नई दिल्ली,  उत्तराखंड का राज्य पुष्प है ब्रह्म कमल। हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी गुलाबी कमल पर बैठे होते हैं। यही गुलाबी कमल भारत का राष्ट्रीय पुष्प भी है। ज्यादातर लोग इस गुलाबी कमल (निलुम्बो नूसिफेरा) को ही ब्रह्म कमल मान लेते हैं। जबकि एक वर्ग का मानना है कि यह गुलाबी कमल भगवान विष्णु की नाभि से उत्पन हुआ है और जो कमल ब्रह्मा जी ने अपने चार हाथों में से एक में पकड़ा है, वही ब्रह्म कमल है। इसे वनस्पति विज्ञान की भाषा में सैशुरेया ओबल्लाटा के नाम से जाना जाता है। हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार ब्रह्म कमल को जादुई  पुष्प भी कहा जाता है। ब्रह्म कमल को ब्रह्मा जी के नाम से दिखाया गया है, जो कि विश्व विधाता हैं। उन्हें अक्सर एक बड़े से कमल के ऊपर विराजमान दिखाया गया है। उनके एक हाथ में भी कमल का फूल दिखाया गया है। कुछ लोगों का मानना है कि ब्रह्मा जी का जन्म भगवान विष्णु की नाभि से हुआ है, लेकिन कुछ का मानना है कि ब्रह्मा जी जिस कमल के ऊपर विराजमान हैं वे उसी से पैदा हुए हैं।   कुछ ग्रंथों में यह भी लिखा है कि भगवान गणेश के जन्म के बाद भगवान शिव ने जब उनका सिर काट दिया था तो  उस समय माता पार्वती के आग्रह पर ब्रह्मा जी ने ब्रह्म कमल को उत्पन किया।  जिसकी मदद से  शिवजी ने गणेश जी के शरीर पर हाथी का सिर जोड़ दिया।  जब शिवजी ने गणेश जी के धड़ के ऊपर हाथी का सिर लगाया तब स्वर्ग से देवी-देवताओं ने ब्रह्म कमल से उन पर पवित्र पानी का छिडक़ाव किया। इस कारण ब्रह्म कमल को जीवन दायक फूल का दर्जा भी मिला है। यह भी कहा जाता है कि पांडव द्रौपदी को  लेकर वनवास पर थे, तब द्रौपदी कौरवों की सभा में द्रुर्याेधन के हाथों अपने अपमान को भुला नहीं पा रही थी। वह जंगल की मुश्किल भरी जिंदगी से भी जुझ रही थी। तब पांडवों ने उत्तराखंड में अलकनंदा के किनारे पांडुकेश्वर में अपने लिए रहने का ठिकाना बनाया। एक शाम जब द्रौपदी अलकनंदा में स्नान करने गई तो उसने वहां देखा कि एक सुंदर ब्रह्म कमल नदी की धारा में बह रहा है। उस फूल का रंग हल्का गुलाबी था। लेकिन वह जल्दी ही मुरझा भी गया।  द्रौपदी ने अपने सबसे निष्ठावान पति भीम को इस बारे में बताया। द्रोपदी के कहने पर भीम तब हनुमान जी से मिले। हनुमान जी ने इस फूल की दिव्य शक्ति के बारे में भीम को जानकारी दी। कहा जाता है कि जो कोई इस फूल को खिला हुआ देख लेता है उसकी मनोकामना पूरी हो जाती है। यह फूल रात को खिलता है और कुछ ही घंटों केे भीतर मुरझा भी जाता है। इसलिए इस फूल को इतनी जल्दी खिला हुआ देख पाना आसान नहीं  है। रामायण में भी ब्रह्म कमल का वर्णन है। कहा जाता है कि जब लक्ष्मण जी मूर्छित हो गए थे तो हनुमान जी की हिमालय से लाई  संजीवनी बूटी से वे जीवित हो गए। इस पर देवी-देवताओं ने खुश होकर स्वर्ग से फूल बरसाए थे। ये फूल फूलों की घाटी में आकर गिरे। जहां वे ब्रह्म कमल के नाम से पहचाने गए।
ब्रह्म कमल: एक परिचय——
ब्रह्म कमल एस्टिरेसिया परिवार के  फूलों वाला पौधा है। यह उत्तराखंड, बर्मा (म्यांमार) और दक्षिण चीन में पाया जाता है। हिमालय में यह 4500 मीटर की ऊंचाई पर पाया जाता है। यह फूल उत्तरखंड का राज्य फूल भी है। । उत्तराखंड में यह फूलों की घाटी, हेमकुंड साहिब, झील सप्तसृंग, पंच केदार, सहस्त्रताल,  नंदीकुंड, केदारनाथ, सातोपानी में पाया जाता है। उत्तराखंड में इसे ब्रह्म कमल, कोन और कप्फू के नाम से जाना जाता है।  भारतीय डाक विभाग इस पुष्प पर डाक डिकट भी जारी कर चुका है। हिमालय में ब्रह्म कमल 3000-4800 मीटर तक की ऊंचाई में पाया जाता है। इसके फूल  में नर और मादा एक ही फूल में पाए जाते हैं। वे 5 से 10 सेमी तक लंबा रहता है। फूल जामुनी रंग के होते हैं। जो हलके पीले हरे पेपर के ब्रेेकि ट्स से लिपटे रहते हैं, ताकि ठंडे मौसम से इनका बचाव हो  सके। जुलाई अगस्त के महीने में बरसात के मौसम में चट्टानों पर घास के बीच ये खिलते हुए दिख सकते  हैं। इन्हें आधे अक्टूबर तक भी देखा जा सकता है। इसके बाद ठंड बढऩे पर यह पौधा खत्म हो जाता है। अप्रैल में गरमी बढऩे के साथ ही यह फिर से दिखाई देने लगता है। ये फूल 14 साल बाद निकलता है। इसलिए यह दुर्लभ फूल माना जाता है। इसकी सुगंध ज्यादा अच्छी नहीं होती है। शायद इसलिए इसे घर पर नहीं रखा जाता है।  परंतु उत्तराखंड में इसे केदारनाथ धाम और बदरीनाथ धाम में एक पवित्र फूल मानकर चढाया जाता है। बदरीधाम में सितंबर- अक्टूबर में नंदा अष्ठमी के अवसर पर गांवों के लोग नंदा देवी को ब्रह्म कमल चढ़ाने के लिए जंगल में इसे पाने के लिए जाते हैं और इस फूल को ढूंढ कर लाते हैं। फिर मंदिर में चढाने के बाद इसे प्रसाद के तौर पर बांटा जाता है।
ब्रह्म कमल एक मेडिकल प्लांट भी है। इसे तिब्बती और आयुर्वेदिक   औषधि में मिलाते हैं।  वहां इसका नाम साह-दू-गोह-घो है। यह स्वाद में कुछ कड़वा होता है। उत्तराखंड में इसे जोडों के दर्द, पेट की  बीमारी, खांसी-जुखाम से लेकर लकवा  के इलाज के लिए उपयोग में लाया जाता है। इसके कंद (जड़ों) को विशेष कर एंटी सेप्टिक और कटने से हुए जख्म पर लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। तिब्बती दवाओं में इसका पंचांग ( पूरा पौधा) मेडिसन में इस्तेमाल किया जाता है।  जैसा कि ब्रह्म कमल बहुत कम पाया जाता है लेकिन दवाइयों के लिए बहुत मांग होने से यह अब विलुप्त होने की कगार पर है। ज्यादातर तिब्बती दवाइयों में इसे यूरोजेनिटल बिकार के लिए इस्तेमाल किया जाता है। इतना बहुमूल्य पौधा होने  पर और उत्तराखंड के राज्य पुष्प होने पर भी इसे बचाने के कोई प्रयास नहीं किए जा रहे हैं। इसके गेरमप्लाजम का संरक्षण कैसे किया जाए  ताकि यह प्रजाति  आने वाले समय में विलुप्त न हो जाए।  इसके लिए कोई कार्यक्रम नहीं चलाया जा रहा है।  इसकी मेडीसिन में बड़ी मांग, जंगलों का घटना, सडक़ों का निर्माण व तेजी से शहरीकरण के कारण यह पौधा विलुप्त होने की कगार पर है। संरक्षण मूल्यांकन प्रबंधन योजना (सीएएमपी- कंजरवेशन एसेसमेंट मैनेजमेंट प्लान) ने इसे विलुप्त प्राय: प्रजाति में रख दिया है। जैसा कि इसका पंचांग ही मेडिसिन में इस्तेमाल हो रहा है। आज इसका गैर वैज्ञानिक तरीके से निकाला जाना, जैसा कि इसका पंचाग ही मेडीसिन के लिए इस्तेमाल किया जाता है। आज इसका गैर  वैज्ञानिक तरीके से निकाला जाना और इसका निवास स्थान  कम होने पर भी विचार करने की जरुरत है। आज यह भी जरूरत है कि इसके निवास स्थान पर ही शोध किया जाए। वहां छोटी-छोटी नर्सरी बनाई जाए और इसकी रोपण विधि को इजाद किया जाए।  यह पौधा चूंकि मेडीसिन के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इस मामले में शोध करके देखा जा सकता है कि यह किस-किस मेडीसिन में इसे इस्तेमाल किया जा सकता है।  आज जरूरत है कि स्थानीय लोगों को इसके अत्यधिक दोहन से होने वाले नुकसान के बारे में जागरुक किया जाए और अगर इसका वैज्ञानिक तरीके से दोहन किया जाए तो क्या फायदा हो सकता है, उसके लिए जागरुकता शिविर लगाकर  लोगों को इस बारे में समझाया जाए।


 

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