नैनीताल।  झीलों के लिए प्रसिद्ध शहर नैनीताल की नैनी झील संकट में है। इसमें पानी का स्तर लगातार घट रहा है।  इसकी वजह झील को भरने वाले स्रोत सूख रहे हैं और  नैनीताल में जमीन से रिसने वाले जल में आई कमी आई है। झील नियंत्रण केन्द्र के अनुसार विगत सौ सालों के रेकॉर्ड को देखते हुए यह साफ है कि झील का जलस्तर 1923 के जून माह में और 1980 के मई जून में शून्य स्तर पर पहुंचा था जिसके बाद साल 2002, 2004, 2006 में भी झील में ऐसी स्थिति आई थी।
इसके बाद साल 2009, 2011 में मई माह तक झील अपने न्यूनतम जलस्तर में पहुंच गई और 2014 अप्रैल में ऐसी नौबत आ गई कि झील का स्तर शून्य तक पहुंच गया। साल 2016 में झील फरवरी महीने में ही अपने न्यूनतम जलस्तर पर पहुंच गई। आज की तारीख में झील का जल स्तर अपने न्यूनतम स्तर से काफी नीचे पहुंच चुका है।

झील के जलस्तर को नियंत्रित करने के लिए ब्रिटिश सरकार ने साल 1872-73 में इंजिनियर कंबरलैंड स्लूज गेज, जिसे आज हम डाठ कहते हैं, का निर्माण कराया था। उसके बाद तत्कालीन नगरपालिका नैनीताल के अधिशासी अभियंता पालवील द्वारा झील की प्रवृत्ति नैनीताल की औसत बारिश , जलापूर्ति और इससे जुड़े बलिया नाले के जल निष्कासन प्रवाह के विश्लेषण से झील के जलस्तर के मौसमी मानक तय किए।  पहले यदि जलराशि झील में जमा हो तो इसकी बलिया नाले से इसकी निकासी की जाती थी। इस बार पहली बार यह देखा जा रहा है कि झील में नौकायन करना भी नीरस लग रहा है। इसके अलावा झील से नौकायन के जरिये रोजी-रोटी कमाने वालों का रोजगार भी प्रभावित हो रहा है।

झील पर अध्ययन करने वालों की मानें तो बीते पचास साल में झील साल 1993 और 2001 में ही इस झील का जलस्तर वांछित जलस्तर 7 फिट के आसपास रहा,इस साल तो झील का न्यूनतम जलस्तर शून्य से कम फरवरी महीने से ही देखने में आया है जो कि अब खतरनाक हद तक कम हो गया है जो कि काफी खतरनाक है। अध्ययनकर्ताओं के अनुसार लगातार सिकुड़ने के कारण यह झील लगातार पोखर में तब्दील हो रही है।झील में गाद  भी बाहर गई है और शहर ही आबादी बढने से  पानी की खपत भी बढ़ी है।
नवंबर 1841 में एक अंग्रेज शराब व्यवसायी पीटर बैरन ने ऐसे  खोजा गया था।  उसके दो-तीन साल के भीतर ही नैनीताल एक हिल स्टेशन के रूप में गुलज़ार होने लगा था।

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