हिमालय के गढ भाग- दो
परिकल्पना- डा. हरीश चन्द्र लखेड़ा
हिमालयीलोग की प्रस्तुति, नई दिल्ली
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जै हिमालय, जै भारत। मैं जर्नलिस्ट डा. हरीश चंद्र लखेड़ा इस बार गढ़वाल के गढ़ों के इतिहास ( Garh, Garhi, forts of Garhwal)का उल्लेख कर रहा हूं।
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पिछली वीडियो में मैं आपको जानकारी दे चुका हूं कि नए वैज्ञानिक अध्ययन से यह बात सामने आई है कि गढ़वाल में 52 नहीं, बल्कि 291 गढ़- गढ़ियां हैं। पुरातत्व विभाग के मौजूदा मानदंडों के अनुसार इनमें से मात्र 32 गढ़ यानी किले हैं, बाकी 259 गढ़ियां या उप गढ़ या छोटी सुरक्षा चौकियां रही हैं। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में दुर्ग या किले को गढ़ या गढ़ी ( Garh, Garhi, forts of Garhwal)कहा जाता है। आश्चर्य की बात यह कि भारत पर आक्रमण करने वालों के हरमों पर भी शोध करने वाले भारतीय इतिहासकारों और पुरातत्वविदों का ध्यान उत्तराखंड के गढ़ों पर कभी नहीं गया। ये मध्ययुगीन किले 1000 से 1500 ईस्वी के आसपास इन पहाड़ों में बनाए गए थे। बाद में ऐसा क्या हुआ कि ये गढ़ व गढ़ियां खंडहरों में बदल गए। मैं यही बताने का प्रयास भी करूंगा।
आप यह जानते ही हैं कि जोशीमठ से कत्यूरी शासन काल में गढ़वाल और कुमायुं एक ही प्रशासनिक इकाई के तहत थे। यहां १०वीं सदी तक कत्यूरी शासन रहा है। कत्यूर राज के कमजोर पड़ जाने के बाद यहां छोटी-छोटे राज्य अस्तित्व में आ गए। गढ़वाल में 52 या 64 स्वतंत्र छोटे राजाओं-सरदारों ने अपने-अपने राज्य बना दिए। ऊंचे पहाड़ों पर इनके गढ़ यानी किले भी ( Garh, Garhi, forts of Garhwal)थे। गढ़ियां यानी उप गढ़ या सुरक्षा चौकियां भी थीं। 16 वीं शताब्दी में चांदपुर गढ़ी के पंवार वंश के राजा अजयपाल ने इन सभी गढ़ियों को जीत कर संपूर्ण गढ़वाल को गढ़देश का रूप दे दिया। अजय पाल का शासन काल सन् 1500 से सन् 1548 तक माना जाता है। अजय पाल को महानतम राजाओं में गिना जाता है। अजयपाल ही यहां के सभी गढ़- गढ़ियों को जीत कर गढ़वाल राज्य को अस्तित्व में लाए थे। इस तरह ये सभी गढ़ पवांर वंश के तहत गढवाल राज्य का हिस्सा बन गए। मेरे पास जिन गढ- गढ़ियों की जानकारी उपलब्ध है, उसे यहां यहां दे रहा हूं
चांदपुर गढ़ी- यह गढ़वाल के प्रमुख गढ़ों में से एक है। यह चमोली जिले में कर्णप्रयाग व आदिबद्री के निकट एक पहाड़ी पर है। यह गढ़ अटागाढ़ नदी के किनारे एक पहाड़ी पर है। यहां के राजा भानुप्रताप थे। वे खस थे और उन्होंने धारानगरी से आए पंवार वंशीय कनकपाल नाम के एक राजकुमार से अपनी बेटी का विवाह करके उसे अपना राजपाट भी दे दिया। राजा कनकपाल के वंशज अजयपाल को ही गढ़वाल ( Garh, Garhi, forts of Garhwal) को एकीकृत करने का श्रेय है। कुछ इतिहासकार मानते हैं कि भिलंग राज्य के राजा सोनपाल ने चांदपुरगढ़ में शासन किया था। राजा सोनपाल की एक इकलौती पुत्री थी जिसका विवाह उन्होंने मालवा के राजकुमार कनकपाल से की थी।
बदलपुर गढ़ – लैंसडौन के निकट ताड़केश्वर महादेव धाम के पास बदलपुर गढ़ है। ( Garh, Garhi, forts of Garhwal) यह गढ़ तल्ला सालाण क्षेत्र में है। चिणबौ गांव के ऊपर गढाधार पर्वत में यह गढ़ था। अब इस गढ़ के अवशेष ही बचे हैं। वहां चारां तरफ जंगल ही जंगल है। यहां के अंतिम राजा कौन थे, यह कह पाना मुश्किल है। परंतु कहा जाता है कि यह बदला जाति के लोगों का गढ़ था। मेरा गांव इसी गढ़ क्षेत्र में है। कुछ लोग इसी गढ़ी को रजागढ़ी भी कह देते हैं।
लंगूर गढ़ – यह गढ़ लैंसडौन के पास जयहरीखाल, गुमखाल के निकट है। लंगूरपट्टी स्थिति इस गढ़ में भगवान भैरों नाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। इसलिए इस गढ़ को भैंरव गढ़ भी कहा जाता है। इस गढ़ पर असवाल ठाकुरों का राज रहा।
यह गढ़वाल का प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है। गुमखाल के पास ही यह गढ़ रहा है। इस प्राचीन गढ़ी में कई राजप्रासाद स्थित थे, जिनके खंडहर आज भी देखे जा सकते हैं। यहां से गढ़वाली सेनाओं ने रुहेलों और गोरखों से कई बार वीरतापूर्ण मोर्चा लेकर गढ़वाल की रक्षा की थी। 1791 ईसवी में गढ़वाल पर प्रथम गोरखा आक्रमण यहीं हुआ था और गोरखाओं से हुआ युद्ध लंगूर गढ़ युद्ध के नाम से जाना जाता है।
नागपुर गढ़- यह जौनपुर परगना में था। यहां नागदेवता का मंदिर है। यहां का अंतिम ठाकुरी राजा भजनसिंह था। इस गढ़ में नाग देवता का मंदिर है। यह गढ़ नाग जाति से संबंधित माना जाता है।
कोल्लिगढ़ – यह बछवाण बिष्ट जाति के लोगों का गढ़ था। यह देवलगढ़ क्षेत्र में है।
रवाणगढ़- यह गढ़ बद्रीनाथ के मार्ग पर है। इस गढ़ पर रवाणी जाति का अधिकार होने के कारण इसका नाम रवाणगढ़ या रावडगढ़ पड़ा।
फल्याण गढ़ – यह फल्दकोट में था और फल्याण जाति के ब्राहमणों का गढ़ था। कहा जाता है कि यह गढ़ पहले किसी राजपूत जाति का था। शमशेर सिंह नामक गढ़पति ने इसे ब्राह्मणों का दान कर दिया था।
बांगर गढ़ – यह नागवंशी राणा जाति का गढ़ था। कहा जाता है कि घिरवाण खस जाति ने भी एक बार इस पर अधिकार जमाया था।
कुईली गढ़ – यह सजवाण जाति का गढ़ था जिसे जौरासी गढ़ भी कहते हैं। कुईलीगढ़ नरेन्द्रनगर के निकट भागीरथी की दायीं ओर कोटग्राम के समीप स्थित है। गढ़ में घंटाकर्ण का मंदिर भी है। .
भरपूर गढ़ – यह भी सजवाण जाति का गढ़ था। यहां का अंतिम थोकदार यानि गढ़ का प्रमुख गोविंद सिंह सजवाण था। यह तैडीगढ़ के पश्चिम क्षोर पर स्थित है। इस गढ़ के गढ़पति अमरदेव तथा तैड़ीगढ़ के गढ़पति तनया तिलोमा थे।
कुजणी गढ़ –सजवाण जाति से जुड़ा एक और गढ़ जहां का आखिरी थोकदार सुल्तान सिंह था।
सिलगढ़- यह भी सजवाण जाति का गढ़ था जिसका अंतिम राजा सवलसिंह था। सिलगढ़ मन्दाकिनी नदी ओर कोटग्राम के समीप स्थित है। इस गढ़ के अंतिम गढ़पति सबल सिंह सजवाण रहे।
मुंगरा गढ़ – रवाई स्थित यह गढ़ रावत जाति का था और यहां रौतेले रहते थे।
रैका गढ़- यह रमोला जाति का गढ़ था। रेकागढ़ , प्रतापनगर इस गढ़ का नाम उपली रमोली के एक गाँव के नाम पर है।इसके गढ़पति रमोला जाति के लोग थे।
मोल्या गढ़ -रमोली स्थित यह गढ़ भी रमोला जाति का था।
उपुगढ़ – यह गढ़ टिहरी गढ़वाल के उदेयपुर क्षेत्र में है। यह गढ़ चौहान जाति का था। महान वीर योद्धा कफ़्फ़ु चौहान इस गढ़ के अंतिम गढ़पति थे।
नालागढ़ : देहरादून जिले में है। जिसे बाद में नालागढ़ी के नाम से जाना जाने लगा।
सांकरीगढ़ – रवाईं स्थित यह गढ़ राणा जाति का था।
रामी गढ़ –इस गढ़ को गढ़ नरेश ने अपनी बेटी को देहज के तौर पर दे दिया था।इससे यह हिमाचल प्रदेश में चला गया। इसका गढ़पति रावत जाति का था।
बिराल्टा गढ़ -रावत जाति के इस गढ़ का अंतिम थोकदार भूपसिंह था। यह जौनपुर में था।
चौंडा गढ़ – चौंडाल जाति का यह गढ़ शीली चांदपुर में था। चौंड़ागढ़ गढ़ के बारे में एक लोकोक्ति -तोपलों की तोप-ताप, चौंडलियों को राज, चौंडाल ठाकुरीगढ़- से ही इसकी विशेषता जानी जाती है। यह चांदपुर में है।
तोप गढ़- यह तोपाल जाति का था। इस वंश के तुलसिंह ने तोप बनायी थी और इसलिए इसे तोप गढ़ कहा जाने लगा था। तोपगढ़ चांदपुर क्षेत्र में है। यहां के प्रतापी गढ़पति तुलसिंह ने तोप ढलवायी थी। इसलिए इसे तोपल ठाकुरी गढ़ के नाम से भी जाना गया।
राणी गढ़ – खासी जाति का यह गढ़ राणीगढ़ पट्टी में पड़ता था। इसकी स्थापना एक रानी ने की थी और इसलिए इसे राणी गढ़ कहा जाने लगा था। चांदपुर में यह गढ़ खाती ठाकुरी गढ़ था।
श्रीगुरूगढ़ – सलाण स्थित यह गढ़ पडियार या परिहार जाति का था। यहां का अंतिम राजा विनोद सिंह था।
बधाणगढ़ – यह गढ़ पिंडर नदी के ऊपर स्थित था। यह बधाणी ठाकुरों का गढ़ रहा है।
लोहबागढ़- लोहबाल नेगी जाति का संबंध लोहबागढ़ से था। लहुबागढ़ चांदपुर क्षेत्र में रामगंगा के किनारे है। नदी से लंबी सुरंग ही इसका अस्तित्व मिलता है। दिलेश्वर सिंह और प्रमोद सिंह यहां के प्रतापी गढ़पति थे।
दशोलीगढ़- दशौली का यह गढ़ राजा मानवर का गढ़ रहा है।
कंडारागढ़- यह कंडारी जाति का गढ़ नागपुर परगने में था। इस गढ़ का अंतिम राजा नरवीर सिंह था। वह पंवार राजा से पराजित हो गया था और हार के गम में मंदाकिनी नदी में डूब गया था। यह भी कहा जाता है कि दुमागदेश नरेश मंगलसेन इस गढ़ के गढ़पति थे। अजय पाल ने इस गढ़ पर आक्रमण कर जीत लिया। हालांकि इस गढ़ के बारे में भी अनेक मत हैं।
धौनागढ़ – इडवालस्यू पट्टी में धौन्याल जाति का गढ़ था।
रतनगढ़- कुंजणी में धमादा जाति का था। कुंजणी ब्रहमपुरी के ऊपर है।
एरासूगढ़ – यह गढ़ श्रीनगर के ऊपर था।
इडिया गढ़ – इडिया जाति का यह गढ़ रवाई बड़कोट में था। रूपचंद नाम के एक सरदार ने इस गढ़ को तहस नहस कर दिया था।
बाग गढ़ – यह बागूणी नेगी जाति का गढ़ था। गंगा सलाण में स्थित था।
गढ़कोट गढ़ – मल्ला ढांगू स्थित यह गढ़ बगड़वाल बिष्ट जाति का था।
गड़तांग गढ़ – भोटिया जाति का यह गढ़ टकनौर में था।
वनगढ़ गढ़ – अलकनंदा के दक्षिण में स्थित बनगढ़ में यह गढ़ था। बनगढ़ में अब राजराजेश्वरी का प्राचीन मंदिर है।
भरदार गढ़ – यह वनगढ़ के करीब स्थित था। यह गढ़ तीन ओर से चट्टान, उत्तर से प्रवेश का दुर्गम मार्ग था। कहा जाता है कि मृत्यु दण्ड वाले बंदियों को यहां छोड़ा जाता था।
चौंदकोट गढ़ – यह पौड़ी जिले के प्रसिद्ध गढ़ों में एक है। चौंदकोट गढ़ के अवशेष चौबट्टाखाल के ऊपर पहाड़ी पर हैं। इस गढ़ पर गोर्ला रावतों का आधिपत्य रहा। यह गढ़वाल के सबसे बड़ा माना जाता है। यह एकेश्वर ब्लॉक में है। यह 46.33 हेक्टेयर भूमि में फैला था और इसमें त्रिस्तरीय व्यवस्था थी। सबसे पहले सुरक्षा चौकी, दूसरा स्थानीय निवासियों के घर और तीसरा गढ़पति का किला था।
श्रीनगर गढ़- यह अलकनंदा में आई बाढ़ में बह गया था। यहां गोरखा आक्रमण से पहले गढ़वाल की राजधानी थी।
नयाल गढ़ – कटुलस्यूं स्थित यह गढ़ नयाल जाति था जिसका अंतिम सरदार का नाम भग्गु था। यह कठलीगढ़ के समीप है।
अजमीर गढ़ – अजमेरी गढ़ गढ़ मुख्य रूप से चौहनों व पयालों का गढ़ रहा है।
कांडा गढ़ : रावतस्यूं में था। रावत जाति का था।
सावलीगढ़ – यह सबली खाटली में था। यह साबालिया बिष्टों का गढ़ था।
संगेलागढ़- संगेला बिष्ट जाति का यह गढ़ यह नैल चामी में था।
गुजड़ूगढ़- यह गुजड़ू परगने में था। मल्ला सालाण के सिली गांव से गढ़ तक सोपानयुक्त सुरंग, लगभग छः घेरे में गहरी खाइयां तथा दुर्ग के ध्वंस अवशेष विधमान हैं।
जौंटगढ़- यह जौनपुर परगना में था।
देवलगढ़ – यह देवलगढ़ परगने में था। इसे देवलराजा ने बनाया था। इस गढ़ का पूरा नाम वित्वाल के नाम से जगत गढ़ था। 12वीं शताब्दी में कांगड़ा नरेश देवल के नाम से इस गढ़ का नाम देवलगढ़ रखा गया। इस गढ़ को राजा अजयपाल ने अपने अधीनस्थ कर लिया था। यहां उन्होंने कुछ समय राजधानी भी रखी थी।
लोदगढ़- यह लोदीजाति का था। इसे लोधाण्यागढ़ भी कहा जाता है।
कोलपुरगढ़ या कौनपुरगढ़- यह चांदपुर के कोब गांव के निकट कौनपुरगढ़ है। यहां प्राचीन गढ़ के अवशेष हैं। कहा गया कि यह राजा कनकपाल का गढ़ था।
जोन्यगढ़- कहा जाता है कि सेनापति माधो सिंह भण्डारी ने पहली बार युद्ध में जोन्यगढ़ जीता था।
ईड़ागढ़ यह रवाई, बड़कोट में था। इस गढ़ के बारे में दो मत हैं। पहला यह कि कर्णप्रयाग-नौटी मोटर मार्ग में आदिबद्री के समीप मजियाड़ा गांव की पहाड़ी पर प्राचीन ईड़ा-बधाणी गांव के पास ईड़ागढ़ था। दूसरा मत यह है कि रवाईं का यह गढ़ किसी रुपचन्द नामक ठाकुर ने बनाया गया था।
लोइगढ़ – देवलगढ़ के पास के इस गढ़ का वर्तमान नाम ल्वैगढ़ है।
नवासुगढ़ – यह देवलगढ़ के पास नावसु गांव के तहत अकालगढ़ के रूप में भी जाना जाता है।
डोडराक्वांरा गढ़- यह राणा जाति का गढ़ था।
कोटागढ़- जौनपुर के इस गढ़ का वर्णन कांड़ागढ़ के नाम से उल्लेख मिलता है, जिसमें बिष्ट ठाकुरी गढ़ भी कहा गया है।
पावगढ़ या मावगढ़ – यह गंगा सलाण गढ़वाल के सात गढ़ों में से एक बताया जाता है। इसके अंतिम गढ़पति भानधा और भानदेव असवाल थे।
बागड़ीगढ़- गंगा सलाण क्षेत्र का यह गढ़ बागड़ी या बगुड़ी नेगी जाति का गढ़ था।
खत्रीगढ़ – यह रवाई क्षेत्र में था।
जौनपुरगढ़- जौनपुर में यमुना के किनारे पर इस गढ़ के पास अगलार-यमुना का संगम है।
नैलचामिगढ़ – यह भिल्लंग स्वाति ग्राम क्षेत्र में संगेला बिष्टों का गढ़ था।
बारहगढ़ यह गढ़ मन्दाकिनी के किनारे था। यह लस्तूर तथा डिमार की उपरली घाटी में था।
भिलागगढ़- यह भिल्लंग क्षेत्र में खाल ग्राम में गंवानागाड़ व भिल्लंगना के संगम पर था।
हिंदाऊगढ़- भिल्लंग, हिंदाव के चांजी गांव के निकट इस गढ़ के अवशेष हैं।
मुंजणीगढ़ – नरेन्द्रनगर क्षेत्र में इस गढ़ के अंतिम गढ़पति सुलतान सिंह सजवाण थे।
मूंगरागढ़- रवाई क्षेत्र के इस गढ़ में तीनों दिशाओं में यमुना बहती है तथा दक्षिण से इस गढ़ तक पहुंचने के लिए चट्टान काटकर चढ़ने के लिए सोपान बने हैं।
पैनखंडागढ़ – यह गढ़ बुठेर जाति का गढ़ माना जाता है।
चोलागढ़- प्रतापनगर के मोल्या गांव के निकट इस गढ़ के अन्तिम गढ़पति घांगू रमोला थे।
इनके साथ ही, जौंलपुर गढ़, चम्पा गढ़ , डोडांरगढ, भुवना गढ़, लोदन गढ़, चंवागढ़,
कठूडगढ़ , इडवालगढ़, हियणीगढ़ भी थे।
वास्तव में इनमें गढ़ों के साथ ही उपगढ़ या सीमा चौकियां ( Garh, Garhi, forts of Garhwal)भी थीं। इन पर ठोस शोध नहीं होने से सुनी सुनाई बातों पर यही जानकारी लंबे समय से लोगों के बीच जारी है। हालांकि एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के इतिहास एवं पुरातत्व विभाग ने इन गढ़ों व गढ़ियों को लेकर शोध किया, परंतु इसमें पुरातत्व का मामला अधिकार रहा है। इसमें इतिहास को काम करने की आवश्यकता है। यह शोध एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय श्रीनगर के इतिहास एवं पुरातत्व विभाग के तत्कालीन विभागाध्यक्ष डा. विनोद नौटियाल के मार्गनिर्देशन में इस विभाग के मौजूदा सहायक प्रोफेसर डा. नागेंद्र सिंह रावत ने यह शोध कार्य किया । इस गढ़- गढ़ियों ( Garh, Garhi, forts of Garhwal) की सूची की जानकारी दे देता हूं। इसमें 1. बानगढ़ 2. चौंदकोट गढ़ 3. देवल गढ़ , 4. ढांगू गढ़, 5. गढ़कोट गढ़ 6. कांडा गढ़ 7. कोल्ली गढ़ ,8. लंगूर गढ़ 9. लोद गढ़ 10. महब गढ़ ,11. नयल गढ़ ,12. रानी गढ़, 13. सबली गढ़,14. उल्खा गढ़ , 15- गहड़ गढ़ ,16 घुगती गढ़ 17. गुद गढ़ 18. खैरा गढ़ 19. रज्जा गढ़ी, 20. थांदर गढ़ , 21 डोबार गढ़ , 22-. बैरागढ़ ,23. बंदरगढ़ ,24. भागमल गढ़ 25. बुरागढ़, 26. गढ़, 27. घिंदियाल गढ़, 28 जमानगढ़ ,29. जसपाल गढ़,30. जुलामगढ़ , 31. माबा गढ़ 32,. नयनगढ़ , 33. राजा गढ़, 34 राणागढ़, 35–बदलपुर गढ़ प्रमुख हैं।
इसी तरह यमुना घाटी में पहचाने गए किलों और दुर्गों की सूची इस तरह है।- मुंगरा गढ़ किला सांकरी गढ़, किला, रैन गढ़ किला, बिरालता गढ़ी किला, इदिया गढ़, किला डोदरा’क्वारा गढ़ फोर्टलिस, जौलपुर गढ़ी फोर्टलिस, गोन गढ़ी फोर्टलिस, सौला गढ़ी फोर्टलिस, कंदराला गढ़ी किला गढ़, गढ़लानी गढ़ी किला, बिल्ला गढ़ी किला, हंसोरा गढ़ी फोर्टलिस, स्यालदा या सौला गढ़ी फोर्टलिस, चमराई गढ़ी फोर्टलिस मुनोर गढ़ीफोर्टलिस गढ़ी किला , राज गढ़ी किला वोजरी गढ़ी किला ढोल’संगुला गढ़ी, रेनुका गढ़ी किला, खतली किला गट्टू गढ़ी किला, शाहस्त्रबाहू गढ़ी किला, गुगती गढ़ी किला, निम्गा गढ़ किला, गण गढ़ी फोर्टलिस, थडुंग गढ़ी फोर्टलिस, दाल बद्र गढ़ी, हलना गढ़ी शामिल हैं।
सभी गढ़-गढ़ियों के राजा अजयपाल के आधीन हो जाने के बाद उन्होंने नई प्रशासनिक व्यवस्था दी। पुराने गढ़ों के गढ़पति उनके नियत्रण में आ गए थे। इससे उनके गढ़ भी अजयपाल के तहत आ गए। उन्होंने अपने हिसाब से गढ़ों को बनाए रखा। इससे कई उपेक्षित होते चले गए। पंवारों के शासन में धीर-धीरे इन गढ़ों का महत्व भी कम होने लगा था और वे खंडहरों में बदलते चले गए। बाकी रही, सही कसर गोरखा आक्रमण ने पूरी कर दी। क्रूर गोरखा शासन में अधिकतर गढ़पतियों को मार डाला गया। कई तो जान बचाकर गढ़- गढ़ियों से भाग गए। इससे ये किले खंडहर होते चले गए।
अंत में मेरा सुझाव है कि इन गढ़-गढ़ियों के इतिहास पर उत्तराखंड के विश्वविद्यालयों में शोध कार्य करने की आवश्यकता है, ताकि इनके इतिहास के पन्नों को सामने रखा जा सके।
यह था गढ़वाल के गढ़-गढ़ियों का कुछ इतिहास । यह वीडियो कैसी लगी, कमेंट में अवश्य लिखें। हिमालयीलोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। वीडियो पसंद आए तो शेयर कर लेना। इसके टाइटल सांग – हम पहाड़ा औंला– को भी सुन लेना। मेरा ही लिखा है। इसी चैनल में है। हमारे सहयोगी चैनल – संपादकीय न्यूज—को भी देखते रहना। अगली वीडियो का इंतजार कीजिए। तब तक जै हिमालय, जै भारत।