नेताजी की आजाद हिंद फौज में हिमालयी वीरों के योगदान की गाथा

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आजाद हिद फौज में शहीद हुए थे 600 सैनिक  गढ़वाली 

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस आजादी की लड़ाई में लगभग 26 हजार सैनिकों का बलिदान देने वाली आजाद हिद फौज (The Indian National Army . INA)और इसमें शामिल हिमालयी वीरों के बारे में जानकारी लेकर आया हूं।

जब तक मैं आगे बढूं, तब तक आपसे अनुरोध है कि इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  तथा नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिएगा।आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose ) की १५०वीं जयंती का यह दिन  २३ जनवरी, २०२२ का रविवार भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया है। अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस इंडिया गेट के पास  विराजमान रहेंगे। जहां कभी जॉर्ज पंचम की प्रतिमा लगी  थी। अब भारत के यह वीर सपूत और आजाद हिंद फौज(The Indian National Army . INA) के सुप्रीम कमांडर तथा भारत की पहली सरकार के प्रमुख नेताजी के दर्शन हो सकेंगे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस देश के उन महानायकों में से एक हैं, जिन्होंने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया था। नेताजी मेरे आदर्श महापुरुषों में रहे हैं। देश के करोड़ों लोगों की तरह बचपन से मेरे मन में भी यह भाव आता था कि आखिरकार इस महान नेता को जैसा सम्मान मिलना चाहिए था, वह क्यों नहीं मिला। पत्रकारिता में आने पर सब समझ आता चला गया।परंतु अब इंडिया गेट पास उसकी प्रतिमा के स्वरूप में उपस्थित से मन बहुत आनंदित है।

आजादी के महानायक नेता जी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose )ने 4 जुलाई 1944 को बर्मा यानी आज के म्यामांर की राजधानी रंगून के जुबली हाल में ‘तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा’- का इंकलाबी नारा देकर भारतीयों से आजादी के लिए मर मिटने का आह्वान किया था। शेर की इस दहाड़ ने अंग्रेजों की सत्ता को हिला कर रख दिया था। सुभाष चंद्र बोस ने 21 अक्तूबर 1943 को सिंगापुर में स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार का गठन भी किया था। इस सरकार को जापान, जर्मनी, इटली फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली, आयरलैंड समेत कई देशों ने मान्यता भी दी थी। नेताजी (Netaji Subhas Chandra Bose )की आजाद हिंद सेना में ‘रानी झांसी रेजिमेंट’ नाम से महिला विंग भी थी इसमें महिला सैनिकों को ‘रानी’ कहा जाता था । कैप्टन डा. लक्ष्मी सहगल, सरस्वती राजामणि, नीरा आर्य जैसी बहादुर वीरांगनाएं इसमें शमिल थीं। यह नेताजी के व्यक्तित्व का ही चमत्कार था कि आजादी की लड़ाई में आजाद हिंद फौज के 26 हजार सैनिकों ने भी अपने प्राणों का बलिदान कर दिया था। आजाद हिन्द फौज के अनेकों अधिकारियों पर  नवम्बर १९४५ से लेकर मई १९४६ तक कोर्ट-मार्शल मामले चले।  कुल लगभग दस मुकदमे चले। इनमें पहला और सबसे प्रसिद्ध मुकद्दमा दिल्ली के लाल किले में चला जिसमें कर्नल प्रेम सहगल, कर्नल गुरुबख्श सिंह तथा मेजर जनरल शाहनवाज खान से लेकर आजाद हिन्द फौज के 17 हजार जवानों के खिलाफ  मुकदमे चले थे। 

नेताजी के नेतृत्व में आजाद हिंद फौज (The Indian National Army . INA) में हिमालयी वीरों ने भी सक्रिय तौर पर भाग लिया था। आजाद हिंद फौज का मार्च पास्ट सांग ‘कदम-कदम बढ़ाए जा’ का संगीत भी हिमालयी वीर कैप्टन राम सिंह ठकुरी ने तैयार किया था। कैप्टन राम सिंह ठकुरी नेपाल मूल के थे, परंतु उनका परिवार मूलत: उत्तराखंडी था। राम सिंह ठकुरी के दादा जमनी चंद पिथौरागढ़ मुनाकोट गांव के रहने वाले थे। बाद में  जमनी चंद 1890 में अपने परिवार समेत हिमाचल प्रदेश में बस गए। गोरखा समाज के राम सिंह का जन्म धर्मशाला के चीलगाड़ी में हुआ और बाल्यकाल धौलाधार के खनियारा गांव में बीता। कैप्टन राम सिंह ने आजान हिंद फौज के कौमी तराना — शुभ सुख चैन की बरखा बरसे—गीत की भी धुन बनाई थी। इसी गीत से भारत का राष्ट्रगान- जन-गण-मन- लिया गया है। इसकी धुन भी कैप्टन राम सिंह की धुन से लगी गई है। आजाद हिंद फौज के प्रथम शहीद वीर गोरखा दुर्गा मल्ल  थे। वे उत्तराखंड के देहरादून के डोईवाला गांव के निवासी थे।

यह बात आप लोग भी जानते हैं कि आजाद हिन्द फौज (The Indian National Army . INA) अंग्रेजों के उन सैनिकों को लेकर बनाई गई थी, जन्हें जर्मनी व जापान  ने बंदी बना लिया था। डा. अजय सिंह रावत  की पुस्तक – उत्तराखंड का समग्र राजनैतिक इतिहास— के अनुसार   4 जुलाई 1943 को रासबिहारी बोस ने सुभाषचन्द्र बोस को आजाद हिन्द फौज की कमान सौंप दी। आजाद हिंद फौज की कमान संभालने के बाद नेताजी ने इंडियन नेशनल आर्मी के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतंत्र भारत की अस्थायी सरकार भी बनाई थी।  जिसे जर्मनी, जापान, फिलिपींस, कोरिया, चीन, इटली, आयरलैंड समेत नौ देशों ने मान्यता भी दे दी थी।

नेताजी (Netaji Subhas Chandra Bose )की सेना में उत्तराखंड के जवान भी शामिल थे। इनमें से  लगभग ढाई हजार सैनिक अकेले गढ़वाल से थे। इन सैनिकों के रण कौशल और देश की आजादी के जज्बे से नेताजी बहुत प्रभावित थे।  डा. अजय सिंह रावत  लिखते हैं कि गढ़वाली सैनिकों पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose )का इतना विश्वास था कि उनके बंगले की 24 घंटे सुरक्षा दीवार के तौर पर जो चुनिन्दा सुरक्षा सैनिकों तैनात थे, उनमें से 11 सैनिक गढ़वाल के चमोली जिले से थे।  मेजर देब सिंह दानू पर्सनल गार्ड बटालियन के कमांडर के तौर पर तैनात थे। इसके अलावा ले.र्नल बुद्धि सिंह रावत पर्सनल एड्यूजेंट की जिम्मेदारी संभालते थे। इसी तरह ले . कर्नल पिपरी शरण रतूड़ी फर्स्ट बटालियन के कमांडर थे। रतूड़ी को माउडॉक युद्ध में वीरता के लिए स्वयं नेताजी ने सरदार-ए-जंग की उपाधि से सम्मानित किया था। इसी तरह मेजर पद्म सिंह गुसांई थर्ड बटालियन के कमांडर थे। आजाद हिन्द फौज का प्रशिक्षण केंद्र सिंगापुर में था। इसकी बागडोर उत्तराखंड के लेफ्टिनेंट कर्नल चंद सिंह नेगी के पास थी।  सिंगापुर के मोर्चे पर अंग्रेजी सेना के विरुद्ध लड़कर शहीद होने वालों में लगभग 600 सैनिक  गढ़वाली थे। आजाद हिंद फौज में उत्तराखंड के वीरों ने सक्रिय तौर पर भाल लिया। कुमायुं के वीरों में नरेंद्र सिंह बागड़ी का नाम इनमें अग्रणी है। अल्मोड़ा के मल्ला दानु पट्टी के बगड़ गांव के नरेंद्र सिंह बागड़ी शहीद हो गए थे।इस तरह के अनगिनित  नाम हैं।

भारत की स्वतंत्रता संघर्ष में नेपाली और भारतीय गोरखों  की भी अग्रणी भूमिका रही है। आजाद हिंद फौज (The Indian National Army . INA) के गीतों की धुन बनाने वाले कैप्टन राम सिंह ठकुरी की तरह इस फौज के प्रथम शहीद दुर्गा मल्ल  भी गोरखा समाज से थे।  मेजर दुर्गा मल्ल को अंग्रेजी सरकार ने लाल किले में फांसी पर चढ़ा दिया था। वे आजाद हिन्द फौज के प्रथम गोरखा सैनिक थे, जिन्होंने भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपने प्राणों की आहुति दी। दुर्गामल्ल का जन्म  1जुलाई 1913 को देहरादून के डोईवाला गांव में गंगाराम मल्ल छेत्री के घर हुआ था। वे आजाद हिंद रेडियो तथा खुफिया विभाग में थे। उनकी पत्नी शारदा हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला की थी। शहीद  दुर्गा मल्ल ने अपनी पत्नी के साथ मात्र तीन दिन ही बिताए थे। मेजर दुर्गा मल्ल की तरह कैप्टन दल बहादुर थापा को दिल्ली में 3 मई 1945 को फांसी पर लटका दिया गया था। इनके साथ ही गोरखा समाज के  हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के भीम सिंह राणा,  मान बहादुर थापा, शहीद मोहन सिंह थापा व  गोपाल सिंह शाही  समेत कई वीर भी आजाद हिंद फौज(Netaji Subhas Chandra Bose ) में शामिल थे।

इनके अलावा भी आजाद हिंद फौज(The Indian National Army . INA) में हिमाचल प्रदेश के कई वीरों ने भी सक्रिय तौर पर हिस्सा लिया। हिमाचल प्रदेश के तीन हजार से ज्यादा सैनिकों ने अहम किरदार निभाया था। इन सैनिकों में कांगड़ा, ऊना व हमीरपुर जिलों के सबसे अधिक थे। 4 फरवरी 1944 को आज़ाद हिंद फौज (The Indian National Army . INA)ने मणिपुर के ‘मायरंग’ नामक स्थान पर अंग्रेज सेना पर हमला कर आज़ादी का परचम लहरा दिया था। इस आक्रामक सैन्य अभियान का नेतृत्व गुरिल्ला ब्रिगेड के कमांडर कर्नल मेहर दास थे। वे हिमाचली थे। उन्हें उस सैन्य मिशन में अदम्य साहस के लिए ‘सरदार-ए-जंग’ की उपाधि से  सम्मानत किया गया था। इसी सैन्य दल में कैप्टन बख्शी प्रताप सिंह ‘तगमा-ए-शत्रुनाश’ भी शामिल थे। इसी तरह कैप्टन शेर सिंह, लेफ्टिनेंट अमर चंद ‘तगमा-ए-बहादुरी’ तथा हरि सिंह ‘शेर-ए-हिंद’ जैसे वीर भी हिमाचल से थे। इसी तरह आज़ाद हिंद फौज में जो 150 मुस्लिम सिपाही शहीद हुए थे। इनमें से कई हिमाचल प्रदेश व जम्मू-कश्मीर के भी थे। शहीद बरकत,  ग्राम भदरन जिला कांगड़ा के थे। इमामदीन, गांव काबल गढ़ ज़िला मीरपुर कश्मीर के थे।  ये वे शहीद हैं, जिनके बारे में जानकारी उपलब्ध हो पाई। जबकि आजाद हिंद फौज (Netaji Subhas Chandra Bose )में शामिल हिमालयी वीरों की संख्या बहुत ज्यादा है।

यह था आजाद हिंद फौज (The Indian National Army . INA) में शामिल हिमालयी वीरों की गाथा। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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