परम प्रतापी और दयालु परंतु कामुक गढ़ नरेश, जिसे सौ से ज्यादा नारियां नहीं कर पाई तृप्त !

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हिमालय के दिलचस्प राजा- एक

—और फिर वह जाता था बाजार में मुसलमान तेलिन के पास !

 परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

जै हिमालय, जै भारत। हिमालयीलोग के इस यूट्यूब चैनल में आपका स्वागत है। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा।आपको हिमालय के दिलचस्प राजाओं को लेकर जानकारी देने जा रहा हूं। इस कड़ी में गढ़वाल के एक ऐसे राजा के बारे में बता रहा हूं जो कि जो कि वीर था।  कुशल प्रशासक था। बुद्धिमान था, दयालु था, न्यायप्रिय था, विद्वानों का सम्मान करने वाला था। गरीबों को मालामाल कर देता था।  परंतु इस सब के बावजूद वह बहुत कामुक था।

प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शिवप्रसाद डबराल चारण तथा संतन सिंह नेगी की पुस्तकों समेत विभिन्न साहित्यिक साक्ष्यों से साफ है कि वह गढ़ नरेश कुशल प्रशासक, महान विजेता, धार्मिक प्रवृति वाला  और प्रशासनिक कार्यों को सोच-विचार करके पूर्ण करने वाला शासक था। उसकी राजसभा में वास्तु शिरोमणि ग्रंथ के रचयिता शंकर गुरु राज्य श्री गुरु थे, जो कि संस्कृत और ज्योतिष के प्रकांड विद्वान थे । वह गढ़ नरेश शाक्त धर्मावलंबी यानी देवी का उपासक था।  निजी जीवन में संध्या पूजा करने वाला तथा दानी नरेश था। वह कुशल शासक सेनापति, धार्मिक प्रवृति के साथ- साथ बिलासपूर्ण और मनोविनोद पूर्ण जीवन व्यतीत करने वाला था।

वह था गढ़ नरेश श्यामशाह।माना जाता है कि श्यामशाह  का राज्यारोहण 1615  से पहले हो चुका था। इस गढ़ नरेश के बारे में कहा जाता है कि इस सब के बावजूद वह जिद्दी था। उसे लेकर गढ़वाल में एक कहावत है- शामशाही की कोलाइ;, सामी को सामी,बांगी को बांगी। अर्थात श्यामशाह से जिसे सही कह दिया वह सही है, जिसे गलत कहे, वह गलत है। गढ़वाल में प्रचलित है कि वह अपनी बात को सही साबित करने की कोशिश करता था और उसकी बात को काटने पर वह क्रोधित हो जाता था। उसमें दोनों तरह के गुणों का समावेश था। उसके शासनकाल में गढ़देश की सीमाओं में वृद्धि हुई। राज्य में आंतरिक शांति एवं समृद्धि में बढोत्तरी हुई। वह शरणदाता की रक्षा करने वाला शासक था उसने कुमायुं नरेश त्रिमलचंद को विपत्ति के समय में शरण भी दी थी। डा. चारण लिखते हैं कि वह गढ़ नरेश गुणी लोगों की पहचान करने वाला तथा उनका सत्कार करता था। उसे संगीत में विशेष रूचि थी। वह स्वयं भी सभी राग रागनियों का ज्ञाता था।  वह दिन-रात मस्त रहता था। वह सबसे मधुर वचन कहता था। प्रजा को प्रसन्न रखता था। उसकी ख्याति को सुनकर दूर-दूर से गुणी जन उसकी राजसभा में पहुंचते थे। वह सभी को यथायोग्य पुरस्कार देता था। वह कवियों को पुरस्कार में हाथी- घोड़े दे डालता था। कवियों को वस्त्र, आभूषण तथा दान देकर विदा करता था। जिस व्यक्ति को जिस प्रकार का गुणी समझता था,उसी तरह से उसे पुरस्कार देता था। प्रसिद्ध चित्रकार मौला राम के अनुसार यह राजा प्रसन्न होने पर या क्रुद्ध होने पर अपना विवेक नहीं खोता था। वह अपना चित्त प्रवृत्ति को संतुलित रखता था। वह बिना सोचे समझे कोई शब्द नहीं निकालता था । डा. डबराल का मामना है कि इस गढ़ नरेश को कुछ लेखकों का जिद्दी व घमंडी बताना तथ्यों से परे है। यानी गलत है।  

डित हरिकृष्ण रतूड़ी के अनुसार 29 जुलाई 1661 को नौका विहार करते समय गंगा जी में डूबने से श्यामशाह कि मृत्यु हो गई । 30 जुलाई को अलकनंदा के तट पर चंदन आदि की विशाल चिता पर उसका दाह संस्कार किया गया। श्यामशाह की कोई संतान नहीं थी। इसलिए उसकी मृत्यु के बाद उसका चाचा महिपति शाह 48 वर्ष की अवस्था में गद्दी पर बैठा था।

अब अंत में गढ़ नरेश श्यामशाह की एक अन्य खूबी के बारे में बताता हूं। श्यामशाह प्रातकाल उठता था।  स्नान करने के बाद वह विधि विधान से पूजा करता था। पूजा के बाद वह प्रतिदिन अपने माता-पिता के तर्पण करता था। उसके पश्चात कन्या और बटुकों की पूजा करता था। पूजा कार्य से निवृत्त होने के पश्चात अन्य कार्य करता था। उसके बाद वह राजसभा जाता था और राजकार्य संभालता था।  वह अपराधियों को उनके अपराधों के अनुसार सामान्य या कठोर दंड देते समय पूरी तरह से विचार करता था कि अपराधी ने किन परिस्थिति में अपराध किया।  डा. डबराल अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि गड़ नरेश श्यामशाह दोपहर होने पर राजसभा से उठकर हाथी पर सवार होकर बाजार में एक रुपवती मुस्लिम तेलिन के घर पहुंचा था। उसके बनाए कबाब खाता था और मदिरा पीता था और संगीत से मनोरंजन करता था। एक पहर तक तेलिन के साथ भोग विलास करके राजा अपने महल में लौट आता था। राजसभा आकर वह न्याय करता था। सांयकाल को वह राजसभा के उठकर सवा पहर तक गणिकाओं के साथ मनोविनोद करता था। उसके बाद तीन पहर तक अपने प्रासाद में आनंद लेता था।  उसके अंत:पुर में अनेक सुंदर नारियां थीं। अंत:पुर के बाहर प्रसाद में बहुत सी चेरियां यानी रखैल रखीं थी। अनेक हिंदू व मुसलमान गणिकाओं से भी वह मनोविनोद करता था। जब ये सभ उसको तृप्त न कर सकीं तो उसने बाजार में रहने वाली मुसलमान तेलन से अपना संबंध जोड़ लिया। वह दिन दहाड़े खुले आम उस तेलन के घर जाता था। इस पर उसे कोई लज्जा नहीं आती थी। (Garh Naresh ShyamShah)

 यह थी गढ़ नरेश श्यामशाह की गाथा, जोकि परम प्रतापी राजा था। परंतु कामुक भी। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें।आपसे अनुरोध है कि हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला—और अंतिम गीत – नदियों के गीत को भी सुन लेना। मेरे ही लिखे हैं और  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल न्यूज लाइन को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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