नेपाली गोरखाओं के लिए विशेष- मंगोलों से शुरू हुआ ‘खान’ सरनेम, मुसलमानों से नहीं

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खान नहीं, मेवाड़ का क्षत्रिय था नेपाल का शाह राजवंश

               परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

                   हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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हिमालयीलोग यूट्यूब आने के बाद नेपाली (Nepali) तथा भारतीय गोरखा Indian Gorkha) समाज के कई बंधुओं से यह सुनने को मिलता है कि गोरखा शब्द का अंतिम आखर खा यानी खां यानी खान है। जिसका अर्थ राजा होता है। वे दलील भी देते हैं कि गोरखा का गुरु गोरखनाथ (Guru Gorakhanath) या गोरक्षा से कोई संबंध नहीं है। कई तो यह भी दलील देते हैं कि खस समेत गोरखा समाज में शामिल सभी जातियों का संबंध तिब्बत से है। कुछ यह भी कुतर्क देते हैं कि नेपाल के अंतिम शाह राजवंश का पहला राजा गोर खान था, जो कि तिब्बत  (Tibet)से आया था और गोरखा का शाह राजवंश भी खान यानी मुसलमान था, जो बाद में क्षत्रिय हो गया। जबकि सच्चाई यह है कि नेपाल का शाह राजवंश मेवाड़ का क्षत्रिय था, खान नहीं।  

खास बात यह है कि इस तरह की भ्रांति में कई खस लोग भी शामिल दिखते हैं। जबकि ये सभी बातें सत्य से बहुत दूर हैं।

इन सभी भ्रांतियों को दूर करने के लिए ही यह वीडियो लाया गया है। पहले तो यह बात जान लीजिए कि  संपूर्ण तिब्बत में कभी भी इस्लाम नहीं रहा है। वहां बहुत पहले बौद्ध धर्म आ गया था। वहां के लोगों ने कभी भी खान टाइटल का प्रयोग नहीं किया। दूसरा सत्य यह भी है कि खान (Khan) टाइटल का मुसलमानों से  कोई संबंध नहीं है। यह अलग बात है कि अब कुछ मुसलमान इस टाइटल को लगाते हैं। वैसे मैथिल ब्राह्मणों की एक शाखा भी खां सरनेम का प्रयोग करती है।  इतिहास साक्षी है कि मंगोलिया के लोगों ने सबसे पहले खान शब्द प्रयोग किया था। आज भले ही खान शब्द को इस्लाम या एक धर्म विशेष से जोड़ कर देखा जाता है, परंतु मूल रूप में खान शब्द का इस्लाम या मुस्लिम समाज से कोई पुराना संबंध नहीं है। खास तौर पर इस्लाम की सरजमीं अरब और अरबी समाज संस्कृति से खान का रिश्ता नहीं है

खान शब्द वास्तव में विश्व की प्राचीन भाषा संस्कृत का भी शब्द है। खान का अर्थ होता है भूमि के भीतर खोदा गया गहरा गड्ढ़ा, जहां से धातु, कोयला आदि निकाले जाते हैं। इस कार्य को खादान यानी माइन कहते हैं।  इसके अलावा खान शब्द का अर्थ खजाना व भंडार भी होता है। जबकि मंगोल (Mangol) व तुर्की  भाषा में खान शब्द राजाओं या सरदारों की उपाधि थी। इसका अर्थ तब  स्वामी, सरदार, मालिक,  कई गांवों का मुखिया,  धनी व्यक्ति था। यह बाद में मुसलमानों, विशेषतौर पर पठानों में एक कुलनाम या सरनेम भी बन गया।

खान शब्द को लेकर कई अवधारणाएं हैं।  कहा जाता है कि दुनिया के लगभग चार करोड़ लोगों के हत्यारे चंगेज खान को मंगोलों की सभा ने अपना सरदार घोषित कर उसे कागान की उपाधि दी थी। यह कागान शब्द आगे चलकर खान में बदल गया। कागान का अर्थ होता है सम्राट या सरदार। माना जाता है कि खान शब्द के मूल में मंगोल और चीनी संस्कृति का भाषायी आधार शामिल है। माना जाता है कि इस शब्द की उत्पत्ति संभवतः चीन के  हान वंश से हुई है। हान वंश ने दो सदी ईसा पूर्व से लेकर ईस्वी 220 तक चीन में शासन किया। चीन के मध्य प्रान्त शांक्सी से होकर गुजरने वाली हानशुई नदी के नाम पर चीन के हान वंश का नामकरण हुआ। मंगोलों ने जब मध्य चीन के राज्यों पर कब्जा करना शुरू किया तब उपाधि के तौर पर उस क्षेत्र के हान वंश के नाम पर कुछ नए शब्द जैसे काघान (kaghan),कागान (kagan), खाकान (khakan) या कान (kan) सामने आए। चीनी भाषा का एक उपसर्ग है के (ke) है।  जिसमें महानता, सर्वोच्चता का भाव है। हान (han) से पहले के जुड़ने से के –हान  (ke-han) बना।  इससे ही खान शब्द निकला। मंगोल भाषा में इन सभी नामों में शासक या सत्ता के सर्वोच्च पदाधिकारी का भाव रहा है।

इसलिए माना जाता है कि खान शब्द तुर्क मंगोल संस्कृति से उपजा शब्द है। यह जानना दिलचस्प है कि मंगोल चंगेज खान और कुबलाई खान मुसलमान नहीं थे। चंगेज खान चीन के शॉमन पंथ तथा कुबलाई खान बौद्धधर्म का अनुयायी था।  खान वंशावली या खान सम्प्रभुता को अंग्रेजी में खानेट कहा जाता है। इतिहास में कई खानेट दर्ज है जो दसवीं सदी से शुरू होते हैं मसलन काराखानेट या इलेकखानेट। इनमें से ज्यादातर फारस या मध्यएशिया से लेकर सुदूर पूर्वी योरप के बल्गारिया तक फैले थे।  सुदूर मंगोलिया और मध्यचीन में जन्मे खान शब्द की पहचान कभी मंगोल वंश के शासकों ने अपनी सम्प्रभुता की सबसे बड़ी पदवी के तौर गढी थी। यह उसी तरह था जैसे कि भारत में स्वामी शब्द में शक्तिवान, पिता, पति, पालक, शासक, मालिक अर्थात सर्वोच्चता के भाव निहित हैं। खान शब्द  भी इसी भाव से विकसित हुआ था।

यह अवधारणा भी है कि खान या खां मूल रूप से एक अल्ताई उपाधि है। यह शासकों और अत्यंत शक्तिशाली सिपहसालारों को दी जाती थी। समय के साथ तुर्की-मंगोल कबीलों के माध्यम से पूरे मध्य एशिया में इस्तेमाल होने लगी। जब इस क्षेत्र के लुटेरों व आक्रमणकारियों ने भारतीय उपमहाद्वीप, ईरान,  अफगानिस्तान और अन्य क्षेत्रों पर लूटपाट कर अपने राज्य स्थापित करने शुरू किए तो खान शब्द भी यहां पहुंच गया।

खान शब्द का एक और रूप खागान भी है। इसका अर्थ है खानों का खान या खान-ए-ना। महिलाओं के लिए  इसकी समकक्ष उपाधियां खानम और खातून हैं। मंगोल ज़माने के आरम्भिक काल में खान का ओहदा बहुत कम लोगों के पास होता था, लेकिन समय के साथ यह सम्राटों-राजाओं द्वारा अधिक खुलकर दिया जाने लगा और साधारण बन गया।

इतिहास में सबसे पहले काघान के तौर पर रुआन कबीले से जुड़े मंगोल शासक मुरुंग तुयुहुन का नाम दर्ज है जो ईसा की दूसरी सदी के उत्तरार्ध में दक्षिणी मंगोलिया से सटी चीन की उत्तरी पट्टी का शासक था। खान उपाधि लगाने वाले शासकों के तौर पर सबसे व्यवस्थित वंशावली मंगोलिया केरुआन  कबीले में मिलती है। इससे जुड़े कुछ नाम इस तरह हैं।  क्योदोफा खान, इकुगाई खान, चिल्लिन खान, चू खान, फुमिंगदुन खान और तुहान खान। ये थे प्रारंभिक खान सरनेम, जो कि सभी तीसरी सदी से पांचवी सदी तक चीन के उत्तरी हिस्से के शासक रहे। ये मुसलमान नहीं थे।

जानने लायक यह है कि भारत (India),  नेपाल (Nepal), चीन (china) और तिब्बत (Tibet) की सभ्यताओं के विकास के लंबे समय बाद ही इस्लाम धर्म का आविर्भाव हुआ।  बारहवी से चौदहवीं सदी तक भी चीन और मंगोलिया के शासक काघान या खाकान उपाधि धारण करते रहे थे और अनेक मंगोल कबीलो में यह शब्द राज्यप्रमुख के तौर पर अपनी पहचान बना चुका था। मुस्लिम शासक के तौर पर पहला खाकान क्रूर व आततायी तैमूर लंग यानी तैमूर लंगड़े का उल्लेख मिलता है। हालांकि मंगोलिया और चीन में तैमूर के समकालीन कई खाकान थे जो बौद्ध, नव-ताओवादी, नव-कन्फ्यूशियसवादी और शॉमन विचारधारा को माननेवाले थे। युआन वंश में भी कई खान हुए हैं। कुबलाई खान इस वंश का संस्थापक माना जाता है।  मार्कोपोलो ने अपने प्रसिद्ध यात्रा वर्णन में कुबलाई खान के बौद्ध होने और चीन में उसे खाकान कहने वाले कई प्रसंगों का उल्लेख किया है।

यह भी कहा जाता है कि खान (Khan) शब्द कागान अथवा अरबी के खाकान से बना है। परंतु कुछ विद्वान मानते हैं कि यह शब्द अरबी नहीं है। क्योंकि इसका संबंध संभवत: चीनी कुआं से है। मुसलमानों में सर्वप्रथम 10 वीं सदी में मध्य एशिया के तुकों के एक वंश इलेक के लिए खान प्रयुक्त हुआ। 12वीं तथा  13वीं सदी में तुर्क लोग इसका प्रयोग राज्य के सर्वोच्च अधिकारी के लिए किया करते थे। भारत में लुटेरे मुगल खानेखाना की उपाधि देने लगे थे।

यह भी जानने लायक है कि भारत में मुहम्मद बिन कासिम से लेकर बाबर तक जितने भी मुस्लिम हमलावर, आक्रांता व लुटेरे आए उनमें अधिकतर के नाम के साथ  खान सरनेम  नहीं लगा था। मंगोल आंक्राता चंगेज खान के नाम में खान अवश्य आता है, परंतु वह  मुसलमान नहीं था। उसका धर्म इस्लाम (Islam) नहीं, बल्कि शॉमन पंथ था। दरअसल, चंगेज खान नाम के साथ खान सरनेम लगा होने  से अधिकतर लोग यह मान लेते है कि वह मुसलमान था, जब कि ऐसा  है नहीं। उसका असली नाम तेमुजिन था।

अब असली मुद्दे पर आते हैं। नेपाल  व भारत के वे गोरखा, जो खुद को खान शब्द से जोड़ने का प्रयास कर रहे हैं। उन्हें यह भी याद रखना चाहिए कि  यह शब्द उस चंगेज खान से जुड़ा है, जो कि चार करोड़ लोगों की मौत का जिम्मेदार था।  उसका  नाम सामने आते ही घृणा से मन भर जाता है। वह एक बहुत क्रूर शासक था। वह राक्षस समान था। अपने विजयी अभियानों के दौरान वह जिस भी क्षेत्र में जाता था, वहां के सभी शहरों को तबाह कर देता था और लोगों को मार काट देता था। असहाय महिलाओं को  हवस के लिए अपने साथ ले जाता था।  इतिहास साक्षी है कि उस क्रूर  राक्षस ने एक अनुमान के अनुसार अपने समय की 11 फीसदी आबादी का सफाया कर दिया, जो लगभग 4 करोड़ बनती है। उसकी बर्बरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उसने सन 1219 में ईरान पर हमला कर वहां की 75 प्रतिशत आबादी को समूल नष्ट कर दिया था।  इतिहासकारों के अनुसार चंगेज़ खान के हमले के समय जितनी आबादी पूरे ईरान की थी, उतनी आबादी वापिस होने में 750 साल का लंबा समय लग गया। उज्बेकिस्तान के बड़े शहर बुखारा और राजधानी समरकंद को उसने पूरी तरह जला कर राख कर दिया था।  बुखारा की 10 लाख की आबादी में से सिर्फ 50 हजार लोग ही जिंदा बच पाए थे। उस क्रूर व निर्दयी ने चीन की दीवार को भेदकर उसकी राजधानी बीजिंग पर कब्जा कर लिया था। वहां भी उसने बड़ी संख्या में लोगों की हत्या कर दी थी। ऐसे क्रूर इंसान से कोई भी सभ्य समाज अपने को नहीं जोड़ना चाहेगा। यह जानना आवश्यक है की आर्य, मंगोल, नीग्रो आदि नश्ल से खुद को जोड़ना अलग बात है और क्रूर व निर्दयी  चंगेज खान से जोड़ना अलग बात। मंगोल मूल के लोग यदि चीन, तिब्बत के किसी महान राजा से खुद को जोड़ते हैं, तो यह अच्छी बात है। परंतु क्रूर व निर्दयी  चंगेज खान से जोड़ने की बात भला कोई सोच भी कैसे सकता है।

इसलिए यह  बात सत्य है कि खान शब्द का मुसलमानों से कोई लेना देना नहीं है। भारत में मैथिल ब्राह्मण भी खां सरनेम लिखते हैं। जम्मू के हिंदू गुर्जर भी खान लिखते रहे हैं। महाराष्ट्र में भी खानदेश नाम का क्षेत्र है।

 इसलिए गोरखा बंधुओं को यह भी जान लेना चाहिए कि नेपाल व भारत में खस (Khas), किरात(kirat), मेवार (Mewar) आदि जातियां तो सदियों पहले  तब में रह रही हैं, जब इस्लाम का उदय भी नहीं हुआ था। इस तरह यह कहना सौ प्रतिशत गलत है कि नेपाल के गोरखा या शाह राजवंश के लोग पहले खान थे। सच्चाई यह है कि यह शाह राजवंश चित्तौड़ से नेपाल आया था। नेपाल के पहले शाहवंशी राजा पृथ्वीनारायण शाह (King Prithavi Narayan Shah) ने ही नेपाल का एकीकरण किया और नेपालियों को गोरखा पहचान दी। वे नाथपंथी गुरु गोरखनाथ के भक्त थे। गोरखों में मंगोल नश्ल के हो सकते हैं, परंतु वे खान नहीं हैं। क्योंकि तिब्बत में भी खान नहीं होते हैं। आप लोग स्वयं भी इतिहास के पन्ने उलट-पलट सकते हैं। कोई सुझाव व राय हो तो अवश्य दें।  

 


 

               

दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार गोरखाओं को यह बताने जा रहा हूं कि खान टाइटल का गोरखा और तिब्बत से कोई लेना-देना नहीं हैं। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकारों आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट ( www.himalayilog.com) में पढ़ भी सकते हैं।सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज. 

आशा है मेरा यह लघु शोध आपको पसंद आया होगा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग (Himalayilog) चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला (Ham Phar  Aunla)– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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