हिंदू नहीं हैं पर खुद को बताते हैं ब्राह्मण!  नेपाल के ब्राह्मणों का इतिहास

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परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नई दिल्ली

दोस्तों, मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा हिमालयी क्षेत्र की जातियों के इतिहास की इस श्रृंखला में इस बार नेपाल के ब्राह्मणों को लेकर जानकारी लाया हूं। मैं जब तक इस कहानी को आगे बढाऊं, आपसे अनुरोध है कि इस चैनल को लाइक और सब्सक्राइब कर अवश्य दीजिएगा।
इससे पहले मैं उत्तराखंड के दोनों मंडलों- गढ़वाल और कुमायुं के ब्राह्मणों के इतिहास की जानकारी पर वीडियों यहां दे चुका हूं। मैं पहले ही साफ कर देना चाहता हूं कि मेरा उद्देश्य इतिहास की जानकारी देना मात्र है, किसी परंपरा को महिमामंडित करने का मेरा कोई इरादा नहीं है। आप जानते ही हैं कि हिमालयीलोग चैनल हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, सरोकारों को आपके सामने रखता रहा है।
नेपाल में ब्राह्मणों को बाहुन कहते हैं। नेपाल में भी ब्राह्मण उत्तराखंड की तरह आए। 11वीं सदी से पहले के ब्राह्मण शांति की तलाश और धार्मिक यात्रा पर आए और वहीं के हो कर रह गए। जबकि बाद में भारत के मैदानी क्षेत्रों में धर्मांध व संकीर्ण मुसलमान राजाओं के कारण गए। वहां के ब्राह्मण उत्तराखंड के ब्राह्मणों की तुलना में आज भी पुरानी परंपराओं का अधिक निर्वाह पर रहे हैं। राजशाही के बाद नेपाल अब लोकतांत्रिक देश है। वर्ष २०11 की जनगणना के अनुसार, नेपाली की जनसंख्या 81.3 प्रतिशत हिंदू थे। 9 प्रतिशत बौद्ध, 4.4 प्रतिशत मुस्लिम, तीन प्रतिशत किरातिवादी, 1.4, ईसाई, 0.2 प्रतिशत, सिख तथा 0. 1. प्रतिशत, जैन थे। जबकि 0.6 प्रतिशत का अन्य धर्म अथवा या कोई धर्म दर्ज नहीं था। नेपाल में हिन्दू धर्म में वर्णाश्रम है और खस, नेवार और मधेसी समुदायों में वर्ण व्यवस्था है। इन तीनों में ब्राह्मण हैं। नेपाल में कुछ बातें विशेष हैं। नेपाल में बहुत से बौद्ध हैं, जो खुद को ब्राह्मण बताते हैं, लेकिन वे हिंदू नहीं हैं। वहां देवी के कई प्रमुख मंदिरों के पुजारी मगर जाति से हैं। जबकि मगर बौद्ध भी हैं। माना जाता है कि इन मदिरों में बलि प्रथा रही है और वैष्णव होने के कारण उपाद्याय इन मंदिरों के पुजारी नहीं बने।

अब सबसे पहले यहां की प्रभावशाली जाति खसों को लेकर बात करता हूं। खसों में ब्राह्मण दो श्रेणियों के हैं। उपाध्याय और जैशी। उपाध्याय ब्राह्मण वहां के सबसे उच्च श्रेणी के ब्राह्मण माने जाते हैं। उत्तराखड में उपाद्याय नेपाल से आए थे। नेपाल के उपाध्यायों को समाज में यह उच्च पद मिलने को लेकर एक विशेष कथा है। माना जाता है कि खसों को उन्होंने ही जनेऊ पहना कर सनातन धर्म में क्षत्रिय का दर्जा दिया। इससे पहले खसों को सनातन धर्म में महत्व नहीं दिया गया था। उपाद्याय ब्राह्मण भरतखंड के मैदानी क्षेत्रों से नेपाल गए। सनातन धर्म में धार्मिक संस्कार करने तथा धर्मतत्व का उपदेश देने का कार्य पहले कुल का मुख्य पुरुष या कुलवृद्ध करता था। वही उपाध्याय होता था। उपाध्याय शब्द की संस्कृत में उप + अधि + इण घं‌ —इस से उत्पत्ति मानी गई है। – ‘उपेत्य अधीयते अस्मात्‌’ अर्थात जिसके पास जाकर अध्ययन किया जाए, वह उपाध्याय होता है। उपाध्याय ब्राह्मणों के एक वर्ग की संज्ञा भी है। मनुस्मृति के अनुसार वेद के एक भाग एवं वेदांग को वृत्ति लेकर पढ़ाने वाले शिक्षक को उपाध्याय कहते थे।बौद्ध साहित्य में भी उपाध्याय अथवा उपज्झाय का उल्लेख है। महावग्ग के अनुसार उपाद्याय ही उपसंपन्न भिक्षु को बौद्ध ग्रंथों की शिक्षा देते थे। पतंजलि ने उपाध्याया की व्युत्पत्ति इस प्रकार की है-‘उपेत्याधीयते अस्या: सा उपाध्याया।’ माना जाता है कि उपाध्याय ब्राह्मणों का संज्ञानाम इसी से हुआ।
नेपाल के उपाद्याय और जैशी बहुनों में हल छूना मना रहा है ।हालांकि अब यह प्रथा समाप्त हो रही है। उपाद्याय को छोड़कर बाकी सभी बाहुनों में एक-दूसरे के हाथ का भात खाने पर पाबंदी नहीं है। नेपाल के उपाद्याय ब्राह्मण किसी अन्य श्रेणी के ब्राह्मणों के साथ शादी-ब्याह नहीं करते हैं। प्रेम विवाह अपवाद है। पहले यह भी प्रथा थी कि ब्राह्मणों की परंपराओं को नहीं निभा पाने, नियमों को तोड़ने, मांस भक्षण कर लेने, दूसरी जाति अथवा सगोत्रीय में शादी करने पर उपाद्याय समेत सभी ब्राह्मणों का समाज में एक दर्जा गिर जाता था। उदाहरण के तौर पर यदि कोई उपाद्याय ब्राह्मण यही कार्य करता था तो उसे जैशी ब्राह्मण बन जाना होता था। इसी तरह यदि जैशी ब्राह्मण भी परंपराओं को नहीं निभा पाता था तो उसे छेत्री यानी क्षत्रिय मान लिया जाता था। यदि छेत्री भी यही करता तो उसे एक दर्जा नीचे जाता पड़ता था। नेपाल में कामी जाति दलित है। उनके कई सरनेम ब्राह्मणों से मिलते हैं। माना जाता है कि ब्राह्मणों के कड़े नियमों का पालन नहीं करने वालों को तब कामी दलित बना दिया गया था।
नेपाल के जैशी ब्राह्मणों में खस बाहुन, कुमै बाहुन और पुरबिया बाहुन यानी ब्राह्मणों की श्रेणियां हैं। खस बाहुन में खस जाति के ब्राह्मण हैं।कुमैं ब्राह्मण उनको कहा जाता है जो सदियों पहले उत्तराखंड के कुमायुं से नेपाल गए। जबकि पुरबिया ब्राह्मणों उनको कहा जाता है जो कि सदियों पहले भारत के मैदानी क्षेत्रों से गए। हालांकि इनको खस ही माना जाता है। खस ब्राह्मणों में मष्टो कुलदेवता की पूजा होती है, जबकि पुरबिया ब्राह्मणों के कुल देवता मष्टो देवता नहीं हैं। मष्टो १२ तरह के देवता हैं। बाहुन नेपाल के पहाडी खस समुदाय के ब्राह्मण एवम् पुजारी जाति है। इनको पर्वतीय बाहुन भी कहा जाता है।
जैशी ब्रह्मणों के सरनेम आपस में मिलते जुलते हैं। कोईराला, घिमरे, शर्मा, ढकाल, भटरई, पुकरैल आदि हैं। जबकि कुमै बाहुन में ओली, पंत, जोशी, लोहानी आदि हैं। पुरबिया बाहुनों में दहल, झा, तिवारी, मिश्रा, जोशी, भट्ट आदि शामिल हैं। मधेसी समाज में भी ब्राह्मण हैं। भारत की सीमा से जुडे क्षेत्रों में रहने वाले ये वे लोग हैं जो कि सदियों से इसी क्षेत्र में रहते आए हैं। अंग्रेजों के साथ संधि के कारण ये क्षेत्र नेपाल का हिस्सा बन गए। ये लोग नेपाली व भोजपुरी बोलते हैं और इस समाज के ब्राह्मण उत्तर प्रदेश और नेपाल की तरह के हैं।नेपाल के प्राचीन समाज है नेवार। माना जाता है कि काठमांडू उपत्यका में ये लोग सदियों पहले भारत से गए थे। नेवार समाज में राजोपाध्याय ब्राह्मणों को उच्च माना जाता है।नेवारों में मैथिल ब्राह्मण या बोलचाल की भाषा में तिरहुत ब्राह्मण उपनामों के साथ झा भी शामिल हैं। नेवार जाति के बाहुन अन्यों की तुलना में उदार माने जाते हैं।
नेपाल में हिंदू और बौद्ध परंपराएं इस कदर घुली मिली हैं कि वे एक दूसरे के पूरक बन गए हैं। नेपाल में बहुत से ब्राह्मण हैं जो वे हिंदू नहीं हैं, बौद्ध हैं। उनके नाम व सरनेम भी ब्राह्मणों जैसे हैं। काठमांडू घाटी में देवी के प्रमुख मंदिरों के पुजारी मगर जाति के हैं। जबकि मगर बौद्ध भी हैं।

दोस्तों यह थी नेपाल के बाहुनों यानी ब्राह्मणों की कहानी। अगली कड़ियों में अब हिमालय के क्षत्रियों के इतिहास पर वीडियो आएंगी। यह वीडियो कैसी लगी, अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। जै हिमालय, जै भारत।
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