सगरमाथा  या चोमोलंगमा से माउंट एवरेस्ट बनने की गाथा

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सगरमाथा जिसने नापा नहीं, उसके नाम कर दिया माउंट एवरेस्ट

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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 आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिन कर्नल सर जॉर्ज एवरेस्ट (Colonel Sir George Everest )  के नाम पर इस चोटी का नाम रखा गया है, उन्होंने इसे कभी नापा ही नहीं।  विश्व के सबसे ऊंचे पर्वत का नाम माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) है। बहरहाल, नेपाल में इस चोटी को स्थानीय लोग सगरमाथा अर्थात आकाश का भाल कहते हैं। कहा जाता है कि यह नाम नेपाल के प्रसिद्ध लेखक बाबुराम आचार्य ने सन् 1930 के दशक में रखा था।  तिब्बत में यह चोटी सदियों से चोमोलंगमा अर्थात पर्वतों की रानी के नाम से जानी जाती है। हभ सभी के मन में भी यह जिज्ञासा पैदा होती रहती है कि नेपाल में हिमालय की इस चोटी का नाम माउंट एवरेस्ट ही क्यों रखा गया। जबकि इसका नाम नेपाली में सगरमाथा और तिब्बती में चोमोलंगमा था। माउंट एवरेस्ट नामकरण से पहले इस पर्वत पर्वत को पीक-15 के नाम से जाना जाता था। यह पर्वत नेपाल और चीन की सीमा को बांटता है।

खास बात यह है कि यह प्रचारित किया जाता है कि  जॉर्ज एवरेस्ट ने ही पहली बार एवरेस्ट की सही ऊंचाई और लोकेशन बताई थी। इसलिए वर्ष1865 में, रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी ने पीक-१५  का नाम बदलकर एवरेस्ट के सम्मान में दुनिया की सबसे ऊंची चोटी के रूप में पहचानी गई चोटी का नाम उनके नाम पर रख दिया। वे यूनाइटेड किंगडम के तहत वेल्स के सर्वेयर और जियोग्राफर  थे। परंतु यह सत्य नहीं है।

इस बारे में बताने से पहले यह बता दूं कि इन दिनों  जॉर्ज एवरेस्ट फिर से चर्चा में  हैं। इसलिए  कि उत्तराखंड सरकार ने उनके मसूरी स्थित आवास व प्रयोगशाला को पर्यटक स्थल के तौर पर विकसित किया है। सर जॉर्ज एवरेस्ट ने जीवन का एक लंबा समय मसूरी में  बिताया था। मंसूरी के हाथीपांव स्थित ऐतिहासिक जार्ज एवरेस्ट हाउस आवासीय परिसर) और इससे लगभग 50 मी0 दूरी पर स्थित प्रयोगशाला (ऑब्जर्वेटरी) का जीर्णोंद्धार किया गया है। इसकार्य में  जार्ज एवरेस्ट हाउस के मूल स्वरूप को बरकरार रखा गया। इसलिए ही  जार्ज एवरेस्ट चर्चा में हैं।

 जॉर्ज एवरेस्ट का जन्म 4 जुलाई 1790 में हुआ था। वे सन 1830 से 1843 के दौरान भारत के सर्वेयर जनरल रहे। वे वर्ष 1862 में रॉयल जियोग्राफल सोसाइटी  (The Royal Geographical Society ) के वाइस प्रेसिडेंट रहे। अपने कार्यकाल में उन्होंने ऐसे उपकरण पेश किए, जिनसे सर्वे का सटीक आकलन किया जा सकता है।   कर्नल सर जॉर्ज एवरेस्ट  का जन्म ४ जुलाई, 1790 को हुआ था। जबकि निधन  1 दिसंबर, 1866 को हुआ।  वे एक सर्वेक्षणकर्ता, भूगोलज्ञ और 1830- 1843  तक भारत के महा सर्वेयर रहे थे। मार्लो में एक सैन्य शिक्षा प्राप्त करने के बाद जॉर्ज एवरेस्ट ईस्ट इंडिया कंपनी में शामिल हो गए। वे 16 साल की उम्र में भारत आ गए थे। अंततः उन्हें ग्रेट ट्रिगोनोमेट्रिक सर्वे में विलियम लैंबटन का सहायक बनाया गया, और 1823 में सर्वेक्षण के अधीक्षक के रूप में लैंबटन की जगह ली गई। उन्हें एवरेस्ट को मुख्य रूप से भारत के सबसे दक्षिणी बिंदु से नेपाल तक, लगभग 2,400 किलोमीटर की दूरी पर मेरिडियन आर्क का सर्वेक्षण करने का दायित्व सौंपा गया था। इसे पूरा करने में 1806 से 1841 तक का समय लगा। उन्हें 1830 में भारत का महासर्वेक्षक बनाया गया, 1843 में सेवानिवृत्त होकर वे इंग्लैंड लौट आए।

माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई की अंतिम गणना मार्च 1856 में हुई। जब जॉर्ज एवरेस्ट (Mount Everest)भारत से जा चुके थे। हिमालय  पर्वत श्रेणियों की माउंट एवरेस्ट  विश्व की सबसे ऊंची चोटी है। इसकी ऊंचाई 8,848.८६ मीटर है। पहले इस पर्वत की ऊंचाई 29,002 फीट यानी 8,840 मीटर मापी गई थी। तब विश्व की सबसे ऊंची चोटी कंचनजंगा को माना जाता था। वैज्ञानिक सर्वेक्षणों में कहा जाता है कि हिमालय समेत इसकी ऊंचाई प्रतिवर्ष 2 सेमी के हिसाब से बढ़ रही है। कहा जाता है कि इस चोटी का नामकरण करते समय स्थानीय नामों पर भी चर्चा हुई, परंतु स्थानीय लोग  किसी एक नाम पर एकमत नहीं हुए। इसलिए अंतत: इसका नाम जार्ज एवरेस्ट के नाम पर रख दिया गया। वैसे खुद जॉर्ज एवरेस्ट अपने नाम पर इस चोटी का नाम रखने के पक्ष में नहीं थे।

माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई कैसे नापी गई। इसकी भी एक कहानी है। ब्रिटिशर्स ने विश्व के सर्वोच्च पर्वतों  की चोटियों की ऊंचाई करने के लिए सन् 1808 में भारत का त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण शुरु किया। यह कार्य दक्षिण भारत से शुरु कर सर्वे टीम उत्तर की ओर बढ़ी। इसके लिए विशाल और 500 किलोग्राम का थियोडोलाइट यानी विकोणमान की आवश्यकता पड़ती थी।  एक थियोडोलाइट को ले जाने के लिए कम से कम  12 लोगों की आवश्कता होती थी। सन् 1830 में इस कार्य के लिए सर्वेयर  टीम हिमालय के  पहाडों के पास पहुंची। परंतु, नेपाल ने इन उपकारणों के साथ अंग्रेजों को अपने यहां नहीं  घुसने दिया। नेपाल को भय था की अंग्रेज उन पर आक्रमण कर सकते हैं। सर्वेयर टीम के बार-बार अनुरोध पर भी नेपाल सरकार नहीं मानी। नेपाल ने उनके सभी अनुरोध ठुकरा दिये।इस पर  ब्रिटिशर्स को तराई से हिमालयी श्रेणियों की ऊंचाई पता करने के लिए मजबूर होना पड़ा। तराई क्षेत्र में बरसात के मौसम में तेज वर्षा और मलेरिया के कारण हालात बहुत कठिन हो जाते हैं। तीन सर्वे अधिकारी मलेरिया के कारण मारे गए, जबकि खराब स्वास्थ्य के कारण दो को अवकाश पर जाना पड़ा। इसके बावजूद सन् 1847 में  ब्रिटिशर्स लगभग 240 किलोमीटर  दूर से हिमालय कि शिखरों का विस्तार से अवलोकन करने लगे। कई करह की कठिनाइयों के बावजूद सन्  नवंबर, 1847 भारत के ब्रिटिश सर्वेयर जेनरल एन्ड्रयु वॉग ने सवाईपुर से सभी अवलोकन तैयार किए। यह सर्वे स्टेशन हिमालय के पूर्वी छोर पर स्थित है। उस समय कंचनजंघा को विश्व कि सबसे ऊंची चोटी के तौर पर नापा गया था।  परंतु, जेनरल एन्ड्रयु वॉग ने पाया कि इस के पीछे भी लगभग 230 किमी  दूर एक और चोटी है। वॉग के सह अधिकारी जौन आर्मस्ट्रांग, जो भी दूसरी जगह दूर पश्चिम में इस और चोटी को देखा । उस चोटी को उन्होंने चोटी ‘बी’ (peak b)  नाम दिया। वॉग ने बाद में लिखा कि अवलोकन दर्शाता है कि चोटी ‘बी’ कंचनजंघा से ऊंची थी। परंतु, अवलोकन बहुत दूर से हुआ था। इसके सत्यापन के लिए नजदीक से अवलोकन करना जरुरी था। इसके बाद अगले साल वॉग ने एक सर्वे अधिकारी को तराई में चोटी ‘बी’ को निकट से अवलोकन करने के लिए भेजा। परंतु, आसमान बादल छाए रहने से कार्य को रोक देना पड़ा। सन् 1849 में वॉग ने वह क्षेत्र जेम्स निकोलसन को सौंप दिया। निकोलसन ने 190  किमी दूर जिरोल से दो अवलोकन तैयार किए। निकोलसन तब अपने साथ बड़ा थियोडोलाइट लाए थे।   निकोलसन ने चोटी के सबसे नजदीक 174 किलोमीटर दूर से पांच विभिन्न स्थानों से 30 से भी अधिक अवलोकन प्राप्त किए।

इन अपने अवलोकनों पर आधारित गणना के लिए निकोलसन वापस पटना  आए। पटना में उसे प्राथमिक गणना में पीक ‘बी’ की औसतन ऊंचाई 9,200 मीटर मिली। यह अंतिम गणना नहीं थी, परंतु यह चोटी ‘बी’ कंचनजंघा से ऊंची थी। तभी निकोलसन को मलेरिया हो गया। उसे घर लौट जाने के लिए विवश होना पड्रा। परंतु मामला अभी खत्म नहीं हो पाया था। वॉग के  एक अन्य सहायक माईकल हेनेसी ने रोमन संख्या के आधार पर चोटीयों को नाम देना शुरूकिया। हेनेसी ने कंचनजंघा को पीक IX नाम दिया और चोटी‘बी’ को पीक XV नाम दिया।

सन् 1852 मई सर्वे का केन्द्र देहरादून में लाया गया। एक भारतीय गणितज्ञ राधानाथ सिकदर ने एवरेस्ट की ऊंचाई की गणना की थी। बाद में सिकदर और बंगाल के सर्वेक्षक ने निकोलसन के नाप पर आधारित त्रिकोणमितीय गणना का प्रयोग कर पहली बार विश्व की सबसे ऊंची चोटी का नाम इस विभाग के एक पूर्व प्रमुख के नाम पर एवरेस्ट (Mount Everest) दिया। इन ऊंचाई की नाप  का सत्यापन करने के लिए बार-बार गणना होती रही। और अंतत: यह घोषणा कर दी गई कि पीक XV सबसे  ऊंची है।

वॉग ने निकोलस के डाटा पर सन् 1854 में काम शुरु कर दिया और अपनी टीम के साथ लगभग दो साल काम किया। सन् 1856 के मार्च में उसने पत्र के माध्यम से कलकत्ता में अपनी खोज का पूरी तरह से उदघोष कर दिया कि कंचनजंघा की ऊंचाई 28,156 फीट यानी 8,582 मीटर पाई गई है, जबकि पीक XV की ऊंचाई 8,850 मीटर पाई गई। वॉग ने XV के बारे में निष्कर्ष निकाला कि यही सम्भव है कि यह विश्व में सबसे ऊंची चोटी है।  चोटी XV  की फिट में गणना करने  पर पता लगाया गया कि यह पूरी तरह से 29,000 फिट यानी 8,839.2 मी॰ ऊंची है।  पर इसे सार्वजनिक रूप में 29,002 फीट  यानी 8,839.8 मीटर बताया गया। 29,000 को अनुमान लगाकर ‘राउंड’ किया गया है ,  इस अवधारणा से बचने के लिए 2 फीट अधिक जोड़ा दिया गया था।

इसके बाद वर्ष 1865 में रॉयल ज्योग्राफिकल सोसायटी (Royal Geographical Society) ने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी का नाम Mount Everest रखा  दिया।  ये नामकरण सर जॉर्ज एवरेस्ट (Sir George Everest) के नाम पर हुआ था. जॉर्ज एवरेस्ट वर्ष 1830 से 1843 तक भारत में नक्शे और मानचित्र बनाने वाली संस्था सर्वे ऑफ ​इंडिया के प्रमुख थे।

यह थी विश्व की सबसे ऊंची चोटी सगरमाथा या चोमोलंगमा के माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) बनने की गाथा ।

 

 

 

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जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार विश्व की सबसे ऊंची चोटी सगरमाथा या चोमोलंगमा के माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) बनने की गाथा सुना रहा हूं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिन कर्नल सर जॉर्ज एवरेस्ट ( colonel Sir George Everest )  के नाम पर इस चोटी का नाम रखा गया है, उन्होंने इसे कभी नापा ही नहीं। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट (www.himalayilog.com )में पढ़ भी सकते हैं।

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