हिमाचल प्रदेश का मलाणा गांव
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नई दिल्ली
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दोस्तों मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश लखेड़ा इस बार आपके लिए हिमाचल प्रदेश के मलाणा गांव के बारे में जानकारी ले कर आया हूं। जब तक मैं आगे बढूं, तब तक हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइबअवश्य कर दीजिए। आप जानते ही हैं कि हिमालयी क्षेत्र की संस्कृति, इतिहास, लोक, भाषा, सरोकारों आदि को देश- दुनिया के सामने रखने के लिए हिमालयीलोग चैनल लाया गया है। आप इस लेख को हिमालयीलोग वेबसाइट में पढ़ भी सकते हैं।
दोस्तों क्या आप जानते हैं कि भारत में एक गांव है, जहां के लोग स्वयं को सिकंदर का वंशज होने का दावा करते हैं। इस कहानी का आधार क्या है? कोई नहीं जानता। यूनान के लोगों के साथ उनका डीएनए टेस्ट भी अब तक नहीं हुआ है। फिर भी लोग उनके दावों पर विश्वास करते हैं। इस गांव की विशेषता यह है कि वहां के लोगों की अपनी संसद है, अपना कानून भी है। अपन भाषा भी है। वहां बाहरी लोगों के लिए कुछ चीजें छूना मना है।
यह गांव है हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले का मलाणा। यह गांव हिमाचल प्रदेश की पार्वती घाटी में है। कुल्लू से मलाणा की दूरी लगभग 45 किलोमीटर है। आप जानते हैं के यूनान के आक्रमणकारी राजा सिकंदर ने भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र पर हमला किया था। वह यूनान के एक राज्य मकदूनिया का शासक था वह 336 ईसवी में गद्दी पर बैठा था। अरस्तू का शिष्य सिकंदर मेसेडोनिया के राजा फिलिप द्वितीय का पुत्र था। सिकंदर ने भारत अभियान के अंतर्गत 326 ईसा पूर्व में बैक्टीरिया को जीतने के बाद काबुल के रास्ते खैबर दर्रा यानी हिंदुकुश पर्वत पार किया। सिकंदर के आक्रमण के समय पश्चिमोत्तर भारत अनेक छोटे छोटे राज्यों में बटा हुआ था। इसलिए इन राज्यों को जीतना उसके लिए आसान था।फिर भी पोरस ने उसे कड़ी टक्कर दी थी। विजय अभियान में सिकंदर जब व्यास नदी के पश्चिमी किनारे पर पहुंचा तो उसके सैनिकों ने आगे बढ़ने से मना कर दिया। इस घटना के बाद विजित भारतीय प्रांतों को अपने सेनापति फिलिप को कर वापस लौट गया। माना जाता है कि मलाणा गांव के लोग उन्हीं सैनिकों के वंशज हैं। कहा जाता है कि सिकंदर के समय की एक तलवार मलाणा गांव के मंदिर में रखी हुई है। मलाणा गांव अपनी संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं के लिए जाना जाता है। यहां के लोकदेवता जमलू यानी ऋषि जमदग्नि हैं। कहा जाता है कि जमलू देवता कभी मलाणा में ही रहते थे। उन्हें भगवान शिव ने यहां भेजा था। गांव में दो मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर जमलू देवता का और दूसरा उनकी पत्नी रेणुका देवी का है। भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम, ऋषि जमदग्नि और रेणुका के पुत्र थे।
मालणा के लोग कनाशी नाम की भाषा बोलते हैं। इसे बाहरी लोगों को नहीं सिखाया जाता है। माना जाता है कि कनाशी चीनी-तिब्बती भाषा समूह की भाषा है। यह अब विलुप्त हो रही है। इसके आस-पास के गांवों में इंडो-आर्यन भाषाएं बोली जाती हैं। यहां कई अन्य बातें भी हैं। इस गांव में बाहरी लोगों के कुछ भी छूने पर पाबंदी है। ऐसा करने पर जुर्माना देना पड़ता है।
मलाणा गांव की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि यहां की अपनी अलग संसद है। संसद के साथ ही इनका अपना प्रशासन तथा कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए इनके अपने कानून हैं। न्याय प्रणाली भी है। यहां निर्णय देवनीति से तय होते हैं। ऐतिहासिक चौपाल में ऊपरी सदन के 11 सदस्य ऊपर बैठते हैं और निचली सदन के सदस्य नीचे बैठे होते हैं। इसके जिसके दो सदन हैं – पहली ज्येष्ठांग यानी ऊपरी सदन और दूसरा कनिष्ठांग यानी निचला सदन। ज्येष्ठांग में कुल 11 सदस्य हैं। जिनमें तीन सदस्य कारदार, गुर व पुजारी स्थायी सदस्य होते हैं. बाकी आठ सदस्यों को गांव के लोग मतदान से चुनते हैं। इसी तरह कनिष्ठांग सदन में गांव के प्रत्येक घर से एक सदस्य को प्रतिनिधित्व दिया जाता है। ये यह सदस्य घर के बड़े-बुजुर्ग होते हैं। संसद में फौजदारी से लेकर दीवानी जैसे मसलों का समाधान निकाला जाता है। यहां दोषियों को सजा भी सुनाई जाती है। संसद भवन के रूप में यहां एक ऐतिहासिक चौपाल है।
यदि संसद किसी विवाद का समाधान निकालने में विफल होती है, तो मामला स्थानीय देवता जमलू को सौंप दिया जाता है। जमलू देवता यानी ऋषि जमदग्नि। जमलू ऋषि का निर्णय सच्चा और अंतिम माना जाता है। किसी मामले को जब जमलू देवता को सौंपा जाता है तो फैसलाअदभुद तरीके से किया जाता है। जिन दो पक्षों का मामला होता है, उनसे दो बकरे मंगाए जाते हैं। दोनों ही बकरों की टांग में चीरा लगाकर बराबर मात्रा में जहर भर दिया जाता है। जहर भरने के बाद बकरों के मरने का इंतजार होता है और जिस पक्ष का बकरा पहले मरता है, वह दोषी होता है अब इस अंतिम निर्णय पर कोई प्रश्न खड़ा नहीं कर सकता है। क्योंकि इनका मानना है कि यह निर्णय स्वयं जमलू देवता ने सुनाया है।
यहां मुगल राजा अकबर से जुड़ी एक रोचक कहानी भी है। मलाणा के लोग साल में एक बार होने वाले ‘फागली’ उत्सव में अकबर की पूजा करते हैं। मान्यता है कि बादशाह अकबर ने जमलू ऋषि की परीक्षा लेनी चाही थी, जिसके बाद जमलू ऋषि ने दिल्ली में बर्फबारी करा दी थी। यह भी कहा जाता है की अकबर ने यहां टैक्स माफ किया था। गांव के लोग शादियां भी गांव के भीतर ही करते हैं. अगर कोई गांव से बाहर शादी करता है, तो उसे समाज से बाहर कर दिया जाता है। वैसे समय के साथ यहां भी बहुत कुछ बदलने लगा है। पहले यहां चुनाव भी नहीं होते थे, परंतु 2012 के बाद से यहां चुनाव होने लगे हैं। मलाणा की नई पीढ़ी बाहरी लोगों को छूने या गले लगने से अब ज्यादा परहेज़ नहीं करती। हालांकि आम तौर पर यहां के लोग बाहरी लोगों से दूरी बना कर रखते हैं। सैलानियों के बीच बहुत प्रसिद्ध है। एक बात यह भी है कि यह गांव मालाना क्रीम यानी कि हशीश यानी भांग के लिए भी जाना जाता है।
दोस्तों यह थी यूनान के आक्रमकारी राजा सिकंदर के सैनिकों के वंशजों यानी हिमाचल प्रदेश के मलाणा गांव के लोगों की गाथा। अगली कड़ियों में अन्य प्रमुख गांवों की गाथा को सामने रखा जाएगा। । जै हिमालय, जै भारत।
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