फूलों को कुचलते हुए दौड़ रहे हैं
दिशाहीन हो
हमारी नदियों और झरनों को रोक रहे हैं
दिशाहीनता में
इनकी दिशाहीनता अन्यमनस्कता में हृदयहीनता में
हम पीड़ा ग्रस्त हो रहे हैं
यह पृथ्वी रोगाक्रांत हो रही है
यहां बैठकर मैं स्वयं को खा रहा हूं।
मेरे हृदय में चरचरा रहे घाव की
यह पीड़ा मात्र है,
सिर्फ दर्द और टीस है।
तुम जाओं इसी विश्वास में
मैं भीगा लथपथ बैठा हूं।
तुम...