राष्ट्र गान और आजाद हिंद फौज के तरानों की धुन बनाने वाले महान गोरखा फौजी को भूल गए हम !

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उत्तराखंड से हिमाचल बसे नेपाली मूल के गोरखा कैप्टन राम सिंह ठकुरी को  जानते हैं आप?

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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कैप्टन राम सिंह ठकुरी। (Captain Ram Singh Thakuri) जी हां। यह नाम उन महान हस्ती का है जिसकी बनाई धुनें आजादी के दीवानों की जुबां पर रहती थी। आज भी ये गीत और धुनें लोगों को रोमांचित करती हैं।

 

 

परंतु, बड़े ही दुख के साथ कहना पड़ रहा है कि इस भारतीय गोरखा को हम सभी ने भुला दिया है। लोग उनको कैप्टन राम सिंह ठाकुर कह देते हैं, परंतु उनका सहीं नाम कैप्टन राम सिंह ठकुरी था। ठकुरी और ठाकुर एक नहीं हैं। वे दोनों अलग हैं। ठकुरी नेपाल के शासक वंशी हैं।  ठकुरी नेपाल के क्षत्रिय हैं जिन्होंने लोकतंत्र आने से पहले तक नेपाल पर शासन किया। ठकुरी समाज के तहत मल्ल, शाह, शाही, सिंह, सेन,बम,चंद, हमाल,  कुंवर, खांडो, मेहता, पाल, राणा, ठकुरी,उचाई खांण, देउवा आदि सरनेम पाए जाते हैं। नेपाल के साथ ही ठकुरी लोग भारत में भी हैं। उत्तराखंड के कुमायुं विशेषतौर पर पिथौरागढ़ में भी हैं। कैप्टन राम सिंह ठकुरी मूलत: पिथौरागढ़ के थे। इस बारे में आगे विस्तार से बताऊंगा।

अब राष्ट्रगान की बात करता हूं। हम सभी जानते हैं कि भारत का राष्ट्रगान –जन, गण, मन, अधिनायक जय हे- नोबेल पुरस्कार विजेता (Nobel Prize Winner) गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर (Gurudev Rabindranath Tagore or Kobiguru Rabindranath Thakur ) की यह रचना है। इस गीत की प्रारंभिक धुन भी उन्होंने ही तैयार की थी। परंतु वह धुन बहुत धीमी थी। आज राष्ट्रगान को हम जिस रूप में गाते और सुनते हैं,  उसकी यह धुन कैप्टन राम सिंह ठकुरी ने ही बनाई थी। कहा जाता है कि आजाद हिन्द फौज   (Indian National Army , INA ) के गठन से एक साल पहले ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) ने अपने फोर्स का राष्ट्रगान तय कर लिया था। एक साक्षात्कार में कैप्टन राम सिंह ने कहा  था कि – नेताजी ने प्रेरणा के स्रोत के रूप में फोर्स के लिए संगीत को बहुत महत्व दिया, जिसे शहीद होने तक लड़ने के लिए तैयार किया जा रहा था। मुझे 1943 का वह दिन विशेष रूप से याद है, जब नेताजी सिंगापुर में कैथे बिल्डिंग में तत्कालीन आईएनए प्रसारण स्टेशन पर आए थे और मुझसे रबीन्द्रनाथ टैगोर के मूल बंगाली स्कोर से अनुवादित गीत के लिए संगीत तैयार करने के लिए कहा था । उन्होंने मुझे गीत को एक मार्शल धुन देने के लिए कहा, जो लोगों को सोने नहीं देगा बल्कि उन लोगों को जगाएगा जो सो रहे थे।

इसके लिए नेताजी ने  गुरदेव टैगोर की एक बंगाली कविता – भारतो भाग्यो-बिधाता- को चुना। इसी गीत से भारत का राष्ट्रगान- जन-गण-मन- लिया गया है।  कैप्टन राम सिंह ठकुरी (Captain Ram Singh Thakuri) ने –कदम कदम बढ़ाए जा– जैसे कई देशभक्ति गीतों की धुनें बनाईं। प्रसिद्ध नेपाली गीत – नैनी ताला घुमी आओ रेल—की धुन भी उन्होंने ही बनाई है। उन्होंने लगभग 60 गीतों की धुनें तैयार की थी। कैप्टन राम सिंह के नेतृत्व में  आजाद हिंद फौज (आईएनए )  ( Indian National Army, INA )के आर्केस्ट्रा ने 15 अगस्त 1947 को लाल किले परिसर में — शुभ सुख चैन की बरखा बरसे–गीत की धुन बजाई। यह गीत गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर के जन गण मन– का हिंदी अनुवाद था।

वास्तव में शुभ सुख चैन 1911 में गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर के लिख –ब्राह्मो भजन भारोतो भाग्य बिधाता — का एक हिंदुस्तानी  रूपांतर था | इस गीत का अनुवाद नेताजी और उनके सहयोगी कैप्टन आबिद अली  और मुमताज़ हुसैन ने मिल कर किया था । इस  गीत की धुन कैप्टन राम सिंह  ने बनाई थी। कौमी तराना नाम से यह गीत आजाद हिंद फौज का राष्ट्रीय गीत बन गया था। बाद में कैप्टेन राम सिंह के ‘कौमी तराना’ की धुन को ही राष्ट्र गान के लिए भी प्रयोग किया जाने लगा।

गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने 1911 में एक कविता लिखी जो 5 पदों में थी. इस कविता के पहले पद को ही राष्ट्रगान के रूप में लिया गया. टैगोर ने इस कविता को बंगाली में लिखा था जिसमें संस्कृत शब्दों का भी प्रयोग किया गया था। 24 जनवरी 1950 को इस गीत के संशोधित रूप  को आधिकारिक तौर पर राष्ट्रगान के तौर पर स्वीकार कर लिया गया। राष्ट्रगान के बारे में यह भी आरोप लगता रहा कि रबीन्द्रनाथ टैगोर ने अंग्रेज सम्राट जॉर्ज पंचम की प्रशंसा में लिखा था। जॉर्ज पंचम 1911 में भारत आए थे। हालांकि 10 नवंबर 1937 को गुरुदेव टैगोर ने पुलिन बिहारी सेन को लिखे अपने एक पत्र में लिखा था कि इस अफवाह का खंडन उन्होंने कभी नहीं किया, क्योंकि ऐसा करना उनके लिए एक तौहीन, एक अपमान के बराबर था। गुरुदेव आगे लिखते हैं, कि उनकी कलम से भारत के भाग्य विधाता के रूप में कोई जॉर्ज पंचम, षष्टम या सप्तम कभी नहीं हो सकता।

बहरहाल, कैप्टन राम सिंह (Captain Ram Singh Thakuri) के नेतृत्व में इस गीत को 1946 में महात्मा गांधी के समक्ष भी प्रस्तुत किया गया था। 20 जून, 1946 को बाल्मीकि भवन में महात्मा गांधी के समक्ष -शुभ सुख चैन की बरखा बरसे- गीत गाकर उन्हें भी अपना प्रशंसक बना दिया था। 15 अगस्त 1947 को  देश को स्वतंत्रता मिलने पर पंडित जवाहर लाल नेहरु ने देश के प्रथम प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ग्रहण के अवसर पर कैप्टेन राम सिंह ठकुरी के ऑर्केस्ट्रा को विशेष तौर पर -कौमी तराना को गाने के लिए बुलाया गया था। 15 अगस्त, 1947 को राम सिंह का जन्मदिन भी था। कैप्टन राम सिंह के नेतृत्व और निर्देशन में आइएनए आरकेस्ट्रा के कलाकारों ने कौमी तराना — शुभ चैन की बरखा बरसे भारत भाग्य है जागा- की धुन बजाई। बाद में राष्ट्रीय गान –जन गण मन अधिनायक जय है भारत भाग्य विधाता –के इसी धुन को अपनाया गया।

वैसे राष्ट्रगान के मौजूदा रूप की अंतिम धुन को बनाने को लेकर विवाद भी रहा है।  इस गीत को पहली बार 27 दिसंबर, 1911 को कलकत्ता में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिवेशन के दूसरे दिन सार्वजनिक तौर पर गाया गया। इस गीत को टैगोर की भतीजी सरला देवी चौधरी ने स्कूली छात्रों के एक समूह के साथ प्रमुख कांग्रेस सदस्यों के सामने प्रस्तुत किया था। सरला देवी चौधरी कांग्रेस के अधिवेशनों में वन्देमातरम भी गाया करती थीं।

यह गीत 1912 में तत्वबोधिनी पत्रिका में भारत भाग्य बिधाता शीर्षक के तहत प्रकाशित हुआ था। यह ब्रह्म समाज का आधिकारिक प्रकाशन था और इसके संपादक गुरुदेव टैगोर थे। कलकत्ता के बाहर यह गीत पहली बार 28 फरवरी, 1919 को आंध्र प्रदेश के मदनपल्ले में बेसेंट थियोसोफिकल कॉलेज में एक सत्र में गाया गया था । इस गीत ने कॉलेज के अधिकारियों को मंत्रमुग्ध कर दिया और उन्होंने गीत के अंग्रेजी संस्करण को अपने प्रार्थना गीत के रूप में अपनाया। दरअसल, वर्ष 1919 में दक्षिण भारत यात्रा के दौरान गुरुदेव टैगोर आंध्र प्रदेश के मदनपल्ले में बेसेंट थियोसोफिकल कॉलेज आए थे | कॉलेज के प्रिंसिपल  जेम्स हेनरी कजिन्स और उनकी पत्नी मार्गरेट कजिन्स  ने टैगोर के स्वागत का जिम्मा उठाया था | कॉलेज में एक कविता पाठ सत्र के दौरान ही गुरुदेव टैगोर ने छात्रों और कजिन्स के सामने — भारतो भाग्यो बिधाता –गीत गाया था। टैगोर ने जब कविता के बारे में  विस्तार से उन्हें बताया तो मार्गरेट कजिन्स ने इसके लिए एक धुन तैयार करने का  निर्णय लिया। इसलिए कहा जाता है कि फरवरी, 1919 में मार्गरेट कजिन्स नाम की आयरिश महिला ने इस गीत की एक नई धुन बनाई थी। परंतु  कजिन्स की बनाई –जन गण मन — की धुन भी धीमी थी। यह लगभग वैसी ही थी, जैसा कि गुरुदेव टैगोर ने इसे गाया था। इसके अलावा यह भी दावा किया जाता है कि राष्ट्रगान  की धुन ब्रिटिश संगीतकार हर्बर्ट मुरिल ने बनाई।

यह भी कहा जाता है कि कैप्टेन राम सिंह ठकुरी  और हर्बर्ट मुरिल, इन दोनों  ने ही रबीन्द्रनाथ टैगोर के गीत — भारतो भाग्यो बिधाता– से अपनी  धुन ली है, और दोनों में समानता भी है। परंतु ऐतिहासिक साक्ष्य इस बात के हैं कि कैप्टेन राम सिंह ठकुरी (Captain Ram Singh Thakuri) की बनाई धुन को राष्ट्रगान के लिए प्रयोग किया गया।  वास्तव में राष्ट्रगान की धुन को लेकर यह व्यर्थ का विवाद उस मानसिकता ने पैदा किया, जो हमेशा ही भारतीयों को दोयम दर्जे का मानती रही है।

आजाद हिंद फौज की लेफ्टिनेंट कर्नल  लक्ष्मी सहगल ने एक अखबार में लिखे एक लेख -आईएनए- नेशनल एंथम एंड कैप्टन राम सिंह में साफ तौर पर लिखा था कि – निश्चित रूप से कैप्टन राम सिंह एक बहादुर गोरखा सिपाही थे। उनमें संगीत की विलक्षण प्रतिभा थी। राम सिंह ने — जन गण मन — के जिस म्यूजिकल स्कोर को तैयार किया था, उसे जर्मनी भेजा गया। वहां उसे फुल मिलिट्री और ऑरकेस्ट्रा के साथ प्रस्तुत किया गया था। यह संगीत की अविस्मरणीय व ऐतिहासिक धुन साबित हुई।

 जैसा की मैंने पहले भी कहा कि कैप्टन राम सिंह ठकुरी नेपाल मूल के थे, परंतु उनका परिवार मूलत: उत्तराखंडी था। वास्तव में पिथौरागढ़ की सोर घाटी और नेपाल का डोटी क्षेत्र कभी कुमायुं के चंद नरेशों और कभी डोटी के मल्ल राजों के आधीन रहे हैं। तब आज की तरह की राजनैतिक सीमा रेखाएं नहीं थी। इसलिए कुमायुं के सीमांत क्षेत्रों और नेपाल के डोटी, दार्चुला, वैतरणी, कर्णाली क्षेत्रों के लोग एक-दूसरे क्षेत्र में बसते रहे। आज भी सांस्कृतिक तौर पर इन सभी क्षेत्रों में बहुत समानता  हैं।

बहरहाल, राम सिंह ठकुरी (Captain Ram Singh Thakuri) के दादा जमनी चंद पिथौरागढ़ मुनाकोट गांव के रहने वाले थे। बाद में  जमनी चंद 1890 में अपने परिवार समेत हिमाचल प्रदेश में बस गए। राम सिंह का जन्म 15 अगस्त 1914 को धर्मशाला के चीलगाड़ी में हुआ था। उनका बाल्यकाल धौलाधार के खनियारा गांव में बीता। उन्हें बचपन से संगीत में रुचि थी। इसलिए जानवरों के सींग से वाद्य यंत्र बनाकर सुर निकालते रहते थे। अपनी मृत्यु से पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्हें संगीत की प्रेरणा उनके नानाजी नाथू चंद से मिली थी।  बाद में,सेना में जाने पर उन्होंने प्रसिद्ध ब्रिटिश संगीतकार हडसन एंड डेनिश से ब्रास बैंड, स्ट्रिंग बैंड और डांस बैंड की भी ली। जबकि कैप्टेन रोज से वायलिन सीखा।

राम सिंह ठकुरी को उनके पिता हवालदार दिलीप सिंह बचपन से ही सेना में जाने के लिए प्रेरित करते थे।  मिडिल परीक्षा पास कर वे ब्रिटिश सेना की सेकेंड गोरखा राइफल्स के बैंड में भर्ती हो गए। तब वे मात्र 14 साल के थे। उनका विवाह 1939 में सूबेदार मेजर शमशेर सिंह की पुत्री प्रेम कली से  हुआ। अगस्त 1941 में उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सेना के साथ मलयेशिया और सिंगापुर भेजा गया। वहां जापानी सेना ने युद्ध के दौरान ब्रिटिश सेना (British Indian Army) के बहुत से सिपाहियों को बंदी बना लिया। इन लगभग 200 भारतीय  सिपाहियों में राम सिंह भी थे।

इनके सामने शर्त रखी गई कि यदि वे अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ते हैं तो उन्हें आजाद कर लिया जाएगा। प्रारंभ में कैप्टन राम सिंह ठाकुर ने आजाद हिन्द फौज में शामिल होने से मना कर दिया, परंतु, जब उन्हें पता चला की आजाद हिन्द फौज   ( Indian National Army , INA )  की कमान सुभाष चन्द्र बोस के हाथों है तो वे आजाद हिन्द फौज में शामिल हो गये। इस तरह राम सिंह आजाद हिंद फौज में आ गए। रास बिहारी बोस और सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज में राम सिंह ठकुरी (Captain Ram Singh Thakuri) बैंड प्रमुख के साथ ही आजाद हिंद रेडियो स्टेशन के संगीत निर्देशक भी थे।  आजाद हिंद फौज   ( Indian National Army , INA )  के लिए उनके संगीतवद्ध गीतों में – कौमी तराना के साथ ही कदम-कदम बढ़ाए जा, हम भारत की बेटी हैं, अब उठा चुकीं तलवार , हे वीर बालकों, जाति लेई सुधार , उठो सोए भारत के नसीबों को जगा दो, सुभाष जी सुभाष जी , आजा़द हिन्‍द सेना ने जब, हम देहली- देहली जाएंगे,  प्रमुख हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी वीरता का प्रदर्शन कर उन्होंने कई मेडल  जीते थे। राम सिंह जब पहली बार नेताजी से मिले, तो उन्होंने उनके सम्मान में मुमताज हुसैन के लिखे एक गीत को धुन देकर तैयार किया। यह गीत था-

सुभाष जी, सुभाष जी, वो जाने हिन्द आ गए।

है नाज जिस पे हिन्द को वो जाने हिन्द आ गए।

नेता जी 3 जुलाई 1943 को सिंगापुर पहुंचे तो उनके स्वागत में राम सिंह ठकुरी  ने ‘सुभाष जी सुभाष जी वो जान-ए-हिंद आ गए’  गीत गाया। नेताजी ने कैप्टन राम सिंह को शाबाशी देते हुए कहा कि -अब तुम सरल और सुगम कौमी तराना बनाओ, जिसे आजाद हिंद फौज    ( Indian National Army , INA ) के सभी वीर सैनानी उत्साह से गाएं। इसके बाद राम सिंह ने ‘कदम कदम बढ़ाए जा खुशी के गीत गाए जा ये जिंदगी है कौम की तू कौम पे लुटाए जा’ –( Qadam Qadam Badaye Ja)– ‘भारत के जां निसारो हिलमिल के गीत गाओ हिंदुस्तान हमारा है’ , ‘शीश झुका कर भारत माता तुझको करूं प्रणाम’, ‘सबसे ऊंचा दुनिया में प्यारा तिरंगा झंडा हमारा’ जैसे गीतों की धुनें बनाई। नेताजी,  राम सिंह की संगीत निपुणता से बहुत प्रभावित थे। इसलिए उन्होंने अपना वायलिन राम सिंह को उपहार स्वरुप भेंट कर दिया। इस वायलिन को वे हमेशा अपने साथ रखते थे। नेता जी ने राम सिंह को आजाद हिन्द फौज   (Indian National Army , INA )  में बहादुरी और जोश भरा ओजस्वी गीत-संगीत तैयार करने की जिम्मेदारी भी। यहां से उनके गीत-संगीत की यात्रा प्रारंभ हुई। उन्होंने –कदम-कदम बढ़ाये जा-खुशी के गीत गाये जा—  जैसे सैकड़ों ओजस्वी गीतों की धुनों की रचना की।

द्वितीय विश्व युद्ध में जापान की हार के साथ-साथ आजाद हिंद फौज को  संकटों का सामना करना पड्रा। पूर्वोत्तर भारत में हमलावर सेना के सभी सैनिकों के आत्मसमर्पण के बाद उन्हें युद्ध बंदी बना लिया गया। वर्ष 1945 में उन्हें ब्रिटिश सेना ने रंगून में गिरफ्तार कर लिया। उन पर शस्त्र विद्रोह, संगीत के माध्यम से आइएनए के सैनिकों और आम जनता को अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ उकसाने जैसे गंभीर अभियोग लगाकर मुकदमा चलाया गया। उन्हें फांसी की सजा तय मानी जा रही थी, परंतु कैप्टन राम सिंह का भाग्य था कि जनरल शाह नवाज, कर्नल ढिल्लों और कर्नल सहगल का केस अंग्रेज सरकार हार गई। इसी कारण  कैप्टन राम सिंह ठकुरी (Captain Ram Singh Thakuri) भी छूट गए।  11 अप्रैल, 1946 को उनकी रिहाई मुल्तान में हुई।

आजाद हिंद फौज के गीतों की धुन वही तैयार करते थे। उन्होंने कुल 64 धुनें तैयार की।

कदम-कदम बढ़ाये जा, ख़ुशी के गीत गाये जा।

ये ज़िन्दगी है कौम की, तू कौम पे लुटाये जा।

आजाद हिन्द फौज   ( Indian National Army, INA ) के लिए पंडित वंशीधर शुक्ल के लिखे इस गीत की धुन भी राम सिंह ठाकुरी ने बनाई थी। इसके अलावा झांसी की रानी रेजिमेंट का मार्चिंग गीत- ‘हम भारत की लड़की हैं-  की धुन भी उन्होंने ही तैयार की थी। इनके साथ ही राष्ट्रगान – जन-गण-मन अधिनायक जय हे- की मौजूदा धुन का श्रेय भी उनको ही जाता है।

इस तरह कौमी तराना (Subh Sukh Chainor the Qaumi Tarana)  नाम से यह गीत आजाद हिन्द फौज   ( Indian National Army, INA ) का राष्ट्रीय गीत बना, इस गीत की ही धुन को बाद में -जन-गण-मन– की धुन के रुप में प्रयोग किया गया। इस तरह से हमारे राष्ट्र गान की धुन कैप्टन राम सिंह ठकुरी ने ही बनाई गई है।

देश की स्वतंत्रता के बाद तब के  प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के अनुरोध पर राम सिंह ठकुरी उत्तर प्रदेश की आर्म्ड पुलिस पीएसी में सब इंस्पेक्टर के रूप में शामिल हो गए और लखनऊ आ गए। वहां वे पीएसी के बैंड मास्टर बने। 30 जून, 1974 को वे सेवानिवृत्त हो गए। उन्हें आजीवन पीएसी के संगीतकार का मानद पद दिया गया।  कैप्टन राम सिंह ठकुरी अपने जीवन के अंतिम दिनों तक लखनऊ की पीएसी कालोनी में रहते थे।  वे नेताजी के दिए वायलिन पर मार्मिक धुनें बजाते रहते थे। इनमें देश भक्ति के साथ ही पहाड़ी धुनें भी थीं। नैनीताला-नैनीताला,  घुमी आयो रैला, जैसे गीत की धुन भी उन्होंने ही बनाई  थी।  नेताजी का भेंट वायलिन उन्हें बहुत प्रिय था, वे कहते थे कि यही इच्छा है कि मृत्यु के समय भी यह वायलिन ही मेरे हाथ में हो।  अनेक सम्मानों से पुरस्कृत कैप्टन राम सिंह ठकुरी कहा करते थे कि — जिस छाती पर नेता जी के हाथों से तमगा लगा हो, उस छाती पर और मेडल फीके ही हैं। 15 अप्रैल, 2002 को यह महान संगीतकार इस  अनंत यात्रा पर रवाना हो गया। मेरा इस महान हस्ती को नमन। मरा मानना है कि वे जिस सम्मान के हदकार थे, वह उन्हें नहीं मिला।

यह था राष्ट्र गान की धुन बनाने वाले भारतीय गोरखा कैप्टन राम सिंह ठकुरी (Captain Ram Singh Thakuri) की गाथा।

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आज जानते हैं कि 52 सेकेंड में गाते हैं राष्ट्रगान

पूरा राष्ट्रगान गाने में 52 सेकेंड का समय लगता है। पहली और अंतिम पंक्ति गाने में 20 सेकेंड का समय लगता है। राष्ट्रगान को लेकर कुछ नियम बनाए गए हैं जिनका पालन करना आवश्यक होता है। अगर कोई व्यक्ति इन नियमों की अवहेलना करता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई हो सकती है. एक नियम यह है कि फिल्म के किसी हिस्से में अगर राष्ट्रगान बजता है तो खड़ा होना या गाना जरूरी होता है। स्वतंत्रता के बाद 14 अगस्त 1947 की रात पहली बार संविधान सभा की बैठक हुई और अंत में इस सभा का समापन राष्ट्रगान के साथ किया गया।

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भारत का राष्‍ट्रगान

 

जन गण मन अधिनायक जय हे

भारत भाग्य विधाता!

पंजाब सिन्धु गुजरात मराठा द्राविड़ उत्कल बंग

विन्ध्य हिमाचल यमुना गंगा उच्छल जलधि तरंग

तव शुभ नामे जागे, तव शुभ आशिष मागे,

गाहे तब जय गाथा।

जन गण मंगलदायक जय हे भारत भाग्य विधाता।

जय हे, जय हे, जय हे, जय जय जय जय हे।।

 

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 बंगाली में राष्ट्रगान

 

जॉनोगॉनोमोनो-ओधिनायोको जॉयॉ हे भारोतोभाग्गोबिधाता!

पॉन्जाबो शिन्धो गुजोराटो मॉराठा द्राबिड़ो उत्कॉलो बॉङ्गो,

बिन्धो हिमाचॉलो जोमुना गॉङ्गा उच्छॉलोजॉलोधितोरोङ्गो,

तॉबो शुभो नामे जागे, तॉबो शुभो आशिष मागे,

गाहे तॉबो जॉयोगाथा।

जॉनोगॉनोमोङ्गोलोदायोको जॉयॉ हे भारोतोभाग्गोबिधाता!

जॉयो हे, जॉयो हे, जॉयो हे, जॉयो जॉयो जॉयो जॉयो हे॥

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आजाद हिंद फौज का कौमी तराना

 

शुभ सुख चैन की बरखा बरसे , भारत भाग है जागा

पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा, द्राविड़ उत्कल बंगा

चंचल सागर, विन्ध्य, हिमालय, नीला जमुना गंगा

तेरे नित गुण गाएँ, तुझसे जीवन पाएँ

हर तन पाए आशा।

सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,

जए हो! जए हो! जए हो! जए जए जए जए हो!॥

 

सब के दिल में प्रीत बसाए, तेरी मीठी बाणी

हर सूबे के रहने वाले, हर मज़हब के प्राणी

सब भेद और फ़र्क मिटा के, सब गोद में तेरी आके,

गूँथें प्रेम की माला।

सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,

जए हो! जए हो! जए हो! जए जए जए जए हो!॥

 

शुभ सवेरे पंख पखेरे, तेरे ही गुण गाएँ,

बास भरी भरपूर हवाएँ, जीवन में रूत लाएँ,

सब मिल कर हिन्द पुकारे, जय आज़ाद हिन्द के नारे।

प्यारा देश हमारा।

सूरज बन कर जग पर चमके, भारत नाम सुभागा,

जए हो! जए हो! जए हो! जए जए जए जए हो!॥

 

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आजाद हिंद फौज का गीत

 

कदम कदम बढ़ाये जा, खुशी के गीत गाये जा।

ये जिन्दगी है क़ौम की, तू क़ौम पे लुटाये जा।

 

शेर-ए-हिन्द आगे बढ़, मरने से फिर कभी ना डर

उड़ाके दुश्मनों का सर, जोशे-वतन बढ़ाये जा

कदम कदम बढ़ाये जा …।

 

हिम्मत तेरी बढ़ती रहे, खुदा तेरी सुनता रहे

जो सामने तेरे खड़े, तू ख़ाक मे मिलाये जा

कदम कदम बढ़ाये जा …।

 

चलो दिल्ली पुकार के, क़ौमी निशां सम्भाल के

लाल किले पे गाड़ के, लहराये जा लहराये जा

कदम कदम बढ़ाये जा…।

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(जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार गोरखा कैप्टन राम सिंह ठकुरी की स्मृति में यह वीडियो लाया हूं। भारत के राष्ट्र गान और नेताजी की आजाद हिंद फौज के तरानों की धुन बनाने वाले इस महान गोरखा को हम सभी भूल गए हैं। जब तक मैं कैप्टन राम सिंह ठकुरी को लेकर जानकारी देना शुरू करूं, आपसे अनुरोध है कि तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब  करके नोटिफिकेशन की घंटी भी अवश्य दबा दीजिएगा।आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।  अपने सुझाव ई मेल कर सकते हैं। यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें।

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