कौन हैं हिमालयी क्षेत्र में क्यों पूजे जाने वाले सिद्ध बाबा

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सिद्धों और नाथ की गाथा -२

 परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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सहयोगी यूट्यूब चैनल- संपादकीय न्यूज 

हिमालयी क्षेत्र में नाथों की तरह सिद्धों का भी निवास रहा है। पौराणिक ग्रन्थों में कहा गया है कि उत्तरी हिमालय में सिद्ध, गन्धर्व, यक्ष, किन्नर जातियां निवास करती थीं। आज भी कई क्षेत्रों में कुछ ऐसे पूजा स्थल आज भी पाए जाते हैं,  जहां सिद्ध का निवास माना जाता है। लोग उनके प्रति श्रद्धाभाव भी दिखाते हैं, परंतु अधिकतर लोग यह नहीं जानते कि सिद्ध हैं कौन? मेरे गांव में भी एक देव स्थान है जिसे सिद्ध का जाता है। इसी तरह नयारघाटी के एक इंटर कॉलेज का नाम सिद्धखाल इंटर कॉलेज चुराणी भी है, जहां से मैंने 12वीं की थी। वहां सिद्ध बाबा का एक छोटा सा मंदिर भी है। उत्तराखंड में ऐसी कई पीठ हैं जिन्हें सिद्धपीठ कहा जाता है। हिमाचल प्रदेश में तो कई मंदिर ऐसे हैं जहां 84  सिद्धों और 9 नाथ  पूजे जाते हैं। साल में एक बार उनके दर्शन आम लोगों को भी कराए जाते हैं। सिद्धों को उत्तराखंड में संभवत: इसलिए पूजा  जाता है कि वहां भी कुछ समय तक बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा। इसके अलावा तिब्बत में के बौद्धों में 84 सिद्ध हैं और उनका प्रभाव उत्तराखंड के समाज पर पड़ा होगा।

अब सिद्धों को लेकर बात करते हैं। कहा जाता है कि मध्यकाल में धर्मांध लुटेरे मुसलिम आक्रमणकारियों से इन सिद्ध  व नाथों के कारण भी भारतीय समाज की मदद होती रही। सिद्धों ने जन भाषा में साहित्य रचा। मैंने नाथ संप्रदाय को लेकर बनाई वीडियो में भी  सिद्धों के बारे में कुछ जानकारी दी थी। सिद्ध, संस्कृत शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है जिसने सिद्धि प्राप्त कर ली हो। सिद्धि का अर्थ शारीरिक तथा आध्यात्मिक तौर पर महान उपलब्धि से है या ज्ञान की प्राप्ति से है। जैन दर्शन में सिद्ध शब्द का प्रयोग उन आत्माओं के लिए किया जाता है जो संसार चक्र से मुक्त हो गयी हो।

 यह शोध का विषय है की आखिरकार ये सिद्ध कैसे देवत्व स्थान पा गए। जबकि खुद सिद्ध निरीश्वरवादी थे। वे महासुख पाकर भगवान को पाना चाहते थे। सिद्ध नारी भोग में विश्वास करते थे, मद्य, मांस लेने में  संकोच नहीं करते थे। इसलिए वे वाममार्ग पर चलते गए। सिद्ध और नाथों में यही मुख्य अंतर है कि  नाथ ईश्वरवादी थे और नारी भोग  के  विरोधी थे। जैसा कि मैंने नाथों को लेकर बनाए वीडियो में बताया कि माना जाता है कि   सिद्धों की उत्पत्ति बौद्ध धर्म से शुरू हुई । सिद्धों का अस्तित्व आठवीं सदी में भारतीय साधना के इतिहास में मिलता है। यह माना जाता है कि  बौद्धधर्म  से ही  सिद्धों का विकास हुआ।  इतिहास साक्षी है कि जब बौद्ध धर्म में विकार उत्पन्न हो गए तो प्रतिक्रिया वश सिद्ध अस्तित्व में आए। सिद्धों में भी विकार पैदा होने पर नाथ अस्तित्व में आए। वज्रयान पर चलने वाले भिक्षु आगे चलकर सिद्ध कहलाए। सिद्धों ने बौद्धधर्म  के सरल मार्ग को छोड़कर  योगमार्ग को अपना लिया और वामाचार को अपने अन्दर सम्मिलित कर लिया। इनकी प्रतिक्रिया में नाथ संप्रदाय की उत्पति हुई।

सिद्धों की  संख्या 84 मानी जाती है। वास्तव में सिद्धों का एक मार्ग  वज्रयान था, जो मांस, मदिरा, जहर जैसे पदार्थों का भी आहार ले कर सुरक्षित रह लेता था। स्त्री संग या विवाह आदि को साधारण कार्य मानता था और मंत्र तंत्र की महाविद्याओं में निपुण हो गया था। किन्तु धीरे धीरे इस मार्ग में विकृतियां आने लगी । ये केवल भोग का ही मार्ग रह गया। इनके तांत्रिकों और सिद्धों के चमत्कार के साथ अन्य क्रियाकलाप बदनाम हो गए। वे मांस, शराब, तंत्र और स्त्री-संबंधी आचारों के कारण घृणा की दृष्टि से देखे जाने लगे थे।  उनकी यौगिक क्रियाएं मंद पड़ने लगीं थीं। इस संप्रदाय को नवजीवन देने के लिए नाथ संप्रदाय का उदय हुआ। गुरु मच्छेंद्र नाथ और उनके शिष्य गोरखनाथ ने इस संप्रदाय के बिखराव और इस की योग विद्याओं का एकत्रीकरण किया। एक ऐसी व्यवस्था दी जो आज तक निरंतर चल ही रही है। ये नाथ कहलाए। हालांकि  ब्रजयान को तिब्बत ने अपना लिया। गुरु मच्छेंद्र नाथ और गोरखनाथ को तिब्बती बौद्ध धर्म में महासिद्धों के रुप में जाना जाता है। सिद्ध नाथ हिमालयों वनों एकांत स्थानों में निवास करते हैं। वे सभी घुमक्कड़ होते हैं।

 

प्रसिद्ध लेखक राहुल सांकृत्यायन के अनुसार तिब्बत के 84 सिद्धों की परम्परा ‘सरहपा’ से आरंभ हुई और नरोपा पर पूरी हुई। सरहपा चौरासी सिद्धों में सर्व प्रथम थे। इस प्रकार इसका प्रमाण अन्यत्र भी मिलता है लेकिन तिब्बती मान्यता अनुसार सरहपा से पहले भी पांच सिद्ध हुए हैं। इन सिद्धों को हिन्दू या बौद्ध धर्म का कहना सही नहीं होगा क्योंकि ये तो वाममार्ग के अनुयायी थे और यह मार्ग दोनों ही धर्म में समाया था। बौद्ध धर्म के अनुयायी मानते हैं कि सिद्धों की वज्रयान शाखा में ही 84  सिद्धों की परंपरा की शुरुआत हुई। खास बात यह है कि उनमें शामिल  मनीपा को भारत में मछींद्रनाथ, गोरक्षपा को गोरखनाथ, चोरंगीपा को चोरंगीनाथ और चर्पटीपा को चर्पटनाथ कहा जाता है।  यही नाथों की परंपरा के 84 सिद्ध हैं। इनमें सरहप्पा, शबरप्पा, लुइप्पा, डोम्भिप्पा, कुक्कुरिप्पा  या कणहपा आदि मुख्य हैं। सरहप्पा तो प्रथम सिद्ध कवि भी थे। राहुल सांकृत्यायन ने उन्हें हिन्दी का प्रथम कवि माना है तथा सर्वसम्मती से उन्हें हिन्दी का प्रथम कवि स्वीकार किया गया। बौद्ध धर्म के वज्रयान तत्व का प्रचार करने के लिए जो साहित्य आम भाषा में लिखा गया वही सिद्ध साहित्य कहलाता है। यह साहित्य बिहार से लेकर असम तक फैला था। बिहार के नालन्दा विद्यापीठ इनके मुख्य केंद्र माने जाते हैं। धर्मांध लुटेरे बख्तियार खिलजी ने आक्रमण कर इन्हें भारी नुकसान पहुचाया। उसने आज के तालिबानों की तरह विद्यापीठों को आग लगा दी थी।

 

 तिब्बत के 84 सिद्ध इस तरह हैं।  1.लूहिपा, 2.लोल्लप, 3.विरूपा, 4.डोम्भीपा, 5.शबरीपा, 6.सरहपा, 7.कंकालीपा, 8.मीनपा, 9.गोरक्षपा, 10.चोरंगीपा, 11.वीणापा, 12.शांतिपा, 13.तंतिपा, 14.चमरिपा, 15.खंड्‍पा, 16.नागार्जुन, 17.कराहपा, 18.कर्णरिया, 19.थगनपा, 20.नारोपा, 21.शलिपा, 22.तिलोपा, 23.छत्रपा, 24.भद्रपा, 25.दोखंधिपा, 26.अजोगिपा, 27.कालपा, 28.घोम्भिपा, 29.कंकणपा, 30.कमरिपा, 31.डेंगिपा, 32.भदेपा, 33.तंघेपा, 34.कुकरिपा, 35.कुसूलिपा, 36.धर्मपा, 37.महीपा, 38.अचिंतिपा, 39.भलहपा, 40.नलिनपा, 41.भुसुकपा, 42.इंद्रभूति, 43.मेकोपा, 44.कुड़ालिया, 45.कमरिपा, 46.जालंधरपा, 47.राहुलपा, 48.धर्मरिया, 49.धोकरिया, 50.मेदिनीपा, 51.पंकजपा, 52.घटापा, 53.जोगीपा, 54.चेलुकपा, 55.गुंडरिया, 56.लुचिकपा, 57.निर्गुणपा, 58.जयानंत, 59.चर्पटीपा, 60.चंपकपा, 61.भिखनपा, 62.भलिपा, 63.कुमरिया, 64.जबरिया, 65.मणिभद्रा, 66.मेखला, 67.कनखलपा, 68.कलकलपा, 69.कंतलिया, 70.धहुलिपा, 71.उधलिपा, 72.कपालपा, 73.किलपा, 74.सागरपा, 75.सर्वभक्षपा, 76.नागोबोधिपा, 77.दारिकपा, 78.पुतलिपा, 79.पनहपा, 80.कोकालिपा, 81.अनंगपा, 82.लक्ष्मीकरा, 83.समुदपा और 84.भलिपा।इन नामों के अंत में पा जो प्रत्यय लगा है, वह संस्कृत ‘पाद’ शब्द का लघुरूप है। इनके बाद नाथ अस्तित्व में आए।

 

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दोस्तों यह था सिद्धों का इतिहास और उनकी रणनीति। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग –हम पहाड़ औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है।जै हिमालय, जै भारत।

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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा नाथ संप्रदाय के बाद अब सिद्धों के बारें में  जानकारी ले कर आया । जब तक मैं आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकारों आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।

 

 

 

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