हिमालयी श्रृंखला हिंदुकुश कैसे लगी बर्बर व धर्मांध लोगों के हाथ

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 अफगानिस्तान में कभी गाई जाती थी वेदों की ऋचाएं

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज

अफगानिस्तान और पाकिस्तान को छोड़कर भारत वर्ष के इतिहास की कल्पना नहीं की जा सकती। अफगानिस्तान  7वीं सदी तक अखंड भारत का एक हिस्सा था। अफगानिस्तान में कभी वेदों की ऋचाएं गाई जाती थी। अफगान पहले एक हिन्दू राष्ट्र था। बाद में यह बौद्ध राष्ट्र बना और अब वह एक इस्लामिक देश है।  इसी क्षेत्र में है हिंदुकुश पर्वत। हिंदुकुश पर्वत हमारे हिमालय का ही एक भाग है। यह पर्वत श्रृंखला हिन्दूकुश उत्तरी पाकिस्तान से मध्य अफगानिस्तान तक फैली है। इस की लंबाई लगभग 800 किमी और चौड़ाई 200 किलोमीटर से भी अधिक हैं। पाकिस्तान तो 1947 तक भारत का हिस्सा था, जबकि कभी अफगानिस्तान भी भारत का ही हिस्सा हुआ करता था। इस दोनों देशों में वैदिक आर्य सभ्यता फलती फूलती रही। बाद में यां बौद्ध धर्म का बोलबाला हो गया और उसके बाद इस्लाम।

हिन्दूकुश पर्वतमाला पामीर पर्वतों से जाकर जुड़ती है। इसे हिमालय की एक उपशाखा माना जाता है। पामीर का पठार, तिब्बत का पठार और भारत में मालवा का पठार पृथ्वी पर रहने लायक सबसे ऊंचे पठार माने जाते हैं। कहा जाता है कि प्रारंभिक मनुष्य इसी पठार पर रहते थे।  हिन्दूकुश पर्वतमाला के बीचोंबीच सबसे ऊंचा पहाड़ पाकिस्तान के खैबर-पख्तूनख्वा प्रांत के चित्राल जिले में स्थित है। इसे अब तिरिच मीर पर्वत कहते हैं।

हिंदुकुश, जैसा कि नाम से भी साफ है, इसपर्वत श्रंखला से हिंदुओं का निकट का नाता रहा है। इसका संबंध रामायण काल से भी जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि भगवान राम के बेटे कुश ने इस पर्वत पर तपस्या की थी।  तपस्या के बाद उन्होंने यहां पर अमृत दीक्षा ली। यह वह इस पूरे क्षेत्र पर अपना अधिकार रखते थे।  यही वजह है कि इस पर्वतमाला के आसपास रहने वाली कई जातियों के नाम कुश से जुड़े हैं। हिंदुकुश पर्वतमाला हिमालय के उस पार से भारत में आने का आसान रास्ता भी कहलाता है। क्योंकि इस पर्वत पर कई दर्रे हैं, जिसके उस पार कजाकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान,उज्बेकिस्तान, चीन, रशिया, मंगोलिया, रूस  आदि जगह जा सकते हैं।

सबसे पहले इस पर्वत श्रंखला के नामकरण को लेकर बात करते हैं। कहा जाता है कि  पहले इस पर्वत का नाम पारियात्र पर्वत था। कुछ विद्वान इसे परिजात पर्वत भी कहते हैं। इसका दूसरा नाम हिन्दुकेश भी था। इसे हिन्दू केश इसलिए कहते थे कि यहां भारत की सीमा का अंत होता है। केश का अर्थ होता है अंत। जैसे हमारे शरीर में केश यानी बाल अंतिम सिरे के समान होते हैं। यहां तक भारत में रहने वाले हिन्दुओं का क्षेत्र था अर्थात हिन्दुओं के क्षेत्र की सीमा का अग्रभाग।

यह भी कहा जाता है कि  यूनानी आक्रमणकारी सिकंदर ने भारत पर हमला करते हुए इस पर्वत श्रंखला पर ही कब्जा कर लिया था। कहा जाता है की सिकंदर ने ही  यूनानी भाषा में इसे ‘कौकासोश इन्दिकौश’ यानी ‘भारतीय पर्वत’ नाम से पुकारा। बाद में इनका नाम इन्दिकौश से  ‘हिन्दूकुश’, ‘हिन्दू कुह’ और ‘कुह-ए-हिन्दू’ पड़ा। ‘कुह’ या ‘कोह’ का मतलब फारसी में ‘पहाड़’ होता है।

हिंदुकुश नामकरण को लेकर एक सबसे दुखद कारण भी है। आज के तालिबान को देखकर लगता है कि इस नामकरण में  सत्यता है। मध्य काल में सन् 1333 में इब्नबतूता के अनुसार हिन्दुकुश का मतलब ‘मारने वाला’ था। इसका मतलब था कि यहां से गुजरने वाले लोगों में से अधिकतर ठंड और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के कारण मर जाते थे। यह कहा गया कि उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप पर अरबों-तुर्कों के कब्जे के बाद हिन्दूओं को गुलाम बनाकर इन पर्वतों से ले जाया जाता था और उनमें से बहुत से हिन्दू यहां बर्फ और अत्यधिक ठंड के कारण मर गाते थे। फारसी में कुश शब्द का अर्थ मौत है। खुदकुशी से इस शब्द का अर्थ लिया गया। यहां हिन्दू खुदकुशी कर लेते थे इसलिए पहले हिन्दूकुशी और फिर हिन्दूकुश हो गया। माना जाता है कि मुगलकाल में अफगानिस्तान को हिन्दूविहीन बनाने के लिए जो कत्लेआम का दौर चला, उस दौर में आक्रांताओं ने इस पर्वतमाला को हिन्दुओं की कत्लगाह बना दिया था। यहां भारत के अन्य हिस्सों से लाखों की तादाद में गुलामों को लाकर छोड़ दिया जाता था या उन्हें अरब की गुलाम मंडियों में बेच दिया जाता था। माना जाता है कि अरब, बगदाद, समरकंद आदि स्थानों में काफिरों की मंडियां लगा करती थीं, जो हिन्दुओं से भरी रहती थीं और वहां स्त्री-पुरुषों को बेचा जाता था।माना जाता है कि तैमूरलंग जब एक लाख गुलामों को भारत से समरकंद ले जा रहा था तो एक ही रात में अधिकतर लोग ‘हिन्दू-कोह’ पर्वत की बर्फीली चोटियों पर सर्दी से मर गए थे। इस घटना के बाद उस पर्वत का नाम ‘हिन्दूकुश’ यानी हिन्दुओं को मारने वाला पड़ गया था। वैसे तर्क दिया जाता है कि   हिन्दूकुश नाम तो सिकंदर के दौर का है।

यह भी कहा जाता है कि इस क्षेत्र में कभी हिंदू रहते थे।इसलिए हिन्दू क्षेत्र पर्वत भी कहते थे।  इसलिए इस पर्वतमाला का नाम हिन्दू क्षेत्र पड़ गया। कहा जाता है कि तुर्की, चीनी और अरब के लोग जो यहां आते-जाते थे वे क्षेत्र शब्द नहीं बोल पाते थे। क्षेत्र को छेत्र कहते थे। बाद में यह शब्द बिगड़कर केश हो गया। उत्तरी पाकिस्तान में हिन्दूकुश पर्वतमाला और काराकोरम पर्वतमाला के बीच स्थित एक हिन्दू राज पर्वत श्रृंखला है। इस पर्वत श्रृंखला में कई ऋषि-मुनियों के आश्रम बने हुए थे, जहां भारत और हिन्दूकुश के उस पार से आने वाले जिज्ञासुओं, छात्रों आदि के लिए शिक्षा, दीक्षा और ध्यान की व्यवस्था थी। यह हिमालय के उस पार से भारत में आने का आसान रास्ता है।

अब अफगानिस्तान की बात करते हैं। ईसा से 700 वर्ष पूर्व ही अफगानिस्तान क्षेत्र को आर्याना कहते थे। यह क्षेत्र कभी महान सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य का हिस्सा था।  काबुल का पहले नाम कुम्भा था, जो वहां की एक नदी के नाम पर रखा गया था। यह क्षेत्र भारत के 16 जनपदों में से एक कंबोज के अंतर्गत आता था। बौद्धकाल में यहां का बामियान नगर बौद्ध धर्म की राजधानी था। प्राचीन संस्कृत साहित्य में कंबोज देश का उल्लेख मिलता। कंबोज देश का विस्तार कश्मीर से हिंदूकुश तक था। महाभारत की गांधारी इसी क्षेत्र के गांधार की थीं। गांधारी गांधार देश के ‘सुबल’ नामक राजा की कन्या थीं। क्योंकि वह गांधार की राजकुमारी थीं, इसीलिए उनका नाम गांधारी पड़ा। यह हस्तिनापुर के महाराज धृतराष्ट्र की पत्नी और दुर्योधन आदि कौरवों की माता थीं। महाभारत में कंबोज और गांधार के कई राजाओं का भीउल्लेख मिलता है। इनमें कंबोज के सुदर्शन और चंद्रवर्मन मुख्य हैं। गांधार प्रदेश भारत के पौराणिक 16 महाजनपदों में से एक था। इस महाजनपद के प्रमुख नगर थे- पुरुषपुर यानी  पेशावर तथा तक्षशिला इसकी राजधानी थी। इसका अस्तित्व 600 ईसा पूर्व से 11वीं सदी तक रहा। ऋग्वेद में गंधार के निवासियों को गंधारी कहा गया है तथा उनकी भेड़ो के ऊन को सराहा गया है और अथर्ववेद में गंधारियों का मूजवतों के साथ उल्लेख है। ईसा सन् 7वीं सदी तक गांधार के अनेक भागों में बौद्ध धर्म काफी उन्नत था। कुषाण शासकों के दौरान यहाँ बौद्ध धर्म बहुत फला फूला । 7वीं सदी के बाद यहां पर अरब और तुर्क के मुसलमानों ने आक्रमण करना शुरु किए और 870 ई. में अरब सेनापति याकूब एलेस ने अफगानिस्तान को अपने अधिकार में कर लिया। इसके बाद यहां के हिन्दू और बौद्धों का जबरन धर्मांतरण अभियान शुरू हुआ। सैंकड़ों सालों तक लड़ाइयां चली और अंत में सारे अफगानी लोग मुसलमान बना दिए गए।

यह भी सत्य है कि 17वीं सदी तक अफगानिस्तान नाम का कोई देश विश्व मानचित्र में नहीं था। अफगानिस्तान नाम का विशेष-प्रचलन अहमद शाह दुर्रानी के शासन-काल यानी 1747 – 1773 में ही हुआ। इससे पहले  अफगानिस्तान को आर्याना, आर्यानुम्र वीजू, पख्तिया, खुरासान, पश्तूनख्वाह और रोह आदि नामों से पुकारा जाता था । इसमें गांधार, कम्बोज, कुंभा, वर्णु, सुवास्तु आदि क्षेत्र थे। आज यह क्षेत्र खूंखार, बर्बर, क्रूर और धर्मांध तालिबान के कब्जे में है। जहां दूसरे धर्मों के लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। भारत के सनातनी समाज के लोगों को भी चिंतन करना चाहिए कि वे कैसे सिकटते जा रहे हैं। अफगानिस्तान के बाद पाकिस्तान का भूभाग भी उनके हाथ  से निकल गया।

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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार हिमालय के एक भाग हिंदुकुश और क्रूर व बर्बर तालिबान के कब्जे में आ चुके अफगानिस्तान को लेकर जानकारी लेकर आया हूं। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकारों आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।

 

दोस्तों यह था हिमालय के अभिन्न भाग हिंदुकुश पर्वत श्रृंखला और अफगानिस्तान का कुछ इतिहास । यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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