गढ़वाली ब्राह्मणों को प्रारंभ में गढ़वाल राइफल्स में भर्ती क्यों नहीं करते थे अंग्रेज?

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कौन थे तोताराम थपलियाल जी, जिनकी वीरता देख गढ़वाली ब्राह्मणों को सेना में भर्ती करने लगे अंग्रेज

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा। बहुत कम लोग जानते होंगे कि गढ़वाल राइफल्स में शुरू के कई दशक तक गढ़वाली ब्राह्मणों को भर्ती नहीं किया जाता था। बामणों को सेना में भर्ती करने के लिए अंग्रेज जिस गढ़वाली वीर की वीरता से प्रसन्न हुए, वे थे तोताराम थपलियाल जी।  आपने  तोताराम थपलियाल जी (Tota Ram Thapaliyal) का नाम सुना है?  तोताराम थपलियाल जी(Tota Ram Thapaliyal) के कारण ही अंग्रेज गढ़वाली ब्राह्मणों को सेना में भर्ती करने लगे थे। माना जाता है कि इसका मुख्य कारण  1857 के प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन में ब्राह्मणों की अग्रणी भूमिका होना था। इस कारण अंग्रेजों ने इस समुदाय को सेना में भर्ती करना बंद कर दिया था।रानी झांसी रानी  लक्ष्मी बाई, तात्या टोपे   मंगल पांडे, आदि सभी ब्राह्मण ही थे। मुगल राजा बहादुरशाह को लेकर एक विचारधारा के लोगों ने जबरदस्ती उसे भी स्वतंत्रता आंदोलनकारी घोषित कर दिया था, जबकि उसने अनमने मन से इस आंदोलन का नेतृत्व स्वीकार किया था।

बहरहाल, गढ़वाल राइफल्स रेजीमेंट (Garhwal Rifles) में प्रारंभ में वहां के ब्राह्मणों को सेना में नहीं लिया जाता था। परंतु प्रथम विश्वयुद्ध में गढ़वाली ब्राह्मणों (Garhwali Brahmins) (Garhwal Rifles)की वीरता को देखकर अंग्रेज अपना निर्णय बदलने पर मजबूर हो गए। यूरोप में सन 1914 में ब्रिटेन और उसके मित्र तथा जर्मनी और उसके साथियों के मध्य एक दीर्घकालिक चलने वाला भीषण युद्ध छिड़ गया था। प्रथम विश्वयुद्ध के नाम से प्रसिद्ध इस महायुद्ध में दरबान सिंह नेगी  और गब्बर सिंह नेगी को विक्टोरिया क्रॉस भी (Garhwal Rifles)मिला था। दोनों ही गढ़वाली थे। गढ़्वाल राइफल्स से थे। प्रसिद्ध इतिहासकार डा. शिवप्रसाद डबराल चारण अपनी पुस्तक — गढ़्रवाल के इतिहास में लिखते हैं कि महायुद्ध के दिनों में तोताराम थपलियाल ने अभूतपूर्व उत्साह दिखाया था। गढ़वाली बटालियन में पहले प्राय: राजपूतों को ही भर्ती किया जाता था। लड़ाकू जातियों में उनकी ही गणना होती थी। गढ़वाली ब्राह्मणों को बहुत कडिनाई से हीकभी कोई स्थान मिल पाता था। महायुद्ध के दिनों में तोताराम थपलियाल ने अपने ही पुरुषार्थ से गढ़वाली ब्राह्मणों (Garhwal Rifles)की बटालियन खड़ी कर दी थी।  ब्रिटिश सरकार ने उनके इस कार्य की बड़ी प्रशंसा की और उनको इस बटालियन का सूबेदार बना दिया।  महायुद्ध में वीरता एवं योग्यता प्रदर्शित करने के कारण उन्हें सोर्ड ऑफ ऑनर यानी समानसूचक खड़ग प्रदान किया गया। उन्हें जागीर भी दी गई।

 तोताराम थपलियाल (Tota Ram Thapaliyal) का जन्म खातस्यूं पट्टी के सिमतोली गांव में हुआ था । बाद में वे पश्चिमी नयार के तट पर गंगोलीसैण  गांव में बस गए थे।  कुछ समय तक वे श्रीनगर के हाई स्कूल में अध्यापक भी रहे। वे  १९०४-०५ के अंग्रेज-तिब्बत युद्ध में भी कुलीडोर के संचालक बन कर तिब्बत पहुंचे।  वहां से लौटकर उन्होंने शिमला तथा गढ़वाल में सार्वजनिक निर्माण विभाग में काम किया। इस प्रकार उन्हें अनेक विभागों का अनुभव प्राप्त था।  महायुद्ध में उनके तथा उनकी खड़ी की गई गढ़वाली ब्राह्मणों (Garhwal Rifles)की बटालियन के वीरता पूर्ण कार्य से गढ़वाली ब्राह्मणों की गणना भी लड़ाकू जातियों में होने लगी थी। इसके बाद गढ़वाली ब्राह्मणों को गढ़वाल राइफल्स में भर्ती किया जाने लगा था। गढ़वाली पलटन में इससे पहले तक गढ़वाल से मुख्यतः राजपूत ही भर्ती किए जाते थे। इस तरह तोताराम थपलियाल (Tota Ram Thapaliyal)की वीरता के कारण गढ़वाल राइफल्स के दरवाजे गढ़वाली ब्राह्मण के लिए भी खुल गए थे।

 यह थी गढ़वाली बामणों के सेना (Garhwal Rifles)में भर्ती होने की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिए, ताकि आपको नये वीडियो आने की जानकारी मिल जाए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, धरोहर, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं। वीडियो अच्छी लगे तो शेयर भी अवश्य कीजिएगा। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो की प्रतीक्षा कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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