परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
आप जानते हैं कि भारत के बाहर विदेश में कोई व्यक्ति पहली बार सांसद बना तो वह एक उत्तराखंडी था। गढ़वाली था। 1917 में यानी आज वर्ष 2022 से 105 साल पहले फिजी की लेजिस्लेटिव ऐसंबली के लिए मनोनीत किया गया था। जबकि उन्हें भारत से धोखे से बंधुआ मजदूर के तौर फिजी ले जाकर एक अंग्रेज को बेच दिया गया था।
उस व्यक्ति का नाम था बदरी बमोला। बमोला का जन्म 1868 में तल्ला नागपुर पट्टी के बमोला गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था । 18 हर वर्ष की आयु में अचानक ही किसी से बिना कुछ कहे वे घर से भागकर संस्कृत पढ़ने की इच्छा से बनारस चले गए। बनारस में कुछ समय तक पढ़ने के पश्चात उन्हें एक व्यक्ति ने बहला-फुसलाकर बंधुआ मजदूर बनाने के लिए सिंगापुर पहुंचा दिया । वहां से वे किसी प्रकार लौटकर गोरखपुर पहुंचे। परंतु दोबारा फिर बंधुआ मजदूरों को भर्ती करने वाले एक अन्य ठेकेदार ने उन्हें जगन्नाथपुरी पहुंचाने का बहाना बनाकर फिजी पहुंचा दिया था। फिजी (Fizi, Badari Bamola) पहुंच वहां उन्हें 20- 25 रुपए में एक अंग्रेज के पास बेच दिया गया। वे वहां इसी तरह बेचे गए अन्य भारतीयों के साथ उस अंग्रेज के गन्ने की खेतों में काम करने व लगे। उस समय उनकी उम्र 21 वर्ष थी। 5 साल तक काम करने का शर्तनामा पूरा होने पर उन्होंने वहां कुछ जमीन खरीद ली। धीरे-धीरे और भूमि खरीद कर अपने खेतों पर मजदूरों की सहायता से गन्ना उगाने लगे। वहां उन्होंने अपनी तरह आजमगढ़ जिले से आकर बसे हुए एक व्यक्ति उजागिरी की पुत्री से विवाह कर लिया। बदरी बमोला अपने उच्च चरित्र तथा परिश्रम से निरंतर उन्नति करते गए। व फिजी (Fizi, Badari Bamola) में बसे भारतीयों में बड़े प्रतिष्ठित व्यक्ति बन गए। 1917 में बदरी बमोला को फिजी की लेजिस्लेटिव काउंसिल के लिए सदस्य मनोनीत किया गया था। डा. शिव प्रसाद डबराल तथा भक्त दर्शन की पुस्तकों में बदरी बमोला का उल्लेख मिलता है। भारत से हजारों किलोमीटर दूर एक अज्ञात द्वीप में अधिक सम्मान प्राप्त करने पर भी बदरी बमोला (Fizi, Badari Bamola) ने गढ़वाल को नहीं बुलाया। वे 1928 में भारत आए और अपने गांव भी गए। भारत से फिजी लौटने पर एक वर्ष पश्चात उनका देहांत हो गया। विदेश में त्इस युग में इतना सम्मान प्राप्त करने वालों में वे पहले गढ़वाली और पहले भारतीय थे।
दरअसल, आजीविका की तलाश में गढ़वाली लोग बहुत पहले से देश-विदेश में जाते रहे हैं। भारतीय नगरों में स्वतंत्र रूप से आजीविका कमाने वालों में ज्योतिषी, कर्मकांडी, वैद्य और भजन उपदेशक तथा उपदेशकों के रूप में भी सैकड़ों व्यक्ति आजीविका कमाते थे। मुख्यत: ब्राह्मण अपनी आजीविका कमाने के लिए पंजाब सिंध और दिल्ली में हिंदी आदि विषयों का ट्यूशन रूप में पढ़ाते थे। इसी तरह आजीविका के लिए पश्चिम में आज के पाकिस्तान के क्वेटा, कराची तथा पूर्व में वर्मा यानी म्यामार, मलाया आदि देशों में जाते थे। भारतभर के राज्यों में भी जाते रहे। विश्व युद्ध के समय वे यूरोप, अमेरिका, पश्चिम एशिया, तिब्बत और दक्षिण पूर्व एशिया, ऑस्ट्रेलिया तथा ब्रिटिश उपनिवेश तक पहुंचते रहे। बंधुआ मजदूरों के रूप में फिजी (Fizi, Badari Bamola) की संसद तक पहुंचने वाले बदरी बमोला ऐसे अनूठे वक्यक्ति थे, जिन्होंने इतनी बड़ी ख्याति प्राप्त की थी
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