ले. जनरल मदन मोहन लखेड़ा (पूर्व राज्यपाल मिजोरम)

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विकास चाहिए तो केंद्र पर दबाव बनाएं हिमालयी राज्य
ले. जनरल मदन मोहन लखेड़ा (पूर्व राज्यपाल मिजोरम)

जनरल लखेड़ा का मानना है कि आजादी के बाद हिमालयी राज्यों का जिस तेजी से विकास होना चाहिए था, वह नहीं हुआ है। जल और जंगल समेत अधिकतर प्राकृतिक संसाधन हिमालयी राज्यों के हैं, लेकिन उनका फायदा मैदानी लोगों को ज्यादा मिलता है। वह इसलिए कि हिमालयी राज्य केंद्र सरकार पर दबाव नहीं बना पाए हैं। विकास चाहिए तो उन्हें दबाव समूह बनाना होगा।
-हिमालय के विकास को लेकर आप क्या सोचते हैं
-हिमालयी राज्यों को सबसे पहले दबाव समूह बनाना होगा। देखा जाए तो लगभग पूरा पानी हिमालयी राज्यों का है और इसका लाभ मैदानी राज्य उठा रहे हैं। पानी से तबाही भी हिमालयी राज्यों को ज्यादा उठानी पड़ती है, लेकिन इसके बदले उन्हें ज्यादा कुछ नहीं मिला है। आज भी वे विकास के मामले में बहुत पीछे हैं। पूर्वोत्तर के राज्य तो केंद्र पर कुछ दबाव बना भी लेते हैं, लेकिन सभी हिमालयी राज्यों को विकास के लिए मिलकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाना चाहिए।

–    मिजोरम के राज्यपाल के तौर पर आपने सफल पारी खेली है, आपकी प्रमुख उपलब्धियां क्या रही हैं।
–    मिजोरम  देश में पहला राज्य है जहां साफ-सुथरे चुनाव के लिए मिजोरम पीपुल्स फोमर बनाया गया। इस फोरम ने चुनाव में होने वाले खर्च को बहुत कम करा दिया, यहां तक कि उम्मीदवारों का तय सीमा से भी कम पैसा खर्च हुआ। धांधलेबाजी भी खत्म हो गई। विभिन्न दलों के उम्मीदवारों को अपनी बात कहने के लिए  एक मंच पर बुलाने की परंपरा शुरू हुई।  लोकसभा, विधानसभा से लेकर निगम के चुनावों में लाउडस्पीकर भी नहीं लगे। चुनाव आयोग ने भी इस कदम की तारीफ की।
इसके अलावा मिजोरम पहला राज्य है जहां शिक्षा सुधार आयोग बना और अब उसकी सिफारिशें लागू हो गई हैं। वहां की कम आबादी वाली तीन ट्राइब जातियों चकमा, मर्रा और लाई के लिए बनी परिषदों के अधिकारों का बंटवारा किया गया। एयरपोर्ट में अब खराब मौसम में भी जहाज उडान भर सकते हैं। जबकि पहले खराब मौसम के कारण चार-पांच दिन तक भी फ्लाइट नहीं आ पाती थी।
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जनरल मदन मोहन लखेड़ा ने पूर्वोत्तर के सीमांत प्रदेश मिजोरम के राज्यपाल के तौर पर सफल पारी खेली। इससे पहले पांडिचेरी के उप राज्यपाल के तौर पर भी उन्होंने सुनामी पीड़ितों के पुनर्वास के लिए उल्लेखनीय कार्य किये। जनरल लखेड़ा ने कुछ समय तक अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के उप राज्यपाल का अतिरिक्त कार्यभार भी संभाला। मधुर स्वभाव और अपनी लगन के पक्के जनरल लखेड़ा उत्तराखंड के एक मात्र ऐसे फौजी अफसर हैं जो, पीवीएसएम, एवीएसएम, वीएसएम समेत सभी मेडलों से सम्मानित किये गये। वे दो बार चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेन्डेशन रहे जिनकी सराहनीय सेवा के लिए इतने मेडलों से पुरस्कृत किया गया।
सन् 1995 में सेवा से निवृत्त होने के बाद जन-साधारण के कल्याणकारी कार्यों में खासकर, पूर्व-सैनिकों के कल्याण के लिए समर्पित सेवा की। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी, एक्स सर्विसमैन सेल के अध्यक्ष भी रहे।
7 जुलाई 2004 को उन्होंने पांडिचेरी के उप-राज्यपाल तथा प्रशासक का कार्यभार संभाला। लगभग ढाई साल के बाद उन्हें मिजोरम का राज्यपाल बनाया गया। वे उत्तराखंड के गढ़वाल डिवीजन के अकेले मनीषी हैं, जो राज्यपाल बने।

जनरल लखेड़ा का का जन्म दिनांक 21 अक्टूबर 1937 को जनपद टेहरी गढ़वाल के पट्टी बरजुला के जाखंड गांव में हुआ था। उनके पिता स्व. जयनंद लखेड़ा, टिहरी गढ़वाल के शिक्षा क्षेत्र के अग्रणी व्यक्तियों में से एक थे। आपकी मां स्व. कलावती जी, एक आदर्श गृहिणी थीं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा जाखंड प्राथमिक विद्यालय में हुई थी।  उच्च शिक्षा राष्ट्रीय इंडियन मिलिटरी कॉलेज (फकटउ), देहरादून (1949 से 1951 तक) से ली। तत्पश्चात, नेशनल डिफेंस अकादमी, खड़कवासला, पुणे से प्रशिक्षण लिया और दिनांक 08 जून 1958 से इंडियन मिलिटरी कॉलेज, देहरादून से प्रशिक्षण लेकर भारतीय सेना में कमीशंड ऑफिसर बने।
सन् 1961 में गोवा ऑपरेशन, 1965 व 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में जम्मू-कश्मीर सेक्टर में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। दक्षिण भारत के वेलिंगटन के डिफेंस सर्विसेज स्टॉफ कॉलेज से और स्कूल ऑफ आर्टिल्लरी में लॉग गन्नरी स्टॉफ कोर्स में प्रशिक्षण प्राप्त किया। सन् 1967 से 1970 तक स्कूल ऑफ आर्टिल्लरी में और तत्पश्चात, 1978 से 1981 तक कॉलेज ऑफ कोम्बाट, मऊ में अनुदेशक के पद को सुशोभित किया। दिसम्बर 1975 से जुलाई 1978 तक जम्मू-कश्मीर में कुमाऊं रेजीमेंट के चतुर्थ बटालियन का सुचारू रूप से संचालन किया। काउंटर इंसरजैंसी ऑपरेशन के आप विशेषज्ञ माने जाते हैं। सन् 1981 से 1982 तक आप मणिपुर ब्रिगेड के डिप्टी कमांडर रहे। ब्रिगेडियर के पद से पदोन्नति पाकर आप कानपुर ब्रिगेड के कमांडर बने। पंजाब में 1984 में हुए ‘ब्लू स्टॉर ऑपरेशन’ तथा 1984 में कानपुर में हुए दंगों पर नागरिक प्रशासकों को सहायता देने में आपकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। आप इन महत्वपूर्ण सेवाओं के लिए 15 जनवरी 1985 और 15 अगस्त 1985 (दो बार) चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ कमेन्डेशन कार्ड से पुरस्कृत किए गए। तत्पचात उन्हें कश्मीर घाटी के सब एरिया कमांडर के पद पर नियुक्त किया गया। वहां सेनाओं को अग्रसारित करने में लॉजिस्टिक सपोर्ट के अलावा नागरिक प्रशासकों की सहायता दिलाई।  संवेदनशील  कश्मीर घाटी में चौतरफा व विकट समस्याओं को हल करने में उनकी  समर्पित, संवेदनशीलपूर्ण,व प्रोफेशनल क्षमता एवं निष्ठापूर्ण सेवाओं के लिए राष्ट्रपिता ने 26 जनवरी  1991 में ‘अति विशिष्ट सेवा मेडल’ से अलंकृत किया गया। उन्होंने सिकंदराबाद स्थित इन्फेटरी डिवीजन को कमांड भी किया। सितंबर 1992 में ले. जनरल की पदोन्नति मिली और सेंट्रल कमांड हेडक्वार्टर्स में चीफ ऑफ स्टाफ के पद पर नियुक्त किए गए। जून 1993 में भारतीय थल सेना के एडजुटेन्ट जनरल बने। सेना के मानव संसाधन व सेवा शर्तों और डिफेंस सिविलियनों की जनशक्ति आयोजना तथा प्रबंधन कार्यों की नीति तैयार करने में बड़ा योगदान रहा। कुमाऊं रेजिमेंट के कर्नल कमांटेंट भी रहे। आपकी विशिष्ट परम सेवाओं के लिए  राष्ट्रपति ने 26 जनवरी 1995 ‘परम विशिष्ट सेवा मेडल’ से विभूषित किए गए। इसके बाद कांग्रेस से जुड़े और फिर राज्यपाल के पद तक पहुंचे। जनरल लखेड़ा को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के निकटतम लोगों में गिना जाता है। )

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