हिमालयी क्षेत्र से शुरू हुए गंधर्व विवाह

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति,  नई दिल्ली

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   प्रकृति के निकट रहते हुए हिमालय के निवासी निश्चल होते हैं। पुरातन भारत में नर-नारी के संबंधों में खुलापन रहा है। हिमालयी क्षेत्र में गंधर्व विवाह अर्थात आज के प्रेम विवाह प्रचलन में थे और बड़ी संख्या में होते थे। यह शोध का विषय है कि ऐसा क्या हुआ जब  पूरे भरत खंड में नारी-पुरुष के संबंधों को रूढ़ बना दिया गया।  हिमालयी क्षेत्र के कुलिंदों, खसों, किरातों, नागों आदि के साथ ही वैदिक आर्य भी नारी-पुरुष के संबंधों के मामले में इतने रूढ़ नहीं थे। जितने कि मध्यकाल में हो गए। माना जाता है कि लुटेरे, आक्रमणकारी व संकीर्ण विचारधारा के मुसलमानों के शासन में ही ऐसा हुआ। अफगानिस्तान इसका प्रमाण है, जहां आज महिलाओं की भूमिका को बच्चे पैदा करने तथा घरों तक सीमित रखने का प्रयास किया जा रहा है। प्राचीन भारतीय समाज में  विवाह के जो आठ प्रकार मान्य किए थे, गंधर्व विवाह उनमें से एक है। महाभारत और पुराणों में इसका वर्णन मिलता है। भारतीय इतिहास में शकुंतला- दुष्यंत , पुरुरवा-उर्वशी, वासवदत्ता-उदयन के विवाह गंधर्व-विवाह क प्रमुख उदाहरण हैं।  ऋग्वेद में वैदिक संस्कृति की पहली कथा उर्वशी और राजा पुरुरवा की है। उर्वशी स्वर्ग में रहने वाली एक सुन्दर अप्सरा थी। और पुरूरवा धरती पर रहने वाला एक बहादुर राजा था। यह कहा जाता है कि स्वर्ग की जो कल्पना की गई है वह वास्तव में हिमालय क्षेत्र ही था और यह प्रेम दो संस्कृतियों का मेल था। अर्थात यह कथा भी हिमालय की बेटी उर्वसी की है।

इसी तरह  कुलिंद –खस कन्या शकुंतला और हस्तिनापुर नरेश दुष्यंत  का गंधर्व विवाह भी आज के कोटद्वार के निकट कण्व आश्रम में हुआ था। इसी तरह गंधर्व विवाह की एक और कथा उदयन-वासवदत्ता की है। जनश्रुति के अनुसार अवन्ति के राजा चण्डप्रद्योत की पुत्री वासवदत्ता तब वत्सराज उदयन के वीणा वादन पर इतनी मोहित हो गयी कि वह उससे प्रेम करने लगी। जिसे बाद में वासवदत्ता को भगा कर वत्सराज उदयन ने विवाह कर लिया था।

इतिहास साक्षी है कि हिमालयी क्षेत्र में गंधर्व विवाह बहुत प्रचलन में थे। महाभारत काल में हिमालयी क्षेत्र को कुलिंद जनपद कहा जाता रहा है। वहां तब खस, किरात, नाग, यक्ष, राक्षस आदि जातियां निवास करती थीं। मैदानों  से वैदिक आर्यों के जाने से वहां वर्ण व्यवस्था भी पनपने लगी थी। प्रसिद्ध इतिहासकार डा.  शिवप्रसाद डबराल चारण अपनी पुस्तक – कुलिंद जनपद का इतिहास में लिखते हैं कि ब्राह्मण परिवारों में ब्रह्म विवाह विशेष प्रचलित था।  समाज में गंधर्व विवाह की प्रचुरता भी थी।

इस तरह कुलिंद जनपद में  कुलिंद -खस शकुंतला और  हस्तिनापुर नरेश राजा दुष्यंत का विवाह गंधर्व विवाह का  प्रमाण है। आज के कोटद्वार के निकट कण्व आश्रम में हुए इस गंधर्व विवाह से उत्पन इनके पुत्र भरत को राज पुरुषों में श्रेष्ठ माना जाता था।  यमुना घाटी की राक्षस कन्या हिडिंबा ने भी पांडव भीम से गंधर्व विवाह किया था। उनका पुत्र  घटोत्कच भी अपने को कुरुकुल का समझता था । उसे कुंती तथा पांडव भी अपना वंशज मानते थे । महाभारत में वर्णन है कि कुंती ने घटोत्कच से कहा था  कि बेटा तुम्हारा जन्म कुरुकुल में हुआ है। तुम मेरे लिए साक्षात भीम हो। तुम पांडवों के जेष्ठ पुत्र हो, अतः तुम्हारी हमारी सहायता करो। इसी तरह  गंगाद्वार में नागकन्या उलूपी ने अर्जुन से गंधर्व विवाह किया था। इन दोनों का पुत्र  भी अपने को  कुरुकुल का  मानता था। इसी तरह महर्षि विश्वामित्र और मेनका ने भी गंधर्व विवाह ही किया था।   यह सभी कथाएं हिमालयी क्षेत्र की हैं।

 गंधर्व विवाह के तहत इस विवाह में वर-वधू को अपने अभिभावकों की अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। यह भी किया जाता था कि युवक- युवती के परस्पर राजी होने पर किसी किसी वेद वेदांग में पारंगत  ब्राह्मण के घर से लाई अग्नि से हवन करने के बाद हवन कुंड के तीन फेरे परस्पर गठबंधन के साथ कर लेने मात्र से इस प्रकार का विवाह संपन्न मान लिया जाता था। इसे आधुनिक प्रेम विवाह का प्राचीन रूप भी कह सकते हैं। इस प्रकार का विवाह करने के पश्चात् वर-वधू दोनों अपने अभिभावकों को अपने विवाह की निस्संकोच सूचना दे सकते थे क्योंकि अग्नि को साक्षी मान कर किया गया विवाह भंग नहीं किया जा सकता था। अभिभावक भी इस विवाह को स्वीकार कर लेते थे। गंधर्व विवाह का उल्लेख स्वयं मनुस्मृति में भी मिलता है।गन्धर्व विवाह के तहत यदि एक पुरुष व कन्या एक दूसरे से प्रेम  करते हैं, फिर चाहे वे ब्रह्म विवाह के नियमो के विरुद्ध हो, तब भी उनका विवाह मान्य होगा। अर्थात एक पुरुष-कन्या के अलग वर्ण, जाति, समुदाय से होने या कुछ और कारण से मेल नही हो पा रहा हो लेकिन फिर भी वे एक-दूसरे से प्रेम करते हैं और परिवार की आज्ञा के बिना विवाह कर लेते हैं तो उसे गंधर्व विवाह कहा जाता था  और धर्म के अनुसार वह विवाह मान्य होता था। किंतु इस प्रकार का विवाह जातिगत-पूर्वानुमति या लोकभावना के विरुद्ध समझा जाता था। लोग इस प्रकार किए गए विवाह को उतावली में किया गया विवाह ही मानते थे।

प्राचीन भारत में कई तरह के विवाह प्रचलन में थे। हिंदू धर्म में विवाह को सोलह संस्कारों में से एक संस्कार माना गया है। विवाह = वि + वाह।  इसका शाब्दिक अर्थ है – विशेष रूप से उत्तरदायित्व का वहन करना। हिंदू मान्यताओं के अनुसार मानव जीवन को चार आश्रमों ब्रह्मचर्य आश्रमगृहस्थ आश्रमसन्यास आश्रम तथा वानप्रस्थ आश्रम में विभक्त किया गया है। ग्रहस्थ आश्रम के लिये पाणिग्रहण संस्कार अर्थात् विवाह नितांत आवश्यक है । हिंदू धर्म में विवाह को 16 संस्कारों में से एक माना गया है। हिंदू धर्म में विवाह के आ ठ प्रकार बताए गए हैं ।  ये क्रमशः  ब्राह्म, दैव, आर्ष, प्राजापत्य, आसुर, गान्धर्व, राक्षस, और आठवां पैशाच विवाह हैं। इनमें से असुर, राक्षस व पैशाच विवाह को अच्छा नहीं माना गया है । शेष  पांच को ही धर्म के अनुकूल माना गया है । 

1-ब्रह्म विवाह– दोनों पक्ष की सहमति से समान वर्ग के सुयोग्य वर को स्वयमेव आमंत्रित करके, उसे वस्त्र-आभूषण आदि अर्पित करके, और समुचित रूप से पूजते हुए कन्या का सौंपा जाना धर्म युक्त ‘ब्राह्म ’विवाह कहलाता है

 2- देव विवाह – यज्ञ-कर्म में वेद मंत्रों के उच्चारण का कार्य कर रहे ऋत्विज को वर रूप में चुनते हुए और उसे आभूषण आदि से सुसज्जित करते हुए कन्या समर्पित करना ‘दैव’ विवाह कहलाता है ।

 

3-आर्ष विवाह  – गाय-बैल के एक जोड़े को अथवा दो गायों या बैलों को धार्मिक कृत्य के लिए वर से स्वीकारते हुए समुचित विधि से किए गए कन्यादान को धर्म युक्त आर्ष विवाह कहा जाता है ।

4- प्राजापत्य विवाह  –कन्या की सहमति के बिना उसका विवाह अभिजात्य वर्ग के वर से कर देना प्राजापत्य विवाह कहलाता है । 

5- आसुर विवाह  – कन्या पक्ष के बंधु-बांधवों और स्वयं कन्या को वरपक्ष द्वारा स्वेच्छया एवं अपनी सामर्थ्य के अनुसार धन दिए जाने के बाद किये जाने वाले कन्यादान को धर्म सम्मत ‘आसुर’ विवाह कहा जाता है ।

6- गंधर्व विवाह– कन्या एवं वर की इच्छा और परस्पर सहमति से स्थापित संबंध जब शारीरिक संबंध तक पहुंच सकते हैं, उसे  गंधर्व विवाह कहा जाता है।

7- राक्षस विवाह – कन्या पक्ष के निकट संबंधियों, मित्रों, सुहृदों आदि को डरा-धमका करके, आहत करके, अथवा उनकी हत्या करके रोती-चीखती-चिल्लाती कन्या घर से जबरन उठाकर ले जाना और विवाह करना राक्षस विधि का विवाह कहलाता है। कन्या की सहमति के बिना उसका अपहरण करके जबरदस्ती विवाह कर लेना ‘राक्षस विवाह’ कहलाता है।

8- पैशाच विवाह – जब कोई कन्या सोई हो, भटकी हो, नशे की हालत में हो, तब यदि कोई उसके साथ शारीरिक संबंध बनाकर अथवा अन्यथा विवाह कर ले तो उसे निकृष्टतम श्रेणी का ‘पैशाच’ विवाह कहा जाता है।

इस सभी में पुरुष और नारी के बीच अपनी पसंद का विवाह गंधर्व विवाह माना जाता है। हिमालयी क्षेत्र में यह बहुत प्रचलन में था। इसका इतिहास और पौराणिक तौर पर प्रमाण मिलते हैं। अर्थात जिस प्रेम विवाह की परिकल्पना आज समाज में हैं, वह तो हिमालयी क्षेत्र में बहुत पहले से मौजूद थी।

दोस्तों यह था  हिमालयी क्षेत्र में गंधर्व विवाह यानी प्रेम विवाह का इतिहास। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।जै हिमालय, जै भारत।

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