उत्तराखंड आंदोलन पर लिखी किताब के लेखक हरीश लखेड़ा

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देहरादून। ‘उत्तराखंड आंदोलन : स्मृतियों का हिमालय’ पुस्तक के लेखक वरिष्ठ पत्रकार हरीश लखेड़ा को एक नवंबर को देहरादून के टाउन हॉल में सम्मानित किया गया । राज्य की 17वीं वर्षगांठ पर हो रहे कार्यक्रमों के तहत टाउन हॉल में यह कार्यक्रम हुआ है।
उत्तराखंड राज्य गठन के 17 साल बाद इस अभूतपूर्व आंदोलन पर समग्रता में दस्तावेजों के साथ पहली किताब आई है। 470 पेजों वाली यह किताब बताती है कि उत्तराखंड को अलग प्रशासनिक इकाई बनाने के लिए सबसे पहले मांग 1887 में उठी थी। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत 11 अगस्त को दिल्ली में इस पुस्तक का लोकार्पण कर चुुके हैं। चंडीगढ़ में भी इस किताब को लेकर सफल कार्यक्रम हो चुका है।
उत्तराखंड का स्थापना दिवस 9 नवंबर को है। इसके मद्देनजर एक नवंबर 2017 को कई सामाजिक संगठनों ने ‘उत्तराखंड विमर्श – क्या खोया क्या पाया’ के बैनर तले टाउन हॉल में एक कार्यक्रम का आयोजन किया। इसके आयोजक किशोर उपाध्याय थे। इसमें राज्य निर्माण की 17वीं सालगिरह पर राज्य की परिस्थितियों पर चर्चा हुई ।इसमें यूकेडी के कशी सिंह ऐरी , भाकपा के समर भंडारी आदि नेताओं ने लखेड़ा को सम्मानित किया।

उत्तराखंड आंदोलन : स्मृतियों का हिमालय—
पत्रकार हरीश लखेड़ा की यह किताब वर्ष 1994 के दौरान उत्तराखंड आंदोलन पर केंद्रित है। संभवत: यह अपने आप में पहली किताब है जो उत्तराखंड आंदोलन को समग्रता में पेश करती है। उत्तराखंड की मांग पहली बार 1887 में उठी थी। यह पुस्तक तब से लेकर 9 नवंबर 2000 को देहरादून के परेड ग्राउंड में पहले मुख्यमंत्री के शपथ ग्रहण तक की यह कहानी बयां करती है। पुस्तक के लेखन में नई शैली को सामने रखा गया है। यह पहली किताब है जो उस दौर के प्रमुख राष्ट्रीय समाचार पत्रों की क्लीपिंग और लेखों को लेकर आगे बढ़ती है। लेख और रिपोर्ट को बिना कौमा हटाए उनके लेखक-पत्रकार के नाम के साथ रखा गया है।
खुद लखेड़ा कहते हैंं — ‘ कोई इतिहास लेखन नहीं है। बस स्मृतियों को एक साथ लिखने का प्रयासभर है। दिल्ली में इसमें एक पत्रकार व उत्तराखंडी के तौर पर थोड़ी सी भागीदारी मेरी भी रही है। यह संयोग ही था कि जब पत्रकार के तौर पर बड़े अखबार हिंदी दैनिक जनसत्ता में मेरे पांव जम रहे थे तो यह आंदोलन चरम स्थिति पर पहुंच गया। यह मेरा नैतिक कर्तव्य और जिम्मेदारी भी थी कि मैं इस आंदोलन की रिपोर्र्टिंग करता। …….. एक रिपोर्टर के तौर पर काम करते हुए जो कुछ देखा, समझा और जो कुछ याद आता रहा उसे यहां शब्दों की माला में पिरो दिया। मेरे पास उन स्मृतियों की विशाल पोटली थी और समाचारपत्रों की कुछ कतरनें भी थीं। उस आंदोलन से जुड़े मित्रों की स्मृतियों को खंगाला। उसके बाद जो कुछ मिला उसे मंैने यहां एक साथ रख दिया।’
वे आगे कहते हैं — ‘और हां, तब इतिहास गढ़़ा जा रहा था, मगर मुझे तब इसका आभास तक नहीं था। अब यह सोच कर बहुत आनंदित होता हूं कि समय के उस कालखंड में मैं भी वहां उपस्थित था। मैं भी साक्षी था, उन घटनाओं का। उस अदभुद आंदोलन का जो स्वत:स्फूर्त था। उस महान इतिहास का हिस्सा भी था। दिल्ली में पहाड़ से आकर यमुना भी बहती रही, समय की नदी भी बहती रही, मैं भी बहता रहा। पता ही नहीं चला कि कब मैं उत्तराखंड आंदोलन को लेकर अखबारों में प्रकाशित रिपोर्ट यानी क्लीपिंग-कतरने एकत्रित करने लगा। एक दिन देखा कि मेरे पास तो अपार व अदभुद भंडार है। पढऩे-लिखने और किताबें संग्रह करने शौक मुझे बचपन से रहा है। पत्रकारिता ने इस शौक को पूरा करने का अवसर ज्यादा मिलने लगा। अब मुझे लगा इन दस्तावेजों को सहेज कर रखने के लिए आवश्यक है कि इनको एक पुस्तक का रूप दे दिया जाए।’
पुस्तक 19 खंडों में है। एक खंड में अखबारों की क्लीपिंग, तब की फोटो और कार्टून को भी रखा गया है। देहरादून के समय साक्ष्य प्रकाशन के प्रकाशित यह पुस्तक में उत्तराखंड आंदोलन के सबसे दुखद अध्याय -मुजफ्फरनगर कांड पर भी विस्तार से दिया गया है।
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परिचय—- हरीश लखेड़ा
उत्तराखंड के पौड़ी जिले के कलीगाड़ तल्ला गांव में जन्में, पले व बढ़े हरीश चंद्र लखेड़ा पिछले ढाई दशक से दिल्ली में पत्रकारिता में सक्रिय हैं। जनवरी 1992 में जनसत्ता से पत्रकारिता में आए। राष्ट्रीय सहारा में दिल्ली टीम के चीफ रिपोर्टर और फिर अमर उजाला के नेशनल ब्यूरो में सीनियर स्पेशल करस्पोंडेंट (समकक्ष एसोशिएट एडीटर) रहने के बाद चंडीगढ़ में ब्यूरो चीफ रहे। भारत सरकार के पत्र सूचना कार्यालय से मान्यता प्राप्त पत्रकार लखेड़ा उन गिने-चुने पत्रकारों में शामिल हैं जिनको दिल्ली नगर निगम से लेकर दिल्ली, पंजाब और हरियाणा की विधानसभाओं और संसद की रिपोर्र्टिंग का अनुभव है। उन्होंने कांग्रेस, भाजपा, वामदल से लेकर तीसरा मोर्चा की पार्टियों और केंद्र सरकार के लगभग सभी मंत्रालयों की रिपोर्र्टिंग भी की है। रिपोर्र्टिंग के लिए ज्यादातर राज्यों का दौरा कर चुके लखेड़ा राष्ट्रपति के साथ भी कई दौरों पर जा चुके हैं।
देहरादून के डीबीएस कॉलेज से एम.एससी. (गणित) करने के बाद दिल्ली के भारतीय विद्याभवन से पत्रकारिता व जनसंचार में पी.जी. डिप्लोमा किया। या। बाद में उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय से एम.ए. (पत्रकारिता व जनसंचार) करने के बाद अब पत्रकारिता व जनसंचार में शोध कार्य (पीएच.डी)कर रहे हैं।
दिल्ली हिंदी अकादमी की सहायता से वर्ष 2000 में ‘दिल्ली का रास्ता’ नाम से की कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका है। लखेड़ा उत्तराखंड आंदोलन में भी सक्रिय रहे। अब वे तीसरी किताब पर काम कर रहे हैं।

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