नाथ और सिद्धों की गाथा
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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बहुत कम लोग जानते हैं की बदरी नाथ धाम का पौराणिक नाम बद्रिकाश्रम था। जबकि केदारनाथ धाम का नाम केदारेश्वर था। इसी तरह कश्मीर में पवित्र अमरनाथ गुफा तथा नेपाल में पशुपितनाथ धाम के नाम में भी नाथ शब्द शामिल है। उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों में तुंगनाथ समेत कई धाम ऐसे हैं, जिनके नाम के साथ नाथ जुड़ा है। यह सभी बताने से पहले हिमालय और आध्यात्म को लेकर कुछ जानकारी दे देता हूं। पौराणिक तौर पर देखें तो पांडवों का जन्म भी उत्तराखंड के पांडुकेश्वर में हुआ था। वे केदार धाम भी आए थे। बदरीधाम के पास महर्षि वेद व्यास की गुफा भी है। ऐतिहासिक तौर पर बात करें तो आदि शंकराचार्य भी हिमालय क्षेत्र में आए थे। उनके अलावा वहां बौद्वों का भी केंद्र रहा। बाद में यहां सिद्ध और नाथ आए। हिमालयी क्षेत्र में कश्मीर से लेकर नेपाल तक कभी नाथ संप्रदाय का भारी प्रभुत्व था। आज भी इन क्षेत्रों में शैव मत प्रभावशाली भूमिका में है।
संस्कृत के शब्द –नाथ – का शाब्दिक अर्थ –प्रभु- या रक्षक या स्वामी होता है। भगवान शिव को नाथ संप्रदाय में आदि नाथ माना जाता है। उनको ही इसका संस्थापक माना जाता है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस साधु परंपरा से आते हैं, वही नाथ संप्रदाय है। नाथ संप्रदाय के संस्थापकों में गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ प्रमुख हैं। नाथ साधु-संत हमेशा भ्रमण करने के बाद उम्र के अंतिम चरण में किसी एक स्थान पर रुककर अखंड धूनी रमाते हैं या फिर हिमालय में खो जाते रहे हैं। हाथ में चिमटा, कमंडल, कान में कुंडल, कमर में कमरबंध, जटाधारी धुनी रमाकर ध्यान करना इनकी पहचान है। नाथ सम्प्रदाय के अनुयायी आदिनाथ या शिव को अपना पहला भगवान या गुरू मानते हैंl शिव के अलावा कई अन्य व्यक्तियों को नाथ सम्प्रदाय में गुरू माना जाता है जिनमें मच्छेन्द्रनाथ और गोरक्षनाथ यानी गोरखनाथ प्रमुख हैंl माना जाता है कि इन्हीं नाथ पंथियों ने इन मंदिरों के नाम के साथ नाथ शब्द जोड़े। हालांकि इस पर यह भी आरोप लगता है कि उत्तराखंड में तंत्र-मंत्र, छाड़-फूंक आदि इनकी ही देन है।
आइए अब आपको नाथ और सिद्धों के बारे में विस्तार से जानकारी देता हूं।
उत्तराखंड समेत पूरे हिमालयी क्षेत्र में जिन सिद्ध और नाथों को याद किया जाता है, वास्तव में उनकी उत्पत्ति बौद्ध धर्म से शुरू हुई है। यह अलग बात है कि समय के प्रवाह में नाथ ही हिंदू धर्म के प्रबल रक्षक के तौर पर सामने आए। सिद्धों का अस्तित्व आठवीं सदी में भारतीय साधना के इतिहास में मिलता है। यह माना जाता है कि बौद्धधर्म से ही सिद्धों का विकास हुआ। इतिहास साक्षी है कि जब बौद्ध धर्म में विकार उत्पन्न हो गए तो प्रतिक्रिया वश सिद्ध अस्तित्व में आए। सिद्धों में भी विकार पैदा होने पर नाथ अस्तित्व में आए। बौद्ध धर्म के प्रवर्तक भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद लगभग आधी शताब्दी तक बौद्ध धर्म का बहुत अधिक प्रचार प्रसार हुआ। लेकिन बाद में बौद्ध धर्म हीनयान और महायान दो शाखाओं में बंट गया। हीनयान में सिद्धान्त पक्ष पर जोर दिया गया है, जबकि महायान में व्यावहारिक को इस शाखा में अनुसरण करते हुए निर्वाण प्राप्त हो सकता है, जबकि हीनयान केवल विरक्तों तथा सन्यासियों को ही आश्रय प्रदान करते थे। कालांतर में गुप्त काल में बौद्ध धर्म का काफी हानि उठानी पड़ी। नाथ सम्प्रदाय भी लगभग इसी काल में अस्तित्व में आया। यह कह सकते हैं कि सिद्ध संप्रदाय का विकसित और परिवर्तित रूप ही नाथ संप्रदाय है। नाथ शब्द के अनेक अर्थ हैं। शैव मत के विकास के बाद नाथ शब्द शिव के लिए प्रयुक्त होने लगा। नाथ संप्रदाय में इस शब्द की जो व्याख्या की गई है उसके अनुसार ना का अर्थ है अनादि रूप तथा था का अर्थ है स्थापित होना। एक अन्य मत के अनुसार नाथ शब्द की व्याख्या की गई है जिसमें नाथ शब्द मुक्तिदान के अर्थ में प्रयोग किया गया है । नात पंथी भगवान शिव के उपासक हैं और अपनी साधना में तंत्र-मंत्र और योग को महत्व देते हैं।
हिमाचल प्रदेश कांगड़ा, ढलियारा के राजकीय महाविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष डा. शिवदत्त शर्मा अपने शोधपत्र – सिद्ध और नाथ साधना पद्धति का तुलनत्मक अध्ययन – में लिखते हैं कि आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य तथा कुमारिलभट्ट जैसे महापुरुणों ने बौद्ध धर्म को एक तरह से निर्वासित ही कर दिया। यह धर्म तिब्बत, नेपाल आदि में फैलने लगा। बौद्ध धर्म पर धीरे धीरे शैव धर्म का प्रभाव पड़ने लगा। माना जाता है कि बौद्धों ने लोगों के बीच अपनी और घुसपैठ बनाने के लिए तंत्र-मंत्र का सहारा लिया। यह रास्ता आगे चलकर महायान मंत्रयान कहलाया।इसकी भी दो शाखाएं हो गईं।वज्रयान और सहजयान।वज्रयान पर चलने वाले भिक्षु आगे चलकर सिद्ध कहलाए। सिद्धों ने बौद्धधर्म के सरल मार्ग को छोड़कर योगमार्ग को अपना लिया और वामाचार को अपने अन्दर सम्मिलित कर लिया। इनके सिद्धों की संख्या 84 मानी जाती है। डा. शिवकुमार शर्मा के अनुसार ये सिद्ध प्रायः हीन जाति के लोग थे। उनकी साधना नायिकाएं भी छोटी जाति की ही होती थी। आलोचकों का मानना है कि जब वज्रयानी सिद्ध वामाचार में अधिक संलिप्त रहने लगे तब उनकी प्रतिक्रिया स्वरूप नाथ सम्प्रदाय अस्तित्व में आया। यह भी सत्य है कि सिद्ध मत और नाथ मत दोनों आपस में संबन्धित रहे हैं तथा दोनों ने योग साधन को अपनी साधना में स्थान दिया। इस तरह यह भी स्पष्ट है कि सिद्ध और नाथ साहित्य की उपासना तथा सामाजिक सोद्देश्यता दोनों प्रायः एक समान हैं। परन्तु दोनों को एक ही मान लेना अनुचित होगा। दोनों ही अलग- अलग हैं। डा. पीतांबर दत्त बड़थ्वाल ने गुरु गोरखनाथ की रचनाओं को संकलित करने के साथ ही नाथ सिद्धों की हिन्दी रचनाओं पर भी का किया।
इसी तरह हिंदी के प्रकांड विद्वान डा. हजारी प्रसाद ने इस बारे में लिखा है कि- नाथ पंथ या नाथ सम्प्रदाय के सिद्धमत, सिद्ध मार्ग, योगमार्ग, योग, योगसम्प्रदाय, अवधूतमत एवं अवधूत सम्प्रदाय नाम भी प्रसिद्ध हैं। इसका यह अर्थ नही कि दोनों एक ही हैं।वस्तुतः जब सिद्ध मत विकारों से भर गया और वे मद्य, मांस, मैथुन को अधिक महत्व देने लगे तो स्वाभाविक है कि उसकी प्रतिक्रिया होनी निश्चित थी। अतः उस प्रतिक्रिया में नाथ मत का उद्भव हुआ। द्विवेदी के अनुसार नाथ सम्प्रदाय के लोग शैव मतावलम्बी थे।उनके उपास्य देव भगवान शिव ही थे। शिव के बाद बाद मत्स्येंद्र नाथ का नाम आता है। जिस प्रकार सिद्धों की संख्या 84 मानी जाती है वैसे ही नाथों की संख्या 9 मानी जाती है।
इस तरह नाथ सम्प्रदाय भारत का एक हिंदू धार्मिक पन्थ है। मध्ययुग में अस्तित्व में आए नाथ सम्प्रदाय में बौद्ध, शैव तथा योग की परम्पराओं का समन्वय दिखाई देता है। यह हठयोग की साधना पद्धति पर आधारित पंथ है। शिव इस सम्प्रदाय के प्रथम गुरु एवं आराध्य हैं। इसके अलावा इस सम्प्रदाय में अनेक गुरु हुए जिनमें गुरु मच्छिन्द्रनाथ या मत्स्येन्द्रनाथ तथा गुरु गोरखनाथ प्रमुख हैं। नाथ सम्प्रदाय संपूर्ण भारत में फैला है। भारत में नाथ सम्प्रदाय को सन्यासी, योगी, जोगी, नाथ ,अवधूत, सपेरा, कौल,कालबेलिया, तथा उपाध्याय (पश्चिम उत्तर प्रदेश में), नामों से जाना जाता है। इनके कुछ गुरुओं के शिष्य मुसलमान, जैन, सिख और बौद्ध धर्म के भी थे। नाथ सम्प्रदाय के लोगों को जोगी या योगी भी कहा जाता है। उत्तराखंड समेत हिंदी भाषी क्षेत्रों में नाथों को बाबाजी या गोसाई समाज का माना जाता है। इन्हें उदासी या वनवासी आदि सम्प्रदाय का भी माना जाता है।
उत्तराखंड में हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में नाथों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने उत्तराखंड को योग व देव भूमि बनाया। पूरे उत्तराखंड में शिवालय स्थापित करने में उनका भी योगदान रहा है। योग का भी भी उन्होंने प्रचार किया। ढोल सागर भी उनकी ही देन है। नाथ साधु-संत हठयोग पर विशेष बल देते हैं। गढ़ नरेश अजय पाल भी नाथ संप्रदाय में शामिल हो गए थे। अजयपाल पवांर वंश का 37 वां शासक था। अजयपाल ने लगभग 1515 में गढ़वाल के 52 गढों का एकीकरण किया। गढ़वाल के एकीकरण का श्रेय उन्हें ही जाता है। अजयपाल ने अपनी राजधानी गोरखनाथ सम्प्रदाय के सन्यासी के निवास स्थान देवलगढ़ (1512) में स्थापित की। अजयपाल गोरखनाथ सम्प्रदाय का अनुयायी था। अजयपाल ने भी अपने जीवन के अंतिम समय में नाथ पंथ को स्वीकार कर लिया था और एक नए पंथ सतनामी संप्रदाय की स्थापना की थी। नेपाल के गोरखाओं को भी नाथ संप्रदाय के गुरु गोरखनाथ से ही नाम मिला है।
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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार हिमालयी क्षेत्र के बदरीनाथ, केदारनाथ, अमरनाथ, पशुपतिनाथ समेत प्रमुख धामों के बारे में यह बताने जा रहा हूं कि आखिर इनके नामों के साथ कैसे नाथ शब्द जुड़ गया। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।
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दोस्तों यह था नाथ और सिद्धों का इतिहास। हिमालय के प्रमुख मंदिरों के नाम के साथ नाथ शब्द जुड़ने की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ औंला- को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है। इसी चैनल में है।जै हिमालय, जै भारत।