जब एक प्रधानमंत्री को भा गया था सरोला बामण का पकाया भोजन

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

www.himalayilog.com  / www.lakheraharish.com

 

 जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार एक ऐतिहासिक घटना का उल्लेख कर रहा हूं, जब  गढ़वाल की यात्रा पर आए एक प्रधानमंत्री को  सरोला बामण का बनाया स्वादिष्ट भोजन पसंद आ गया था। जब तक मैं इस घटना का उल्लेख करूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।

यह घटना उत्तरकाशी की है। तब एक प्रधानमंत्री को सरोला बामण का बनाया भोजन इस कदर पसंद आया की उन्होंने सरोला बामण के लिए बुढापे के लिए छत का इंतजाम कर दिया था। बात 25 जून 1984 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी तब उत्तरकाशी एक जनसभा को संबोधित करने आई थीं। यह जनसभा उत्तरकाशी  के मातली के भारत- तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी)  के परिसर में रखी गई थी। उत्तरकाशी में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi )का चार बार आना हुआ। प्रदेश प्रशासन और आईटीबीपी के आला अफसर  प्रधानमंत्री इंदिर गांधी के लिए भोजन तैयार करने के लिए बेहतर रसोइया तलाशने में लगी थी। काफी खोजबीन के बाद आईटीबीपी ने  महिडांडा स्थित  अपने कुक मथुरा प्रसाद बिजल्वाण को भोजन तैयार करने का दायित्व सौंप दिया।

इंदिरा गांधी (Indira Gandhi )को भोजन बहुत पसंद आया और  उन्होंने आला अफसरों से भोजन बनाने वाले कुक यानी रसोइया के बारे में पूछा। इस पर आला अफसर पहले तो सकपकाए, परंतु जब जब उन्होंने भोजन की प्रशंसा की तो उन्होंने मथुरा प्रसाद बिजल्वाण को बुलवा लिया। इंदिरा गांधी ने बिजल्वाण के बनाए भोजन की बहुत प्रशंसा की। प्रधानमंत्री के सामने खड़े मथुरा प्रसाद बिजल्वाण बहुत प्रसन्न थे। इंदिरा गांधी (Indira Gandhi )ने बिजल्वाण से उनका हालचाल तथा उनके घर परिवार के बारे में पूछा। इसके अलावा  उन्होंने बिजल्वाण से पूछा कि  वे रिटायरमेंट के बाद कहां रहेंगे। चूंकि मथुरा प्रसाद बिजल्वाण के पास उत्तरकाशी शहर में घर या जमीन नहीं थी। इसलिए वे चुप ही रहे। वे कुछ नहीं बोले। कहा जाता है कि  इस पर  इंदिरा गांधी ने जिला प्रशासन से उन्हें  निशुल्क भूमि उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे।  इस तरह स्वादिष्ट भोजन खिलाने पर सरोला बामण के लिए प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi ) ने छत की व्यवस्था कर दी थी।  यह घटना इंदिरा गांधी (Indira Gandhi )की हत्या से मात्र चार महीने पहले की है।  प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (Indira Gandhi )25 जून 1984 को उत्तरकाशी आई थीं, जबकि उसी साल 31 अक्टूबर 1984 को नई दिल्ली के सफदरगंज रोड स्थित उनके सरकारी आवास पर उनके अंगरक्षकों ने ही गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी।

बुजुर्ग मथुरा प्रसाद बिजल्वाण  हमेशा  इंदिरा गांधी (Indira Gandhi )से जुड़ी इस घटना का उल्लेख करते रहे। सरोला ब्राह्मण होने के कारण बिजल्वाण परंपरागत रूप से अपने अन्य परिजनों के साथ वर्ष 1950 तक टिहरी राजपरिवार के लिए भोजन बनाने का कार्य करते थे। राजशाही खत्म होने के बाद आइटीबीपी के एक अधिकारी ने उन्हें बतौर कुक फोर्स में नियुक्ति दे दी थी।  गढ़वाल में परंपरागत रूप से सामाजिक व धार्मिक समारोहों में भोजन के तहत भात  बनाने का दायित्व सरोला ब्राह्मणों के पास रहा है। सरोला के हाथ का बनाया भात समाज के सभी लोग खा लेते थे, जबकि बाकी ब्राह्मणों के हाथ का पकाया भात उनके परिजन व रिश्तेदार ही खाते थे। सरोला ब्राह्मणों को सरयूल भी कहा जाता है। गढ़वाल साम्राज्य में सरोला ब्राह्मण सबसे पहले प्रमाणित ब्राह्मण व्यवस्था मानी जाती है।

 यह था इंदिरा गांधी और सरोला बामण बिजल्वाण के बनाए स्वादिष्ट भोजन की कहानी।  यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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