अपने वनवास और अज्ञासवास का काफी समय यहीं बिताया। इसका उदाहरण  हिडिंबा है। जो कि हिमाचल में देवी के तौर पर पूजी जाती हैं।  पांडु पुत्र भीम का डिडिंबा से विवाह हुआ था।  इसके अलावा पांडवों को लाक्षागृह में जलाने का प्रयास  भी यहां के जौनसार बावर क्षेत्र के लाखामंडल में हुआ था। हिंदूओं की स्वर्ग की कल्पना भी  हिमालय को लेकर की गई है।  पांडव भी अपने अंतिम समय में हिमालय आए और  बद्रीनाथ धाम की ओर से स्वर्ग गए। कहने का तात्पर्य यह है कि मैदानों से मनुष्य हमेशा से यहां आता- जाता रहा है। गंगा-यमुना के किनारे ऋषियों के आश्रम भी थे। गढ़वाल क्षेत्र को तो कभी भारद्वाज क्षेत्र कहा जाता था क्योंकि वहां पर भारद्वाज ऋषि का आश्रम था। इस बारे में एक वीडियो पहले से है।

अब हिमालय की ओर मैदानों के लोगों के जाने के कारणों पर आता हूं। हिमालय  (Himalaya)की ओर जाने के कई कारण रहे हैं।

एक प्रमुख कारण है —-धर्माटन। इसके तहत सदियों से लोग वहां धर्माटन के लिए जाते रहे । हिमालय  हमेशा सदियों से लोगों को आकर्षित करता रहा है। इसीलिए हिमालय की शरण में जाते रहे। हिमालय में सदियों से बद्रीनाथ जी केदारनाथ जी, रमरनाथ जी, पशुपितनाथ जी जैसे और भी बड़े धार्मिक स्थल रहे हैं। हरिद्वार और ऋषिकेश भी हैं। देवी के भी कई धाम हैं।  गंगा यमुना जैसी पवित्र नदियों का उद्गम भी हिमालय (Himalaya)है। इसलिए लोग हिमालय की शरण में जाते रहे और  फिर भी वही के होकर रह जाते थे।

 दूसरा कारण —-मैदानी क्षेत्रों के राजा आपस में लड़ते रहते थे । तो जो हार जाते  थे वे हिमालय की ओर चला जाता था। वहां वहां छोटी-छोटी ठकुरियां लेते थे। इसी तरह राजवंश में राजपाठ बड़े भाई को ही मिलने की पप्रथा थी। इसलिए छोटे भाई अन्य क्षेत्रों में जाकर अपना राज्य बनाने की कोशिश करते थे। हिमालय (Himalaya) के लोग सीधे-साधे थे, इसलिए वहां राज्य बनाना आसान लगता था। ऐसे लोग छोटी-छोटी ठाकुराई बनाकर राजा बनने की अपनी इस इच्छा पूरी कर लेते थे।

तीसरा कारण –– राज्यों की सीमा का विस्तार है। राजवंश और उनके सिपाही वही बस जाते थे। सम्राट अशोक ने भी हिमालयी क्षेत्र में अपने पांव पसारने का प्रयास किया था।

 चौथा कारण –– धार्मिक है। ऋषि-मुनि, साधु-संतों के लिए  तपस्या,साधना के लिए हिमालय सबसे प्रिय स्थान रहा है। बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए बौद्ध भिक्षु भी पहाड़ गए। उनके बाद अदि शंकराचार्य जैसे मनीषी भी गए। उनके शिष्य भी गए। कई वहीं बस गए। बाद में नागपंथी साधी भी गए। कश्मीर से लेकर आप नेपाल और आगे पूर्वोत्तर तक नागपंथियों के चन्ह आज भी देखे जा सकते हैं। अमरनाथजी,  केदारनाथजी, बद्रीनाथजी, पशुपतिनाथजी, जैसे जितने भी नाथ संबोधन के मंदिर हैं, उनके नाम नाथों ने ही बदले। नाथ संप्रदाय जोगी बाद में गृहस्थ आश्रम में चले गए। वहीं बस गए।

पांचवां कारण पहाड़ के वीर योद्धा है। -मैं पहले  ही एक वीडियो में यह सब बता चुका हूं कि मगध के नंद साम्राज्य को समाप्त करने के लिए महान विद्वान आचार्य चाणक्य कौटिल्य और उनके शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य ने हिमालय (Himalaya)  क्षेत्र के वीरों को अपनी सेना में शामिल किया था।   मैदान के राजाओं को हमेशा ही हिमालय क्षेत्र के वीरों की जरूरत पड़ती थी। महाभारत के युद्ध में भी पहाड़ी के कुलिंद व खसों ने हिस्सा लिया था। ये वीर मैदानी क्षेत्र के राजाओं की सेना में भर्ती होते  थे अथवा उनके राज्य के डाकू-लुटेरों से प्रजा की रक्षा करते थे।  ये पहाड़ी वीर पत्थर युद्धों के युद्ध में बहुत  पारंगत थे। यानी हिमालयी (Himalaya) लोगों से मैदानों के लोगों का हमेशा ही संर्पक बना रहा। मैदानों के लोग इन वीरों के साथ पहाड़ जाते रहे।

छटा कारण- पहाड़ की सुंदरता है। हिमालय के लोग अन्यों की तुलना में सुंदर होते हैं। इसलिए मैदानी लोग वहां की कन्याओं से विवाह के लिए लालायित रहते थे।पहाड़ के लोग  ईमानदार हैं, परिश्रमी हैं, विश्वसनीय हैं। मगध के मौर्य राजाओं के दरबार में राजा-रानी की सुरक्षा के लिए किरात कन्याओं की उपस्थित की बात इसका प्रमाण है।

सातवां कारण यह है कि जो घुमंतू  प्रवृति के लोग थे , उनको भी हिमालय (Himalaya)आकर्षित करता रहा।

आठवां कारण—यह है कि पहाड़ों के राजा मैदानों के विद्वान लोगों को अपने राज्य में बसने का आमंत्रण देते थे।वे लोग भी वैदिक राति रिवाज के लिए ब्राह्मणों को अपने यहां बुलाते थे। वे वैद्य, ज्योतिषी  के प्रकांड विद्वानों को प्राथमिकता देते थे।

अंतिम व नौवा  कारण– मुसलिम आक्रांता हैं। मुस्लिम आक्रांता व लुटेरे घोरी ने  १२वीं सदी में दिल्ली पर आक्रमण किया। राजपूत सम्राट पृथ्वीराज चौहान का शासन खत्म हो जाने के बाद यहां पर मुसलमानों का  राज शुरू हुआ। जबकि पहले के मुसलिम लुटेरे हमला करके व लूटपाट करके लौट जाते थे। दिल्ली में मुसलमानों का शासन आने से उनका आतंक बढ़ गया था। वे महिलाओं को अपने हरम में डाल देते थे। बच्चों का  क़त्ल कर देते  थे। पुरुषों के लाशों के ढेर लगा देते थे। मंदिरों को तोड़ देते थे। इससे बचने धर्मभीरु लोग अपने धर्म, संस्कार, जीवन शैली आदि को बचाने के लिए हिमालय की शरण में चले जाते थे।  उत्तराखंड के थारु व बुक्सा जनजित के लोग इसका उदाहरण हैं। राजस्थान  में मुसलिम आक्रांताओं से राजपूतों के युद्ध होते रहते थे। ऐसे में कई राजपूत राजा अपनी रानियों और बच्चों को अपने सेवकों के साथ हिमालय की तलहटी में भेज  देते थे। राजाओं की मृत्यु हो जाने पर उन रानियों ने अपने सेवकों के साथ घर बसा लिया था। थारु, बोक्सा उनकी ही  संतानें  हैं।  इस बारे में वीडियो अप यहां देख सकते हैं।

 इसलिए यह कहना गलत है कि मुसलमानों के डर से ही लोग पहाड़ गए। यह बताना आवश्यक है कि मुसलिम आक्रांता तैमूर लंग को हरिद्वार में गढ़वाली वीरों ने मारपीट कर भगा दिया था। उस लंगड़े तैमूर को हरिद्वार से भाग जाना पड़ा था। पहाड़ी यदि वीर न होते तो आचार्य चाणक्य और उनके शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य अपनी सेना में क्यों लेने के लिए पहाड़ आते। अंग्रेजों ने भी अपनी सेनाओं में डोगरा रेजीमेंट, गढ़वाल रेजीमेंट, कुमायुं  रेजिमेंट, गोरखा रेजीमेंट इसीलिए बनाई। इसलिए यही सत्य है कि मुसलमानों के आतंक से डर से महुत कम लोग ही पहाड़ गए। वे धर्मभीरु थे। बेवजह के झगड़ों में नहीं पड़ना चाहते थे। इसलिए हिमालय (Himalaya)की शरण में चले गए थे।

 

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