जानिए – तिब्बती राजा और चीनी राजकुमारी का महल कैसे बन गया दलाई लामा का पोताला पैलेस

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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तिब्बत (Tibet)  भी हिमालयी क्षेत्र में है। भले ही आज उस पर चीन (china) का अवैध कब्जा है,लेकिन वह भारतीय संस्कृति (India)  का अभिन्न हिस्सा रहा है। भगवान भोलेनाथ का कैलाश और मानसरोवर आज के तिब्बत में है। कभी तिब्बत के बड़े भूभाग पर गढ़वाल के पवांर और कुमायुं के चंद राजाओं का शासन रहा है। पौराणिक ग्रंथों में तिब्बत को त्रिविष्टप कहा गया है। आर्य और खसों को लेकर  अंग्रेजों की थ्योरी के उलट भारत में कई विद्वान मानते हैं कि तिब्बत ही प्राचीन आर्यों की भूमि थी।  पौराणिक ग्रंथों के अनुसार वैवस्वत मनु ने जल प्रलय के बाद इसी क्षेत्र को अपना निवास स्थान बनाया था और फिर यहीं से उनके कुल के लोग संपूर्ण भारतवर्ष व संसार में फैल गए थे। तिब्बत में भगवान बुद्ध को पूजा जाता है। इसी तिब्बत में  सातवीं सदी में पोटाला महल बनाया गया था। उसकी रोचक कहानी आपके लिए लाया हूं। चीनी कब्‍जे  से पहले यह महल  तिब्बती लोगों के धार्मिक नेता दलाई लामा का आवास रहा है। निर्वासित बौद्ध धर्म गुरु व  14वें दलाई लामा  चीनी आक्रमण के बाद 1959 में भागकर भारत आ आए थे। तिब्बत की राजधानी ल्हासा शहर की उत्तर पश्चिमी भाग की लाल पहाड़ी पर स्थित दलाई लामा का आवास को पोटला पैलेस  (Potala Palace)  या पोताला महल के नाम से जाना जाता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार पोताला महल का निर्माण सातवीं शताब्दी में  थुपो या थुबो राजवंश के तिब्बती राजा सोंगजान ने  चीन के थांग राजवंश की राजकुमारी वुनछग के साथ शादी के लिए बनवाया था। राजा सोंगजान को सुंचान्कांबू या सुंज्यांगकांबू भी कहा जाता है। लाल पहाड़ी पर बने होने के कारण तब पोताला महल को लाल पहाड़ी भवन कहा जाता था।

पोताला का अर्थ पुतल है। कहा जाता है कि पुतल अवलोकनतेश्वर के निवास द्वीप का नाम है, इसलिए पोताला भी दूसरा पुतल पर्वत कहलाता है। ऐतिहासिक प्रमाणों के अनुसार पोताला महल का निर्माण सातवीं शताब्दी में आरंभ हुआ था। थुपो राजवंश के तिब्बती राजा सोंगजान का  चीनी  थांग राजवंश की राजकुमारी वुनछङ के साथ शादी के लिए बनवाया गया यह पोताला महल  लंबे समय तक  थुपो राज्य का राजनीतिक केन्द्र रहा था। नौवीं शताब्दी में थुपो राज्य का पतन  हो गया। तिब्बत में लम्बे अरसे तक गृह युद्ध चलता रहा। यह लाल पहाड़ी भवन भी युद्ध से ग्रस्त हो कर खंडहर बन गया। वर्ष 1645 से पांचवें दलाई लामा ने लाल पहाड़ी भवन का पुनर्निर्माण शुरू किया।  विभिन्न कालखंड में महल का विस्तार किया जाता रहा, जो कुल तीन सौ साल तक जारी रहा।   इसके बाद यह  सभी दलाई लामाओं का निवास बन गया। पोताला महल तिब्बती बौद्ध धर्म की ठेठ शैली में निर्मित भवन निर्माण है, परंतु इसमें  चीन की हान जाति की वास्तु कला स्तंभों पर चित्र नकाशी अपनायी गई है, जो इस बात का साक्षी है कि आज से लगभग चौदह सौ साल पहले चीन के हान और तिब्बत जातियों में शादी ब्याह का रिश्ता कायम हुआ था। इससे  तिब्बत और हान जातियों की एकता स्थापित हुई थी।

लगभग 14 सदी पहले तिब्बती राजा थांग और चीनी राजकुमारी के विवाह की यह कहानी आज भी हान और तिब्बती लोगों की स्मृतियों में है। उनकी कथाओं में है. उनकी जबान पर है। सातवीं शताब्दी की बात थी,। ईसा की सातवीं शताब्दी में तिब्बत में शक्तिशाली थुबो या थुपो राज्य की स्थापना हुई। तब तिब्बती थुबो राज्य के राजा सोंगजान गाम्बो गद्दी पर बैठे।  उसके सुशासन में तिब्बत की शक्ति बहुत बढ़ी। तब चीन के केन्द्रीय भाग में थांग राजवंश के सम्राट थांग थाईचुंग का राज्य था। और राजा सोंगजान गाम्बो थांग राजवंश के सम्राट से उस की पुत्री का हाथ मांगने के लिए अपना एक दूत थांग दरबार में भेजा। तिब्बती राजदूत का नाम गोलतुंगजान था, जो प्रकांड बुद्धिमता से देश भर में प्रसिद्ध था ।

राजा सोंगजान परिश्रमशील, बुद्धिमान, प्रजा से प्यार करने वाला महाकांक्षी शासक था। उसके शासन काल में थुबो राज्य दिनोंदिन शक्तिशाली बनता चला गया। उसने चीन के थांग राज्य के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करने  तथा  वहां की उन्नत तकनीक व संस्कृति सीखने के लिए थांग राजवंश की राजकुमारी वुनछङ से विवाह का प्रस्ताव भेजा।  इसके लिए  उसने अपने विश्वसनीय मंत्री लुतुंगजान को विवाह प्रस्ताव के लिए उपहार सहित थांग राजवंश की राजधानी छांगआन भेजा। जब राजा सोंगजान  का विशेष दूत लुतंगजान छांगआन पहुंचा तो वहां उसे पता चला कि थांग राजवंश के कई पड़ोसी राज्यों ने भी सुन्दर व सुशील राजकुमारी वुनछङ से विवाह का प्रस्ताव पेश करने विशेष दूत भेजे थे। थांग राजवंश के सम्राट थाईचुंग ने समस्या के समाधान के लिए विभिन्न देशों से आए दूतों को बुद्धि की स्पर्धा के लिए पांच पहेलियां पेश की। शर्त थी कि जिस देश का राजदूत पहेलियों का सही उत्तर  दे देगा, उसके  देश के राजा का राजकुमारी वुनछङ के साथ शादी का प्रस्ताव स्वीकार किया जाएगा।

सम्राट थांग थाईचुंग थांग सम्राट ने बुद्धि-परीक्षा के लिए जो पहली पहेली दी, वह थी कि पतले महीन रेशमी धागे को एक नौ मोड़ों वाले मोती के अन्दर से गुजार कर जोड़ दे। मोती के अन्दर नौ मोड़ों का छेद था, नर्म पतले धागे को उस के अन्दर घुसेड़कर निकालना कांटे का काम था, अन्य सभी राज्यों के दूतों को हार मानना पड़ा। लेकिन तिब्बती दूत गोलतुंगजान असाधारण बुद्धिमान था, उस ने धागे को एक छोटी चींटी की कमर में बांधा और उसे मोती के छेद पर रखा और उस पर हल्की सांस का एक फूंक मारा। चींटी  धीरे धीरे मोती के अन्दर घुसकर दूसरे छोर से बाहर निकल गई। , इस तरह मोती से धागा जोड़ने की पहेली हल हो गयी।

दूसरी   बुद्धि परीक्षा  थी कि सभी राज्यों के दूतों को सौ-सौ बकरी तथा सौ-सौ जार शराब दिए गए और सौ बकरियों का वधकर उन्हें शराब के साथ खाने को कहा गया। अन्य सभी दूत सौ बकरी और सौ जार शरीब खाने में असमर्थ साबित हुए और जल्दी ही शराब से चूर हो गए। तिब्बती दूत गोलतुंगजान ने अपने मातहतों को छोटे प्याले से धीमी गति से शराब पीते हुए बकरी का वधकर चमड़ा उतारने तथा पकाकर खाने को कहा। अंत में उन्होंने यह काम भी पूरा किया गया।

तीसरी  बुद्धि परीक्षा थी कि सौ मादा घोड़ों और सौ बछेड़ों का संबंध पहचाना जाएगा। गोलतुंगजान ने सौ बछेड़ों को मादा घोड़ों से अलग कर बाड़ों में एक रात बन्द करवाया और उन्हें भूखे रहने दिया गया। दूसरे दिन, जब उन्हें बाहर छोड़ा गया, तो   प्रत्येक  भूखा बछड़ा अपनी अपनी  मां  घोड़े के पास दौड़ कर जा पहुंचा और मादा घोड़े का दूध पीने लगा, इस तरह सौ मादा घोड़ों और सौ बछेड़ों का रिश्ता साफ हो गया।

चौथी परीक्षा के लिए थांग सम्राट ने सौ लकड़ी के डंडे सामने रखवाए, दूतों को डंडों के अग्र भाग और  पीछे के भाग को पहचानने को कहा गया। दूत गोलतुंगजान ने लकड़ी के डंडों को पानी में डाल दिया। लकड़ी के डंडे का अग्र भाग भारी था और पीछे का भाग हल्का, पानी में भारी भाग पानी के नीचे डूबा और हल्का भाग ऊपर निकला। अंततः तिब्बती दूत ने फिर परीक्षा पारित की।

अंतिम परीक्षा ज्यादा कठिन थी, थांग सम्राट ने अपनी पुत्री राजकुमारी वुनछङ को समान वस्त्र पहनी तीन सौ सुन्दरियों की भीड़ में खड़ा कराया और सभी दूतों से उसे अलग पहचाने को कहा। गोलतुंगजान ने राजकुमारी वुनछङ की एक बूढ़ी पूर्व सेविका से राजकुमारी की शक्ल सूरत पूछी। उससे  मालूम हुआ कि राजकुमारी के माथे पर भौंहों के बीच एक लाल मसा है। बूढी सेविका के रहस्योद्घाटन के मुताबिक तिब्बती दूत राजकुमारी वुनछङ को पहचाने में सफलता प्राप्त की।

लुतुंगजान के सही उत्तर को देख कर थांग थाईचुंग ने उसकी बुद्धिमता आजमाने के लिए एक अतिरिक्त पहेली जोड़ी, यानी उससे मांग है कि वह पांच सौ बुरका से चेहरा ढंकी युवतियों में से राजकुमारी वुनछङ को पहचान ले। राज महल के बाहर के लोगों में से किसने भी राजकुमारी को नहीं देखा था, उसे पांच सौ समान वस्त्र पहनी युवतियों में पहचान लेना काफी मुश्किल है, सभी अन्य दूत लाचार हो गए। परन्तु लुतुंगजान ने पता लगाया था कि राजकुमारी वुनछङ को एक किस्म का विशेष गंध वाला इत्र पसंद है, इस इत्र का सुगंध मधुमक्खी भी पसंद करती है। राजकुमारी को पहचानने के दिन लुतुंगजान ने अपने पास कुछ मधुमक्खियां छुपा लीं। उसने  फिर वे मधुमक्खी वहां छोड़ दीं।  मधुमक्खी राजकुमारी का वह विशेष सुगंध सुंघ कर उसी के पास उड़ गईं। इस तरह लुतुंगजान ने एक बार फिर जीत ली। इस तरह अपनी अद्भुत बुद्धिमता से तिब्बती दूत गोलतुंगजान ने सभी परीक्षाओं में जीत ली

थांग सम्राट थाईचुंग ने सोचा कि तुबो राज्य का मंत्री  जब इतना बुद्धिमान है, तो उसका राजा भी अवश्य  बुद्धिमान व विवेकशील होंगे। थांग सम्राट ने अपनी पुत्री को तिब्बत के थुबो राजा सोंगजान गाम्बो के साथ विवाह करने की सहमति दे दी। उसने असंख्य संपत्तियों के साथ राजकुमारी को तिब्बत भेजा। इस शादी ब्याह पर तिब्बत के तुबो राज्य के राजा सुंचान्कांबू को अपार खुशी हुई और राजकुमारी वुनछङ से विवाह के लिए उस ने 999 कमरों वाला एक भव्य महल बनाने का आदेश दिया। इस तरह ल्हासा में पोताला महल निर्मित हुआ।  राजकुमारी वुनछङ से विवाह प्रस्ताव की यह रुचिकर कहानी भी पोताला महल के भित्ती चित्रों में वर्णित हुई है। तिब्बत में राजकुमारी वुनछङ ने वहां के विकास तथा बौद्ध धर्म के प्रसार के लिए योगदान दिया था और अब तक उसे तिब्बती जनता बहुत सम्मान देती है।

पोताला  महल का निर्माण तिब्बती वास्तुशैली में किया गया है। इसका पुनर्निर्माण 1645  में किया गया। 17वीं शताब्दी में इसके पुनर्निर्माण के बाद यह महल विभिन्न पीढियों के दलाई लामा का आवास बनाया गया। यह तिब्बत के राजनीतिक व धार्मिक मिश्रित शासन का केन्द्र था। वर्ष 1994 में पोताला महल विश्व सांस्कृतिक विरासत सूची में शामिल किया गया। पोताला महल तीन भागों में बंटा हुआ है, पूर्वी भाग में श्वेत महल है, जहां दलाई लामा रहते थे, मध्य भाग में लाल भवन है, जहां बुद्ध भवन तथा विभिन्न दलाई लामाओं के स्तूप रखे गए हैं और पश्चिमी भाग में पीला भवन है, जिसमें भिक्षुओं के विहार स्थित हैं। दलाई लामा का महल लगभग 13 मंजिल ऊंचा है। इसमें लगभग एक हजार से ज्यादा कमरे हैं और खास बात यह है कि इसमें लगभग दो लाख मूर्तियां व दस हजार मठ स्थित हैं।  आस्था का प्रमुख केंद्र पोताला महल को ‘बुद्ध पर्वत’ के रूप में भी जाना जाता है। यह भी कहा जाता है कि राजा ने तपस्या करने के लिए बनवाया था। यह महल गुफा नुमा है, जिसके भीतर सुंचान्कांबू और उसकी रानी वनछङ  तथा उसकी दूसरी रानी व नेपाल की राजकुमारी भरीकुटी और उसके प्रमुख मंत्री लुतुंगजान आदि की मूर्तियां भी विराजमान हैं। यह सातवीं शताब्दी के तिब्बती तुबो राजकाल की कलाकृति हैं और (Tibetan Buddhism ) अमोल सांस्कृतिक धरोहर है।  सदियों से पोताला महल भूकंप तथा आकाशी वज्रपात की परीक्षा में खरा उतरे पहाड़ पर शान से खड़ा रहा है। इस महल में एक हजार से अधिक कमरे व भवन हैं। पहले दलाई लामा से 13वें दलाई लामा तक के सब पार्थिव शरीर पोताला महल में समाधिस्थ हुए हैं। उनके लिए स्तूप बनाए गए है। हर स्तूप पर सोने के पन्ने जड़ित हैं व अत्यंत मूल्यवान रत्नों से सजा है। यह महल बहुत विशाल और आलीशान है,। जो विश्व छत की चमकीली मोती के नाम से मशहूर है। पोताला महल तिब्बत के विभिन्न कालों के दलाई लामाओं के शासन, राजनीतिक गतिविधि तथा धार्मिक आयोजन का स्थल होने के साथ साथ उन का निवास स्थान भी था। वह तिब्बत में अब तक सुरक्षित सबसे बड़ा बहुमंजिला प्राचीन निर्माण है। परंतु दुख की बात है कि अब यह विस्तारवादी कम्युनिस्ट चीन के कब्जे में है।


 

 

 

 

दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार तिब्बत की एक ऐतिहासिक कहानी लेकर आया हूं। तिब्बती राजा और चीनी राजकुमारी का महल कैसे दलाई लामा का पोताला पैलेस बन गया।  जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकारों आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को वेबसाइट हिमालयीलोग  www.himalayilog.com में पढ़ भी सकते हैं।सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज. 

दोस्तों यह था तिब्बत के पोताला महल का कुछ इतिहास । यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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