नई दिल्ली , 7  मार्च 2017 ।देश के लिए शहादत देने के मामले में उत्तराखंड नम्बर एक पर है। यह कोई बयानबाजी नहीं है बल्कि देश की सर्वोच्च पंचायत यानी संसद में केंद्र सरकार ने भी माना है।
आबादी के हिसाब से शहादत के मामले में यह औसत उत्तराखंड सबसे आगे हैं। संसद में हाल में रक्षा मंत्रालय से संबंधित एक सवाल के जवाब में बताया गया है कि उत्तराखंड में शहीद सैनिकों की विधवाओं (युद्ध विधवाएं) की तादाद एक हजार से ज्यादा है। वैसे तो सबसे ज्यादा शहीदों की विधवाएं उत्तर प्रदेश में हैं जिनकी तादाद 1500 से ज्यादा है लेकिन आबादी के औसत से देखा जाए तो उत्तराखंड बहुत आगे है।
सरकार ने लोकसभा में युद्ध में शहीद सैनिकों की विधवाओं का ब्योरा देश के सामने रखा। ये आंकड़े 31 दिसंबर 2016 तक के हैं, जो जिला सैनिक कल्याण कार्यालयों में दर्ज हैं। आंकड़े चौकाने वाले हैं क्योंकि उत्तराखंड जैसे अपेक्षाकृत छोटे राज्य में इनकी संख्या 1416 दर्ज है, जो देश में दूसरे नंबर पर है। पहले नंबर पर उत्तर प्रदेश है, जहां शहीदों की 1566 विधवाएं जिला कार्यालयों में रजिस्टर्ड हैं।
उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 2014 के हिसाब से करीब 20 करोड़ है जबकि उत्तराखंड की महज एक करोड़। ऐसे में अगर देखा जाए तो देश के लिए जान देने वाले सबसे ज्यादा जवान उत्तराखंड से हैं। इसी तरह सरकारी रिकॉर्ड के हिसाब से हरियाणा में शहीदों की 1243 विधवाएं हैं जबकि यहां की जनसंख्या उत्तर प्रदेश से करीब 10 गुनी कम यानि ढाई करोड़ है।
पंजाब में विधवाओं की संख्या 1050, राजस्थान में 1267 है। बिहार में यह संख्या 354, हिमाचल प्रदेश में करीब 600, जम्मू-कश्मीर में 417 है। सबसे कम संख्या वाले राज्य हैं, अरुणाचल प्रदेश (1), गोवा (2), सिक्किम (2), त्रिपुरा (5)। पुडुचेरी और अंडमान निकोबार में शहीद जवान की एक भी विधवा नहीं है।
उत्तराखंड में कुमायुं रेजीमेंट, गढवाल रेजीमेंट के अलावा पैरा मिलिट्री फोर्सेज में भी पहाड़ के लोग सबसे ज्यादा हैं। पहला वीरता चक्र विक्टोरिया क्रास भी गढ़वाल के गब्बर सिंह को मिला था।


( इंद्र वशिष्ठ जी वरिष्ठ पत्रकार हैं।  दिल्ली में क्राइम रिपोर्टिंग में एक बड़ा नाम हैं )

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