पहाड़ जैसा कठिन जीवन जी रहे हिमालयी लोगों के लिए अब तेंदुआ व गुलदार अब बहुत बड़ी मुसीबत बनकर सामने आए हैं। यह बात खुद केंद्र सरकार भी मानने लगी है। अकेले उत्तराखंड में ही पिछले एक दशक के दौरान तेंदुआ व गुलदारों ने 560 हमलों में 203 लोगों को मार डाला और खा गये।
इसलिए केंद्रीय पर्यावरण व वन मंत्रालय ने तेंदुआ व गुलदारों की समस्या से जूझ रहे राज्यों को भेजी सलाह में कहा है कि इन हिंसक जंगली जानवरों के हमलों से बचना है तो लोगों को कुत्ता पालना चाहिए। वास्तव में गुलदार व तेंदुआ अब इतनी बड़ी समस्या बन चुके हैं कि पूरे परिवार ही तबाह हो जा रहे हैं। तेंदुआ और गुलदार आमतौर पर छोटे बच्चों व महिलाओं को अपना निशाना बनाते हैं। महिला के मारे जाने से उनके बच्चे व परिवार बेसहारा हो जाता है। दिल्ली के वातानुकूलित कमरों में बैठकर पशुपे्रम दिखाने वाले एनजीओ और सरकारी अफसर जीवन की इस करुणामय स्थिति को अनदेखा कर देते हैं और मुआवजा तक सीमित हो जाते हैं, जो कि बहुत कम होता है। वैसे भी पैसा किसी के जीवन से बड़ा नहीं होता है।
इन कथित पशु प्रेमियों को यह भी जानकारी होनी चाहिए कि वन्यजीव कानून में इन हिंसक जानवरों के प्रबंधन का भी प्रावधान है। यानी जिस क्षेत्र में उनकी मानक से ज्यादा आबादी हो जाती है वहां से उन्हें हटाकर अन्य क्षेत्रों में बसाना होता है, लेकिन ऐसा किया नहीं जा रहा है। करोड़ों रुपयों में खेलने वाले एनजीओ भी इस मुद्दे पर अपने होंठ सी लेते हैं। हिमालयी लोगों को इस बारे में गंभीरता से सोचना होगा।
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