फारसी व रोमन को प्राचीनकाल में क्यों पसंद थे भोटिया कुकुर

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फारसी व रोमन को प्राचीनकाल में क्यों पसंद थे भोटिया कुकुर

परिकल्पना- डा.हरीश चंद्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति

नयी दिल्ली

 

दोस्तों आपने भोटिया कुकुर के बारे में अवश्य सुना होगा। कुकुर यानी कुत्ता। संस्कृत में कुत्ते को कुक्कुरः कहते हैं। हिमालय के अधिकतर क्षेत्रों में भी कुत्ते को कुकुर या कुकर ही कहा जाता है।  हिमालयी क्षेत्र के कुत्तों में भोटिया कुकुर विश्व प्रसिद्ध है। आपको यह जानकार  सुखद आश्चर्य होगा कि आज से लगभग ढाई हजार साल पहले तो इन भोटिया कुकुरों की पारस यानी ईरान, रोम समेत आज के यूरोप में बहुत मांग थी। फारस और रोम में प्राचीन काल में भोटिया कुकुर क्यों पसंद किए जाते थे, आज इसी विषय पर आपसे बात करूंगा।

सबसे पहले भोटिया कुकुर को लेकर बात करता हूं। उसके बाद बताऊंगा कि फारस, रोम आदि देशों में उसकी मांग क्यों थी। उत्तराखंड और  पूर्वी नेपाल के तिब्बत से लगी सीमा क्षेत्रों को भोट प्रदेश कहा जाता रहा है। इन क्षेत्रों में भोटिया, शौका समेत कई समुदाय रहते हैं। इन समुदायों के पशुपालकों के पाले कुत्तों को  भोटिया कुकुर कहा जाता है। भोटिया कुकुर हिमालय के मूल निवासी भारतीय कुत्ते हैं। हिमालय कुत्तों की कई असामान्य और दुर्लभ प्रजातियों का घर है। ये कुत्ते विशाल, बुद्धिमान और आक्रामक होते हैं। भोटिया कुकुर लंबे बाल, भारी जबड़ा,सुडोल बदन और शांत स्वभाव के होते हैं। ये कुकुर आम कुत्तों की तरह अनायास ही भौंकते नहीं हैं। ये कुकुर आमतौर पर काले -भूरे रंग के होते हैं। इनके पैर, छाती और गर्दन पर कुछ सफेद निशान होते हैं। ये शांत रहकर बड़ी सजगता से पहरेदारी करते हैं। इन्हें विश्व में हिमालयन शीपडॉग भी कहा जाता है। भोटिया कुकुर कश्मीर से नेपाल तक उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाता है। इनको हिमालय के पशुपालक पालते हैं, जो कि कई महीनों तक अपने पशुओं के साथ घुमंतू जीवन जीते हैं। इन कुकुरों का मुख्य कार्य हिमालय के पशुपालकों  की भेड-बकरियों के  झुंडों की रक्षा करना होता है। इन्हें भोटिया कुकुर के साथ ही गद्दी डॉग, हिमालयन गार्ड डॉग, हिमालयन मास्टिफ गार्ड डॉग समेत कई नामों से भी जाना जाता है। इसे तिब्बती मास्टिफ की प्रजाति का कुकुर भी कहा जाता है।हालांकि तिब्बती मास्टिफ बहुत जिद्दी होते हैं, जबकि भोटिया कुकुर बहुत शांत होते हैं।

माना जाता है कि विश्व में लगभग 350 प्रजातियों के कुत्ते  हैं। इन सभी में यह पहाड़ी भोटिया कुकुर  अलग ही पहचान रखता है। यह जितना शांत दिखता है, उतना ही खतरनाक भी है। यह बच्चों से बहुत  प्यार करता है और अपने स्वामी का वफादार होता है। ये कुकुर अन्य परिवार के सदस्यों के प्रति भी प्रेमवत रहते हैं। वे योद्धा की तरह हैं और मौत से लड़ने के लिए जाने जाते हैं। ये इतने साहसी होते हैं कि बाघ, रीछ, तेंदुआ, गुलदार जैसे ताकतवर जानवरों  से अकेले ही भिड़ जाते हैं। इस कुकुर के सामने दुनिया की बाकी नस्लों के कुत्ते फीके नजर आते हैं। भोटिया कुकुर की गिनती सबसे बुद्धिमान और ताकतवर प्रजाति में होती है। इनकी मिलीजुली प्रजाति निचले हिमालयी क्षेत्रों में भी होती है। वे कुछ छोटे कद के होते हैं। हिमालयन शीपडॉग का जीवन काल लगभग दस वर्ष है।

भारतीय डाक विभाग ने 9 जनवरी 2005 को भारतीय मूल के कुत्तों की चार प्रजातियों पर विशेष डाक टिकट जारी  किए थे। इस डाक टिकट सीरीज में पहला नंबर भोटिया प्रजाति का था। बाकी तीन प्रजातियों में   रामपुर हाउंड, मुधोल हाउंड और राजपालयम थीं। यह पहाड़ी कुकुर घर में पालने के लिए नहीं बना है, यह हिमालयी के ऊपरी क्षेत्रों के पशुपालकों यानी भेड़ पालकों के पशुओं की रक्षा करते हैं। जब शरद ऋतु में जब उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हिमपात हो जाता है,

हिमालय के ये पशुपालक उच्च क्षेत्रों में हिमपात के बाद चारे की तलाश में निचली ढलानों में चले आते हैं। ऐसे में उनको अपनी भेड़- बकरियां के साथ 6-6 महीने तक घर से बाहर रहना पड़ता । तब  ये भेटिया कुकर ही इन भेड़- बकरियों की सुरक्षा करते हैं। कहा जाता है कि भोटिया कुकुर में ये गुण आनुवांशिक आते हैं। यह कुकर जब बकरी के बच्चों की सुरक्षा में लगा रहता है, तो मुश्किल पड़ने पर उन बच्चों को अपने जबड़े से पकड़कर वापस मालिक के पास ले आते हैं। ये कुकुर भेड़-बकरियों के झुण्ड के आगे-पीछे और दायें-बाएं, स्वाभाविक सुरक्षा व्यूह रचना में अपना-अपना मोर्चा संभाले साथ-साथ चलते रहते हैं। वे भेड़ -बकरी की सुरक्षा के लिए स्वयं ही ऐसा त्रिकोणीय सुरक्षा चक्र बनाते हैं कि परिंदा भी वहां  नहीं मार सकता है। खतरे की भनक पाते ही ये कुकुर पूर्व चेतावनी के हमला कर देते हैं।

भारत के हिमालयी क्षेत्रों में तीन प्रजाति के  पहाड़ी  कुकुर हैं। भोटिया कुकर यानी स्वदेशी मास्टिफ या हिमालयन गार्ड डॉग। हिमाचली गद्दी कुत्ते  और कश्मीर के बखरवाल मास्टिफ। भोटिया कुकर,  तिब्बती मास्टिफ के समान दिखते अवश्य हैं, लेकिन उनका व्यवहार पूरी तरह से अलग है। हिमालयन मास्टिफ शांत और सौम्य कुत्ते हैं, वफादार हैं। जो अपने मालिकों और परिवारों के आसपास रहना पसंद करते हैं। वे अपने मालिकों के प्रति बहुत वफादार, मिलनसार और समर्पित होते हैं और अपने परिवारों की सुरक्षा करते हैं। जबकि,  तिब्बती मास्टिफ  जिद्दी होते हैं। जरूरी नहीं कि वे हर समय मालिक का कहना मान ही लें। हिमाचली गद्दी या भारतीय तेंदुआ हाउंड– गद्दी कुकर भी  भारत के मूल निवासी हैं ।जम्मू -कश्मीर के पीर पंजाल क्षेत्र के बक्करवाल और गुर्जर जनजाति के पास भी एक कुकुर होता है।उसे बखरवाल कुकुर कहा जाता है। यह भी देशी प्रजाति है। नेपाल में पहाड़ी कुत्ते की दो प्रजातियां हैं। भोटिया कुकुर यानी  हिमालयन शीपडॉग या नेपाली शीपडॉग ।  पड़ोसी देश भूटान में भी कुकुरों की दो बहुत प्रसिद्ध प्रजातियां हैं।  भूटिया मेंड़क  और दमची। दमची एक छोटा प्यारा कुत्ता है।  भूटिया मेंढक  भूटान का  विशालकाय मवेशी कुकुर है ।यह भी पशुपालकों के साथ रहता है।  यह भूटान और आस-पास के भारतीय राज्यों जैसे सिक्किम और अरुणांचल प्रदेश में बहुत प्रसिद्ध है।यह कुकुर भी बहुत वफादार, सतर्क और सुरक्षात्मक है। -तिब्बत में कुत्तों का समृद्ध इतिहास रहा है । तिब्बती मास्टिफ किसी परिचय का मोहताज नहीं है।

अब बताता हूं कि भोटिया कुकुर को फारस यानी ईरान व रोम समेत विभिन्न देशों में क्यों पसंद किया जाता था। मैं विक्रमी पूर्व ४५० से ७७ विक्रमी तक की बात रहा हूं। तब हिमालयी क्षेत्रों में कुलिदों का शासन था। कुलिंद जनपद अपनी अदभुद प्रभावकारी जड़ी-बूटियों के लिए प्रसिद्ध था। कुलिंद जनपद के तहत आज के हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का अधिकतर क्षेत्र और उत्तर प्रदेश के सहारनपुर व तराई के क्षेत्र भी थे। तब कुलिंद जनपद के ऊपरी क्षेत्रों में तंगण, परतंगण रहते थे। भोटिया उनके ही वंशज हैं। तंगण लोग घरों में सजावट के लिए वनैले, पशुओं के सींग, सुखाए सिर, भूसाभरी खालों तथा औषधियों बनाने के लिए हिरण आदि की अस्थियों एवं जूतों की सजावट के लिए चेलपुओं यानी तिब्बती भेड़ों की सींगों का व्यापार करते थे। वनैले और पशु चामरों के व्यापार पर उनका एकाधिकार था। सुअर, भालू और ब्याघ्रों पर झपटने वाले भोटिया कुत्तों की ख्याति भारत के बाहर तक पहुंची थी। इसलिए रोम में कुत्तों की नस्ल सुधारने के लिए भोटिया कुत्तों का अयात किया जाता था। फारस यानी ईरान व रोम में  इन भारतीय कुकुरों के स्वामी उनका जूलूस में गर्व से प्रदर्शन करते थे।

 

तो यह थी हिमालयी खासतौर पर उत्तराखंड के कुकुर भोटिया कुकर की गाथा।  आपको, यह गाथा कैसी लगी, अवश्य बताएं। हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना ने भूलना।

 

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