प्राचीन नेपाल के पहले शासक थे गोपाल राजवंश के यादव !

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भगवान श्रीकृष्ण से शुरू हुआ नेपाल का प्रथम शासक गोपाल राजवंश 

 गोपाल राजवंश से शुरू होता है नेपाल का इतिहास

परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा

हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली

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काठमांडू उपत्यका को ही पहले नेपाल कहा जाता था।  नेपाल के प्रारंभिक इतिहास के बारे में बहुत कम जानकारी है, लेकिन किंवदंतियां और प्रलेखित संदर्भ ३०वीं शताब्दी ईसा पूर्व में भी वहां मानव सभ्यता की बात स्वीकारते हैं। नेपाल (Nepal)  में माता सीता का जन्म स्थल जनकपुर जैसे धार्मिक स्थल का उल्लेख होने से नेपाल के बड़े हिस्से में सदियों पहले से सनातन  हिंदू संस्कृति की उपस्थिति  का प्रमाण मिलता है। भगवान बुद्ध की जन्मस्थली भी नेपाल है। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्राचीन नेपाल के शुरुआती शासक गोपाल वंश या गोपालवती या  गाय वंश के लोग थे,। उन्होंने लगभग पांच शताब्दियों तक प्राचीन नेपाल पर शासन किया था। कहा जाता है कि उनके बाद महिषपाल या  महिपालावन या भैंस- चरवाहा वंश (Avhir Dynasty)  ने राज किया।  जिसे भुल सिंह नाम के एक यादव ने स्थापित किया था । कुछ लोग वरिसंह भी कहते हैं। मान्यता है कि  प्राचीन नेपाल (Nepal)  का पहला राजवंश गोपाल वंश था। गोपाल यानी गाय के पालक गोप। मान्यता है कि  गोपों ने ही गोपाल राजवंश (Gopal Dynasty ) स्थापित किया और इस  वंश के राजाओं ने नेपाल पर 505 वर्षों तक शासन किया ।   गोपाल वंश (Gopal Dynasty ) के बाद प्राचीन नेपाल पर  महिषपाल वंश के अभीरों (Avhir Dynasty)  ने शासन किया। कहा जाता है कि अभीर ही अहीर थे। गोपाल, अभीर, अहीर ये सभी आज के यादव कहे जाते हैं। मान्यता है कि गोपालवंशी (Gopal Dynasty ) एवं महिषपालवंशी (Avhir Dynasty) एक ही वंश के थे । वे अपने पेशे के आधार पर  विभाजित थे। गाय पालकों को गोपाल तथा भैंस पालकों को महिषपाल (Avhir Dynasty) कहा जाता था। महिष का अर्थ भैंस होता है और भैंस को पालने वालों को महिषपाल कहा जाता था । गोपाल राजवंश का इतिहास महाभारत काल से शुरू होता है। मान्यता है कि महाभारत काल में नेपाल (Nepal) में असुर दानासुर का राज था।  भगवान कृष्ण ने नेपाल के लोगों को असुर दानासुर के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए नारायणी सेना के साथ नेपाल पर चढ़ाई की थी। दानासुर को परास्त करने के बाद  नेपाल में यदुवंशियों का राज्य स्थापित हो गया। जिसे गोपाल वंश कहा गया। गोपाल वंश () के राजा भगवान शिव के भक्त थे।  गोपाल वंश (Gopal Dynasty )के राजाओं को ही प्राचीन नेपाल में भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर की स्थापना का श्रेय दिया जाता है।

गोरखपुर के गोरक्षपीठ के प्रमुख तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी अपनी पुस्तक –  हिंदू राष्ट्र नेपाल, अतीत और वर्तमान-में लिखते हैं कि – नेपाल में यदुवंशियों ने लंबे समय तक राज किया। योगी लिखते हैं कि -एक समय की बात है कि संकास्य नाम के नगर में एक नय नामक मुनि का आगमन हुआ। उस समय वहां गोपालों की संख्या अधिक थी। उनमें  गोपाल नमक वाला  एक प्रकाश पुंज की ज्योतिर्मूर्ति की प्रचंड ज्वाला में भस्म हो गया था । इस दुर्घटना के बाद नय मुनि ने  ज्योतिपुंज को ज्योतिर्लिंग पशुपतिनाथ के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया। उन्होंने उस भस्मीभूत गोपाल मुखिया के पुत्र भक्तमान को संकास्य  नगर का राजा बना दिया।  भक्तमान और उसकी गोपालवंशीय (Gopal Dynasty ) राजाओं ने  521 वर्ष तक वहां शासन किया। इस वंश का अंतिम राजा यक्षगुप्त की कोई संतान नहीं थी।  इसलिए उसके बाद भारत के वरसिंह नामक एक अभीर  वंशीयपुरुष ने वहां का राज्य हस्तगत कर लिया । वरसिंह के पौत्र  भुवन सिंह के शासनकाल में कि  किरातवंशी सरदार यलंबर ने नेपाल पर आक्रमण कर वहां के अभीर वंश (Avhir Dynasty)  के शासन का अंत कर दिया और वहां वहां का शासक बन बैठा।

गोपाल वंश (Gopal Dynasty )के प्रथम शासक यदुपति भक्तमान को प्राचीन नेपाल का प्रथम सम्राट भी कहा जाता है।  भक्तमान ने काठमांडू घाटी में अपनी  राजधानी बनाई थी। यह भी कहा जाता है कि राजा भक्तमान ने पोग गुप्त उपाधि ग्रहण कर ली थी। गुप्त शब्द गोप ने निकला बताया जाता है। उन्होंने  88 वर्ष तक राज किया।  बाद के गोपाल वंशीय राजा भी गुप्त उपाधि जोड़ते रहे। गोपाल वंश के बाद अभीरों का शासन आया । जिन्हें महिषपाल वंश (Avhir Dynasty)  कहा जाता है ।  अहीर शब्द आभीर से निकला है। यह चंद्रवंशी क्षत्रिय हैं। आज इनको यादव के नाम से  जाना जाता है। हिन्दी क्षेत्रों में अहीर, ग्वाला तथा यादव शब्द प्रायः परस्पर पर्यायवाची रूप में प्रयुक्त होते हैं। वे कई अन्य नामो से भी जाने जाते हैं, जैसे  घोसी या घोषी अहीर, तथा बुंदेलखंड में दौवा अहीर। ओडिशा में गौड व गौर के नाम से जाने जाते है, छत्तीसगढ़ में राउत व रावत के नाम से जाने जाते है।  गोपाल व महिषपाल (Avhir Dynasty) वास्तव में  यदुवंशी थे। इनके बाद प्राचीन नेपाल में किरातों का राज आया।

 किरात वंश के पहले राजा यलंबर माने जाते हैं। जिन्हें  महाभारत में बर्बरीक नाम से जाना है। वे प्रथम किरात या किरांती राजा थे। उन्होंने गोपाल वंश को परास्त करके काठमांडू उपत्यका में किरात वंश की स्थापना की थी।  नेपाल में ३२ किरात राजाओं  ने शासन किया। राजा यलंबर यानी बर्बरीक राजस्थान में खाटु श्याम जी के रूप में पूजे जाते हैं। बर्बरीक महाभारत के एक महान योद्धा थे। वे पांडुपुत्र गदाधारी भीमसेन का पोता और घटोत्कच के पुत्र थे। किरात राजा यलंबर पर हिमालयीलोग चैनल में अलग से वीडियो है। किरातों को भगवान शिव का भक्त माना जाता है, हालांकिअब कई बौद्ध भी हैं। नेपाल (Nepal)  के गोपाल राजवंश (Gopal Dynasty )का यह इतिहास  पौराणिक  तौर पर था।

अब ऐतिहासिक तौर पर नेपाल के इतिहास की बात करते हैं।  हिमालयी देश नेपाल को लेकर  इतिहासकार  डा.आर.सी. मजूमदार अपनी पुस्तक एंसिएंट इंडिया में लिखते हैं कि वहां सर्वप्रथम गोपाल वंश की आठ पीढ़ियों ने प्राचीन काल में नेपाल पर शासन किया । हालांकि मजूमदार यह भी कहते हैं कि गोपाल का अर्थ गोपालक जाति विशेष से लेना उचित नहीं लगता है।  गोपाल को व्यक्तिवाचक संज्ञा समझना अधिक युक्ति-युक्त होता है। अर्थात गोपाल नाम के व्यक्ति ने यह वाठ चलाया, नकि गोपालक समाज ने। वे लिखते हैं कि गोपाल वंश के शासनकाल की घटनाओं का उल्लेख इतिहास में नहीं  मिलता है। यह तमसावृत है, केवल इतना पता है कि गोपाल वंश के आठवें शासक क्षितिपाल के शासन काल में आभीरों ने नेपाल पर आक्रमण किया, जिसमें आक्रामक दल की विजय हुई। इससे गोपाल कुल के शासन का नेपाल में अन्त हो गया।गोपाल वंश के बाद नेपाल में जिस नये राजवंश का उदय हुआ, उसका नाम था अहीर वंश। इस वंश के जयमति सिंह और भूवनसिंह नामक दो राजाओं का नाम मिलता है। ईस्वी सन्‌ के आरंभ काल के आभीरों तथा अहीरों ने भारत में प्रवेश कर पश्चिमी भारत के राजनीतिक इतिहास में चिरस्मरणीय उथल-पुथल एवं क्रांति उत्पन्न कर दी थी। सम्भवतः उसी जाति की पूर्ववर्ती किसी एक शाखा ने गोपाल वंश के अन्तिम नरेश को  परास्त कर नेपाल के सिंहासन  पर कब्जा कर आभीर राजकुल की नींव डाली थी। इस कुल के केवल दो राजाओं ने राज्य किया। आभीर भूपतियों के शासन एवं कार्य को लेकर भी इतिहास मौन है। आभीर राजवंश के अन्तिम राजा भूवनसिंह के शासन काल में किरातों का आक्रमण नेपाल पर हुआ, जिसमें आभीर राजवंश का पराभव हो गया। इसके बाद नेपाल पर किरातों का आधिपत्य हो गया। इसी आभीरवंश के पश्चात्‌ नेपाल के जिस प्राचीन राजवंश का पता चलता है वह किरात वंश । भारतीय प्राचीन साहित्य-वेद-पुराण तथा ग्रंथों में भी वनवासी किरात जाति का नाम अनेक स्थलों में आया है।


 

जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार हिमालयी देश नेपाल (Nepal) के प्रथम शासक गोपाल राजवंश (Gopal Dynasty ) का इतिहास बताने जा रहा हूं, जो कि भगवान श्रीकृष्ण के वंशजों से जुडा माना जाता है। जब तक मैं इस बारे में आगे बढूं, तब तक इस हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र के इतिहास, लोक, भाषा, संस्कृति, कला, संगीत, सरोकार आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस आलेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं, सहयोगी यूट्यूब चैनल संपादकीय न्यूज ।

यह था नेपाल के प्रथम शासक गोपाल वंश का कुछ इतिहास । यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है।  इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।

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