परिकल्पना- डा. हरीश चंद्र लखेड़ा /हिमालयीलोग की प्रस्तुति /नयी दिल्ली

दोस्तों, इस बार उत्तराखंड और नेपाल के संबधों को इतिहास के पन्नों से तलाश कर लाया हूं। जब तक मैं अपनी बात को आगे बढ़ाता हूं, इस हिमालयीलोग चैनल को लाइक और सब्सक्राइब अवश्य कर दीजिए।
उत्तराखंड और नेपाल के इतिहास और सीमा रेखा को लेकर न तो खुद नेपाल के अधिकतर लोग तथा भारत के मैदानी क्षेत्रों के लोग ज्यादा नहीं जानते हैं। इसलिए तर्कवहीन बातें करते रहते हैं,जबकि प्राचीन इतिहास भी साक्षी है कि खस मंडल के तहत हिमालयी का जो क्षेत्र आता है उसमें जम्मू- हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड के साथ ही नेपाल के कर्णाली तक का क्षेत्र भी आता है।इसे हम कुलिंद क्षेत्र भी कह सकते हैं।  उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ से शासन करते समय कार्तिकेयपुर राजवंश यानी कत्यूरियों के राज्य में आज के नेपाल का लगभग एक -तिहाई भूभाग शामिल था। नेपाल के डोटी यानी सुदूर पश्चिम और कर्णाली प्रांत के अधिकतर भूभाग कत्यूरी राज्य का हिस्सा थे।

आज भी उस क्षेत्र में चले जाएं तो वहां की बोली, रीति- रिवाज आदि को देखकर लगेगा कि यह तो कुमायुं का ही हिस्सा है। बस नेपाली टोपी से भिन्नता दिखेगी।कभी सुदूर पश्चिम और कर्णाली के बड़े हिस्से को डोटी कहा जाता था। कत्यूरी राज में तब का नेपाल काठमांडू के आसपास के क्षेत्र तक सीमित था। कत्यूरियों के बाद कुमायुं के चंद राजा बाज बहादुर चंद ने भी डोटी के साथ ही कर्णाली प्रांत के अधिकतर भूभाग को वहां के कत्यूरी खस राजाओं से छीनकर अपने शासन में मिला लिया था। इस तरह नेपाल के ये क्षेत्र तब उत्तराखंड का हिस्सा थे।

नेपाल के एकीकरण से पहले तक आज के नेपाल और भारत की कोई सीमा रेखा तय नहीं थीं। पूरे भरत खंड में राजा लगातार युद्ध करते रहते थे। कई राज्य बनते और फिर मिट जाते थे। इतना विशाल मगध साम्राज्य भी एक दिन मिट गया। इसे हम इतिहास का तार पर बस या दरख सकते हैं। नेपाल में शाह राजवंश के पहले नेपाल सिर्फ काठमांडू उपत्यका तक ही सीमित था। नेपाल तब कई छोटे-छोटे राज्यों में बंटा हुआ था। पृथ्वी नारायण शाह ने इन राज्यों को जीतकर एक देश नेपाल बनाया। आज नेपाल के कई लोग ग्रेटर नेपाल की बात करते रहते हैं। वे कहते रहते हैं कि कांगड़ा तक उन्होंने जीता था। इसलिए इसे ग्रेटर नेपाल कहते रहते हैं। अब इनको कौन समझाए कि जब गोरखा युद्ध जीते थे तब वहां उनका शासन था, परंतु उनको सिखों और अंग्रेजों ने भी तो हरा दिया था। जिस दिन वे युद्ध हारे उसी दिन उन्होंने पूर्व में कांगड्रा तक अपना कहने कह हक खो दिया। ऐसी बातें कीड़े मकोड़े खाने वाले मूर्ख व आक्रांता चीनी भी करते रहते हैं।
अब बात करते हैं नेपाल के सुदूर पश्चिम और कर्णाली प्रांतों की। नेपाल में २० सितम्बर २०१५ को लागू हुए नए संविधान के अनुसार देश को सात प्रांतों यानी प्रदेशों में बांटा गया है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले से नेपाल के सुदूर पश्चिम प्रांत की सीमा मिलती है। सुदूर पश्चिम से पूर्व की ओर कर्णाली प्रांत है। इन दोनों प्रांतों में खस जाति की बहुलता है। सुदूर पश्चिम का पुराना नाम डोटी है। नेपालियों के लिए उत्तराखंड में जो संबोधन डोटियाल है, वह इसी क्षेत्र से आया है। टोडी और सौर घाटी यानी पिथौरागढ़ के लोगों में रोटी—बेटी के संबंध आज भी हैं। इन दोनों जिलों के लोगों के रीति रिवाज और भाषा एक समान ही है। सूदूर पश्चिम के लोगों की पिथौरागढ़ और पिथौरागढ़ के लोगों की डोटी में जमीन भी एक-दूसरे के क्षेत्रों में है। सुदूर पश्चिमी क्षेत्र को जागर व लोककथाओं में टोडीगढ़ भी कहा गया है। यह क्षेत्र काली नदी और करनाली नदी के बीच पड़ता है।

वास्तव में नेपाल का यह डोटी क्षेत्र प्राचीन काल में उत्तराखंड का एक राज्य था। नेपाल के कंचनपुर जिले में ब्रह्मदेव मंडी की स्थापना कत्यूरी राजा ब्रह्मदेव ने की थी। १३ वीं शताब्दी में जब कत्यूरी शासन का पतन हो गया तब यह डोटी क्षेत्र और उत्तराखंड के क्षेत्रों में अलग- अलग राजा होने से दूरियां बढी। हालांकि बाद में भी कई बार डोटी क्षेत्र कुमायुं के चंदों के शासन में भी रहा। इसी तरह पिथौरागढ़ के सीमांत क्षेत्रों में डोटी राजा भी अधिकार करते रहे। यहां के मल्ल राजाओं ने दोनों क्षेत्रों में राज किया। चूंकि तब यहां नेपाल जैसा कोई शब्द नहीं था। टोडी भी खसों का एक ऐसा ही राज्य था, जैसे कि कत्यूरी शासन के पतन के बाद गढ़वाल में ५२ गढ़पति थे और कुमायुं में भी दर्जनों राज्य। कुमायुं में कत्यूरी साम्राज्य कमजोर होने पर चंद वंश शक्तिशाली होता चला गया। इस तरह 1300 से 1400 ई .के बीच के उत्तराखंड के कत्यूरी राज्य के विघटन के बाद आज के उत्तराखंड का पूर्वी क्षेत्र यानी कुमायुं और नेपाल का सुदूर-पश्चिम क्षेत्र आठ अलग-अलग ठकुरियों यानी छोटे राज्यों में बंट गया। इस तरह बैजनाथ का कत्यूरी शासन द्वारहाट, डोटी, बारामंडल, असकोट, सिरा, सोरा, सुई यानी काली कुमायुं में बंट गया। कत्यूरी राजवंश के विघटन के बावजूद कत्युरी राजाओं की एक शाखा रजवार राजवंश ने पिथौरागढ़ के असकोट के शासन किया। नेपाल के टोडी में भी कत्यूरियों की ही एक शाखा राज करती रही। यानी नेपाल का आज का सुदूर पश्चिम प्रांत कभी कुमायुं के कत्यूरों के राज्य का हिस्सा था।
कत्यूरियों को भले ही कुछ इतिहासकार अयोध्या के शालिवाहन वंश से जोड़ते हों, लेकिन वे खस ही थे। इतिहासकार बद्रीदत्त पांडे अपनी पुस्तक कुमायुं का इतिहास में लिखते हैं कि कत्यूरी वंश अयोध्या से आये थे। कत्यूरियों ने ही इस क्षेत्र को कूर्मांचल नाम दिया। जो वर्तमान का कुमायुं है। लेकिन अधिकतर इतिहासकार कत्यूरी राजवंश को कुणिंद मूल की एक शाखा मानते हैं। कत्यूरी वंश के संस्थापक वासुदेव कत्यूरी माने जाते हैं। माना जाता है कि कार्तिकेयपुर राजवंश का शासन पूर्व में नेपाल से लेकर पश्चिम में काबुल, अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। सम्राट हर्षवर्धन के मृत्यु के बाद उत्तराखंड में कार्तिकेयपुर राजवंश की स्थापना हुई। इसे ही कुछ इतिहासकार कत्यूर राजवंश मानते हैं। जो भी हो इतना तय है कि नेपाल का बड़ा भू भाग तक उत्तराखंड के राजाओं के साम्राज्य का हिस्सा था। इतिहासकारों के अनुसार कत्यूरों की राजधानी मूलतः जोशीमठ में हुआ करती थी, जिसे कार्तिकेयपुर या ब्रह्मपुर भी कहा जाता है। बाद में कत्यूरी अपनी राजधानी को कुमायुं के बैजनाथ ले गए, जिसे कत्यूर घाटी कहा जाता है।

इसी तरह चंद वंश के राजा बाज बहादुर चंद ने भी नेपाल के बड़े हिस्से को अपने कब्जे में ले लिया था। बाज बहादुर चंद ने सन 1638 ई. से 1678 ई. तक कुमायुं पर शासन किया। उन्होंने मानसरोवर इलाके को कुमायुं में मिलाया था। इसके साथ ही हुणियों यानी भोटिया व तिब्बतियों के आंतक को खत्म करने के लिए तिब्बत पर आक्रमण भी किया। हुणिया और तिब्बती तब मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों को लूट लेते थे। इसलिए बाज बहादुर चंद ने तिब्बत की तरफ अपनी सेना भेजकर और हुणियों के सबसे मजबूत गढ़ टकलाखर किले को जीत लिया था। यह घटना 1670 ई की है। गढनरेश महिपति शाह के सेनापित लोदी रिखोला और मोधो सिंह भंडारी ने भी तिब्बितयों को युद्ध में हराया था और आज गढ़वाल और तिब्बत के साथ जो सीमा है उनकी ही तय की हुई है। तिब्बत के कई गांव गढ़ नरेश को कर भी देते रहे हैं।
अब डोटी क्षेत्र को लेकर जानकारी देता हूं। माना जाता है कि डोटी शब्द ‘दो वती’ से आया है जिसका अर्थ -दो नदियों के बीच का भू-भाग है। कुछ लोग ये भी मानते हैं कि ये नाम भगवान देव और आतवी से आया है जिसका मतलब है: पुनः उत्पत्ति। यहां डोटीयाली और कुमायुंनी बोली जाती है। जो कि बहचत समान हैं। १३ वीं शताब्दी में कत्युरी राज-शासन का पतन हो जाने पर निरंजन मल्ल देव ने डोटी राज्य की स्थापना की। वे अंतिम संयुक्त कत्युरी शासन के शासक पुत्र थे। डोटी के राजा राइका नाम से जाने जाने लगे थे। बाद में कर्णाली क्षेत्र के खस मल्ल को हराकर उन्होंने एक मजबूत राज्य स्थापित किया। इसी तरह करनाली नेपाल की एक पुरानी सभ्यता है जो कि करनाली नदी से जुड़ी हुई है। 14वीं सदी के अंत में खस साम्राज्य का पतन हो जाने पर यहां करनाली-भेरी क्षेत्र २२ राज्यों में बंट गया।

दोस्तों, ये वे तथ्य हैं, जिनसे साफ है कि नेपाल का लगभग एक तिहाई हिस्सा कभी उत्तराखंड का था। इसलिए समय आ गया है कि अब नेपाल से इस भूभाग को वापस मांग कर ग्रेटर उत्तराखंड-भारत की बात होनी चाहिए।

यह रिपोर्ट कैसी लगी, अवश्य बताएं। हिमालयी लोग चैनल को लाइक व सब्सक्राइब करना न भूलना। और अंत में एक बात और।इस वीडियो का टाइटल सॉन्ग मेरा ही लिखा इसी चैनल में है। इस गीत को अवश्य सुनिएगा। जै हिमालय- जै भारत।

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